Followers

Tuesday, February 19, 2013

उपहार






याद है
वर्षों पूर्व
दिया था 
एक लैम्प का
तुमने मुझे
यह उपहार,
जी जान से
उसे आज तक
सँजो कर रखती
आई हूँ मैं
हर बार !

वक्त की गर्द ने
फीकी कर दी है
उसकी सूरत,
अब वो बन कर
रह गया है
केवल एक
खंडहर सी मूरत ! 

हर बार छूने से
उसका कोई हिस्सा
टूट कर
गिर जाता है,
और मेरा
आकुल मन
उसे जोड़ने को
फेवीकोल की ट्यूब ले  
दौड़ा चला
जाता है !

जगह-जगह से जुड़ा
और समय की मार से
फीका पड़ चुका
यह जीर्ण शीर्ण
खंडित लैम्प
मेरे मन
और आत्मा
पर भी आघात
करता था,
और उसका यह
जर्जर रूप
मेरी आँखों को भी
हर बार
खटकता था ! 

फिर एक दिन
जी कड़ा कर मैंने
उस लैंप की
जर्जर हो चुकी
रूखी फीकी
साज सज्जा का
बाह्य आवरण   
उतार फेंकने के लिए  
अपने मन को 
मना लिया,
और स्वयं को
उसके भौतिक स्वरूप
के मोह से
मुक्त कर लेने का
दृढ़ संकल्प
अपने मन में
बना लिया !

जैसे-जैसे लैम्प की
ऊपरी परतें
उतरती गयीं 
मेरे मन का
अवसाद भी
घटता गया,
और अन्दर से
उसका जो रूप  
निकल कर
सामने आया  
उसे देख
मेरे मन का
विस्मय भी
हर पल
बढ़ता गया !
  
कई बार हाथों से
गिर कर
अनेकों बार
टूट कर फिर
जुड़-जुड़ कर
लैंप की ज्योति
जो बिलकुल मद्धम
पड़ गयी थी,
अब ऊपरी
जरा जीर्ण  
गंदी परतें
उतरते ही
बिलकुल नयी सी
चमक गयी थी !

सारे मिथ्या
आडम्बरों से
मुक्त हो 
वह ज्योति
अन्दर से जैसे
नयी ऊर्जा ले
पुनर्जीवित हो 
एक बार फिर से 
निकल आयी है,
और ऐसा लगता है
उसकी यह 
शांत धवल
उज्जवल रोशनी
मेरे मन के
कोने-कोने को
पावन कर   
दिव्य आलोक से  
जगमगाने के लिए
एक बार फिर 
चली आई है !


साधना वैद



16 comments :

  1. मन की रौशनी में ही सारी रौशनी समाहित हो जाती है ...........

    ReplyDelete
  2. कुछ भाषा नहीं है चुप हूँ ,अनुभव कर रहा हूँ
    latestpost पिंजड़े की पंछी

    ReplyDelete
  3. जगह-जगह से जुड़ा
    और समय की मार से
    फीका पड़ चुका
    यह जीर्ण शीर्ण
    खंडित लैम्प
    मन की पावनता से हर कोने को आलोकित कर रहा है और सदैव करता रहेगा ...

    ReplyDelete
  4. परिवर्तन में ही रास्ते की उजास है

    ReplyDelete
  5. मिथ्या आवरण ही मन को ज्यादा कष्ट पहुंचाता है ... हमें वस्तु से नहीं उसमें निहित भावनाओं से मन को आलोकित करना चाहिए ...बहुत सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छी बात कहती रचना


    सादर

    ReplyDelete
  7. मन की रौशनी से सब कुछ पाया जा सकता है,अतिसुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  8. मन की परतों को बेधने के बाद दिव्य आलोक से प्रकाशित होना लाज़िमी है।

    ReplyDelete
  9. मिथ्या आडम्बरों मुक्ति पाकर ही नई ऊर्जा का संचार होता है ,,,,

    Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,

    ReplyDelete
  10. अतिसुन्दर भावों से परिपूर्ण अभिव्यक्ति |अपने आप में पूर्ण रचना |बहुत बहुत बधाई उम्दा रचना के लिए |
    आशा

    ReplyDelete
  11. वाह ... बेहद उम्दा !


    आज की ब्लॉग बुलेटिन १९ फरवरी, २ महान हस्तियाँ और कुछ ब्लॉग पोस्टें - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  12. मिथ्यावरण दिव्य प्रकाश को हम तक आने नहीं देता लेकिन इसके हटते ही कोना-कोना आलोकित हो जाता है... बहुत सुन्दर भाव.. आभार

    ReplyDelete
  13. मन की ज्योति ही सब कुछ है ... पर शरीर का आवरण उतारा नहीं जाता .. उस रौशनी को पहचनाना नहीं जाता ...
    अर्थपूर्ण रचना है ...

    ReplyDelete
  14. एक सही सन्देश देने का अदभुत उदाहरण है यह कविता.

    ReplyDelete
  15. लैम्प के बिम्ब से मिथ्या आडम्बर से ढके मानस को समझाया ...परतों के बीच फंसे मन को एक बार जान लिया तो फिर सब रोशन ही है !

    ReplyDelete
  16. पहले तो आप मेरा आभार स्वीकार करे मेरे ब्लॉग पर आने का !
    रचना के भाव अर्थपूर्ण बहुत सुन्दर लगे ....जो नश्वर है हम उसे कितानाही सहेजनेकी कोशिश करे समय के साथ उसे एक दिन नष्ट होना ही है ...नश्वर में अनश्वर छिपा हुआ है पर हम मोहवश उसे देख नहीं पाते !

    ReplyDelete