अब तो राह की धूल भी
पैरों के लगातार
चलने से
पुँछ सी गयी है ,
और कच्ची पगडंडी पर
ज़मीन में सख्ती से
दबे नुकीले पत्थर
तलवों को घायल कर
लहू से लाल हो चले
हैं !
एक निष्प्राण होती
जा रही
प्राणवान देह का
इस तरह बिना रुके
चलते ही जाने का
मंज़र
हवायें भी दम साधे
देख रही हैं !
मैं चल रही हूँ
चलती ही जा रही हूँ
क्योंकि संसार की
झंझा में
रुकने के लिए कहीं
कोई
ठौर नहीं है !
अपनी प्रतिभा,
अपनी योग्यता सिद्ध
करने के लिए
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे !
छोटी सी ज़िंदगी के
थोड़े से दिन
सुख से जी लेने की
चाहना के लिए
और कितनी बार
इस तरह मरना होगा मुझे
!
हाँ ! लेकिन मुझे तो
तिल-तिल कर
हर रोज़ इसी तरह
मरना ही होगा
मुझे मिसाल जो बनना
है
आने वाली पीढ़ियों के
लिए !
इसलिये खुद के जीवन
में
चाहे अमावस का
अँधियारा
चहुँ ओर पसरा
हो
दीपक की तरह
स्वयं को जला कर मुझे
तुम्हारे लिए तो
राह रौशन करनी ही
होगी !
ताकि तुम्हारे लिए
यह सफ़र आसान हो जाये
!
और जब तुम
पीछे मुड़ कर देखो
तुम्हें अपने सिर पर
मेरे हाथों का मृदुल
स्पर्श मिल सके
और तुम्हारे
आशंकाओं से व्यग्र
भयभीत ह्रदय को
अपना भार हल्का
करने के लिये
मेरी ममता भरी
बाहों का संबल
मिल सके !
तुम निश्चिन्त हो
अपनी राह चलती जाना
मैं हूँ तुम्हारे
पीछे
तुम्हें सम्हालने के
लिए,
तुम्हारे साथ
तुम्हारा हाथ थामे
हर कदम पर
तुम्हें आश्वस्त
करने के लिए,
तुम्हारे आगे
तुम्हें रास्ता
दिखाने के लिए
ये जो राह पर
रक्त रंजित
पैरों के निशान
तुम देख रही हो
वो मेरे ही पैरों के
तो हैं
मुझे मिली हो या न
मिली हो
तुम्हें अपनी मंजिल
ज़रूर मिलेगी !
क्योंकि मैं आदि काल
से
ऐसे ही चलती जा रही
हूँ और
अनंत काल तक यूँ ही
चलती रहूँगी !
जब तक तुम न रुकोगी
मेरे पैर चाहे कितने
भी
लहूलुहान हो जायें
वे भी ऐसे ही चलते
रहेंगे
आखिर मुझे तुम्हारी
हिफाज़त जो करनी है !
साधना वैद
अपनी प्रतिभा,
ReplyDeleteअपनी योग्यता सिद्ध
करने के लिए
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे !............. यही सोचते हुए सोती हूँ ! पर जब नींद नहीं आती तो अलादीन का चिराग जल लेती हम ख़्वाबों के अँधेरे में,सिन्ड्रेला बनकर लाल परी से मिलती हूँ, कर्ण बनकर सो जाती हूँ
अपनी प्रतिभा,
ReplyDeleteअपनी योग्यता सिद्ध
करने के लिए
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे !............. यही सोचते हुए सोती हूँ ! पर जब नींद नहीं आती तो अलादीन का चिराग जल लेती हम ख़्वाबों के अँधेरे में,सिन्ड्रेला बनकर लाल परी से मिलती हूँ, कर्ण बनकर सो जाती हूँ
माँ के मन की पीड़ा तथा उत्कट इच्छा को व्यक्त करती हुई कविता -अति सुन्दर!
ReplyDeleteNew post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !
हर माँ चाहती है कि उसकी बेटी के रास्ते मेन कोई बाधा न आए .... इसी भाव को ले कर लिखी बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव....
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
माँ के अंतस के भावों की बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteमाँ इसके आगे और क्या चाह सकती है? चाहे कहीं भी रहे लेकिन आँखों से दूर बेटी के लिए कवच बन कर हमेशा साथ रहना चाहती है। भावपूर्ण रचना के लिए आभार !
ReplyDeletebhavon ka anootha sanyojan......
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleterecent post: गुलामी का असर,,,
चलती रहूँगी !
ReplyDeleteजब तक तुम न रुकोगी
मेरे पैर चाहे कितने भी
लहूलुहान हो जायें
वे भी ऐसे ही चलते रहेंगे
आखिर मुझे तुम्हारी
हिफाज़त जो करनी है !
भावपूर्ण अभिव्यक्ति... आभार
गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत गंभी र्विचारों वाली कविता |बढ़िया प्रस्तुति |हर माँ की यह तमन्ना होती है कि जो वह खुद न कर पाई उसके बच्चे करें |अति सुन्दर |
ReplyDeleteआशा
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
ReplyDeleteदिनांक 26/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
एक पीड़ा झलकती है इस रचना से. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDelete६४ वें गणतंत्र दिवस पर शुभकानाएं और बधाइयाँ.
ek avyakt peeda ko vyakt karti sundar prastuti..
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteVijay Saxena commented on your link.
Vijay wrote:
"Very pathetic but energetic,blowing whistle of sacrifice and awakening for greater cause.Our salute to you Sadhana for such a wonderful poem."
उत्कृष्ट भाव.....
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यिक्ति में ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर
nari ki sarthakta darshane wali perfect rachna
ReplyDeletepinki