यूँ ही इस दर्द से
रिश्ता मेरा पुराना है
छू के हर नक्श एक
दूसरे को जाना है !
बड़े दिनों से इससे
दोस्ती है, निस्बत है
बड़े दिनों से इसका
घर में आना जाना है !
न कभी भूले से भी साथ
इसने छोड़ा है
गवाही देने को तैयार
ये ज़माना है !
ज़माने भर में भले
छाई हो बहार-ए-चमन
हमारे दिल में तो
सहरा सा ये वीराना है !
यूँ ही रो लेने की
हमको तो महज़ आदत है
तेरे ना आने का तो
बस फकत बहाना है !
हैं दिल में ज़ख्म कई
नश्तरों के चुभने से
वो किसके हाथ थे इस दर्द
ने पहचाना है !
बस यही एक है हमदर्द
इस ज़माने में
सिवाय इसके यहाँ हर
कोई बेगाना है !
भुला दिये जो कभी
हमने दोस्ती के उसूल
सिखाये इसने ही कैसे
इन्हें निभाना है !
कहाँ मिलेगा ऐसा
दोस्त सारी दुनिया में
लिये चिराग फिरा
करता ये दीवाना है !
बने हैं दोनों ही हम
एक दूसरे के लिये
ना हमें ठौर ना उसको
कहीं ठिकाना है !
साधना वैद
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