जहाँ तुम कहोगे वहीं मैं चलूँगी
जिधर पग धरोगे उधर पग धरूँगी !
जिधर पग धरोगे उधर पग धरूँगी !
जो चाहोगे मैं खुद को छोटा करूँगी
मैं पैरों के नीचे समा के रहूँगी !
जो चाहोगे दीवार पर जा चढूँगी
मैं तुमसे भी बढ़ कर ज़मीं नाप लूँगी !
मैं तुमसे भी बढ़ कर ज़मीं नाप लूँगी !
मैं पानी की लहरों पे चलती रहूँगी
मैं दुर्गम पहाड़ों पे चढ़ती रहूँगी !
मैं दुर्गम पहाड़ों पे चढ़ती रहूँगी !
जिधर तुम मुड़ोगे मैं संग में मुड़ूँगी
मैं हर एक कदम संग तुम्हारे बढूँगी !
मैं हर एक कदम संग तुम्हारे बढूँगी !
अंधेरों में तुमको मैं घिरने न दूँगी
अकेला कभी तुमको रहने न दूँगी !
अकेला कभी तुमको रहने न दूँगी !
रहूँगी सदा साथ परछाईं बन कर
मगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी !
मगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी !
मगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी !
साधना वैद
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteवाह !बहुत ख़ूब दी जी
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteरहूँगी सदा साथ परछाईं बन कर
ReplyDeleteमगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी
बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमस्कार
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी! आभार आपका !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका!
ReplyDeleteआपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी! आभार आपका!
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