जो तुम साथ दो
व्यर्थ की वर्जनाओं
के तिलस्म को तोड़ना है
टूटे हुए सिलसिले के
छिटके सिरों को जोड़ना है
मन पर पसरे
पूर्वाग्रह के दामन को छोड़ना है
विपरीत दिशा में
बहती धाराओं को मोड़ना है
जो तुम साथ दो !
बेसुर हुए सुरों को
प्रार्थना के गीत में ढालना है
आस्था की बुझती ज्योत
को मंदिर में बालना है
भावना के बिखरे
मनकों को एक सूत्र में डालना है
तुम्हारी अनुकम्पा
की टूटी आस को हृदय में पालना है
जो तुम साथ दो !
अपने पैरों से धरा
के अलंघ्य विस्तार को नापना है
नन्हे नन्हे पंखों
से व्योम की सीमाओं को मापना है
अपने बाजुओं में इन बेलगाम
हवाओं को बाँधना है
दुनिया भर की दुश्वारियों
को अपने अंतर में साधना है
जो तुम साथ दो !
अथाह सागर की उत्ताल
तरंगों को मुट्ठी में समेटना है
बालारुण की उजली
रश्मियों को उँगलियों में लपेटना है
उत्तुंग शिखरों के प्रशस्त भाल पर विजयाभिषेक करना है
हर कठिन लक्ष्य की दुर्गम
डगर पर दृढ़ता से पग धरना है
जो तुम साथ दो !
उपवन में खिले फूलों
के सुखकर सौरभ को बिखेरना है
मन में आकार लेती कल्पना
को कागज़ पर उकेरना है
सच्चिदानंद के मधुर रस
के लिये कड़वाहट को पेरना है
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के
मनकों की माला को फेरना है
जो तुम साथ दो !
साधना वैद
सुप्रभात
ReplyDeleteवाह क्या बात है |