(१)
दाता तेरे दान का, कोई ओर न छोर !
फिर भी डूबा लोभ में, पापी मन का चोर !
(२)
मालिक इतना दीजिये, जितनी है दरकार !
संचय के अपराध से, लीजे मुझे उबार !
(३)
अर्चन पूजन वंदना, किये नहीं स्वीकार !
मिली न अनुकम्पा कभी, व्यर्थ हुई मनुहार !
(४)
ना माणिक ना संपदा, देने को उपहार !
भाव कुसुम अर्पित करूँ, कर लो प्रभु स्वीकार !
(५)
रैन दिवस जपती रही, जिह्वा उनका नाम !
नैन बिछे हैं पंथ पर, बिना किये विश्राम !
(६)
इन्द्रिय सभी सचेत हैं, आहट पर हैं कान !
अंतर में मूरत बसी, उर में प्रभु का ध्यान !
(७)
बैठी काग़ज़ नाव में, करने सागर पार !
आ जाओ प्रभु तारने, थामो कर पतवार !
(८)
बाती बन जलती रही, डोर आस की थाम !
कौन जतन जानूँ सखी, कब आयेंगे राम !
साधना वैद
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