आँखों पर कस कर
हालात की काली पट्टी
बाँध
जिन्दगी ने
घुप अँधेरे में
अनजानी अनचीन्ही
राहों पर
जब अनायास ही
धकेल दिया था
तब मन बहुत घबराया
था !
व्याकुल विह्वल
होकर
सहारे के लिए
मैंने कितनी बार
पुकारा था,
लेकिन मेरी
हर पुकार अनुत्तरित
ही
रह जाती थी !
अवलम्ब के लिये
आस पास कोई दीवार,
कोई लाठी ,
कोई सहारा भी ढूँढ
नहीं पाती थी !
ह्रदय की आकुलता का
शमन करने के लिए
आश्वस्त करता
कोई मृदुल हाथ
अपने माथे पर रखा
नहीं पाती थी !
निर्जन नीरव शून्य
में फ़ैली
निरुपाय बाँहों को
किन्हीं चिर परिचित
उँगलियों का
जाना पहचाना
स्पर्श नहीं मिलता
था !
कैसे आगे बढूँ,
कहाँ जाऊँ
किस दिशा में कदम
उठाऊँ
कोई भी तो नहीं था
जो रास्ता बता देता
!
हार कर खुद ही उठ कर
अपनी राह बनाने के
लिये
स्वयं को तैयार किया
!
गिरते पड़ते
ठोकर खाते
कितनी दूर चली आई हूँ
नहीं जानती !
लेकिन कुछ समय के
बाद
ये अँधेरे ही
अपने से लगने लगे थे!
पैरों की उँगलियों
से
टटोल कर नुकीले
पत्थर
और काँटों की पहचान
कर लेना भी सीख लिया
था !
हवाओं के खामोश
इशारों की फितरत भी
समझ में आने लगी थी !
और फिर धीरे-धीरे
मुझे इन अंधेरों की
आदत पड़ गयी
ये अँधेरे मेरे एकाकी
व्यक्तित्व का
अविभाज्य अंग बन गये !
अँधेरे के बिस्तर पर
अँधेरे की चादर ओढ़
खामोशी से आँख बंद कर
लेटे रहने में
बड़ा सुकून सा मिलता था !
युग युगांतर के बाद
मेरी आँखों से
आज जब यह पट्टी उतरी
है
मुझे इस घनघोर तिमिर
में
एक जुगनू की
लम्हा भर रोशनी भी
हज़ार सूरजों की
ब्रह्माण्ड भर
रोशनी से कहीं अधिक
चौंधिया गयी है
और मैं चकित हूँ
कि आज इस रोशनी में
मुझे कुछ भी
दिखाई क्यों
नहीं दे रहा है !!
साधना वैद
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteलम्हा भर रौशनी काफी है आगे बढ़ने के लिए,,,
RECENT POST LINK बदनसीबी,
हाँ सदियों से बंधी पट्टी जब उतरती है तो बदलाव तेज रौशनी सिर्फ चकाचौंध ही दे पाती है। जिसके हम आदि नहीं होते है तो फिर कैसे देख पायेंगे . सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत एहसास ,खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteNew post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
बहुत सुन्दर राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
ReplyDeleteकि आज इस रोशनी में
ReplyDeleteमुझे कुछ भी
दिखाई क्यों
नहीं दे रहा है !!
वक्त लगता है ... चाहे हम उजाले से अंधेरों में चलने का प्रयास करें या अंधेरे से उजाले में जायें एकबारगी अकबकाहट अवश्य होती ... सार्थक संदेश देती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
लगा शब्दों के परिधान में मैं हूँ - कैसे आखिर कैसे मुझे लिख दिया !और इधर उधर से अपने एहसासों को उठा लायी हूँ -
ReplyDelete"आज मैं जो हूँ
जिस भी मुकाम पर हूँ
उसमें जितना असर दुआओं का था
मौसम , आँखों के सपने का था
उतना ही जबरदस्त असर हादसों का था !"
"अपमान की आग जब लगी
तो,
हाथ सेंकनेवाले अपने ही थे !
मासूमियत का मुखौटा पहन
सिहरते हुए,
घी डालते गए !
बढती लपटों ने
कितनी भावनाओं को अपनी चपेट में लिया-
इससे बेखबर ,
हाथ सेंकते गए............
कुछ रहा ही नहीं कहने को,
और न कुछ अपना लगता है,
सिवाय उन बातों के -
जिसका पाठ
इन्होंने ही पढाया..............!!!!!!"
ज़िन्दगी हादसों से ना बने, दर्द अपनी शक्ल ना ले ले तो असली रूह भटकती ही रहती है
और मैं चकित हूँ
ReplyDeleteकि आज इस रोशनी में
मुझे कुछ भी
दिखाई क्यों
नहीं दे रहा है !!
निशब्द करती सशक्त अभिव्यक्ति
बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकभी अंधेरे भी अपने थे ... आज तेज़ रौशनी से दिल घबराता है .... ज़िंदगी के सफे पलटो तो ...न जाने क्या क्या गुज़र जाता है ....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से मन के भाव लिखे हैं ...
बहुत ही खूबसूरत शब्द चयन है कविता में .बेहद सम्वेदंयुक्त विचार बधाई
ReplyDeleteमुझे इस घनघोर तिमिर में
ReplyDeleteएक जुगनू की
लम्हा भर रोशनी भी
हज़ार सूरजों की ब्रह्माण्ड भर
रोशनी से कहीं अधिक
चौंधिया गयी है
बेहतरीन अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
"लम्हा भर रौशनी काफी है आगे बढ़ाने के लिए "|बहुत शानदार भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
badi lazabab rachna hai.....
ReplyDeleteरोशनी का एक कतरा
ReplyDeleteदिखाती है राह
हरदम हरपल
एक शानदार अभिव्यक्ति
सादर
शानदार ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन: ताकि आपकी गैस न निकले - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर रचना | भावों की अभिव्यक्ति उत्तम है | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ...... दिल के भीतर तक उतर गयी ....
ReplyDelete~सादर!!!
अचानक मिली रोशनी के अनुकूल बनने में दृष्टि को समय लगता है.धीरे-धीरे, थोड़ा सध कर सब स्पष्ट होने लगता है.
ReplyDeleteखुबसूरत एहसास, सुन्दर अभिव्यक्ति
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