आज कमला के हाथ कुछ
ज्यादह ही तेज़ी से चल रहे थे ! वैसे भी वह बहुत फुर्तीली है इसमें कोई संदेह नहीं !
“क्या बात है कमला
कहीं जाना है क्या ? आज तो तुम्हारा झाडू पोंछा बर्तन कपडे सारे काम आधे घंटे में
ही निबट गए ! ठीक से किये भी हैं या ऐसे ही बेगार टाल दी है ?” मेरी आवाज़ में
असंतोष झलक रहा था !
“कैसी बात करती हो
दीदी ! आप खुद ही देख लो न ! सारा घर चकाचक चमक रहा है ! मैंने दो घर और पकड़ लिए
हैं दीदी ! इतनी मंहगाई में दो तीन घरों के काम से गुज़ारा नहीं होता ! फिर आज मुझे
बाज़ार भी जाना है ! होली के त्यौहार पर बेटी दामाद घर आयेंगे तो कुछ तैयारी तो
करनी पड़ेगी ! बडकी की शादी के बाद की पहली होली है तो उसके सासरे में भी उसके सास
ससुर देवर जेठ के लिए कपडे, कचरी, पापड, बड़ी, मंगौरी, फल, मिठाई भेजनी पड़ेगी ! उसका
भी इंतजाम करना है नहीं तो ससुराल में उसे सबकी बातें सुननी पड़ेंगी ! दोनों लड़कों
की स्कूल की फीस भरनी है ! नए क्लास में आ जायेंगे तो कॉपी किताबें भी खरीदनी
पड़ेंगी ! आप ही बताओ और काम नहीं करूंगी तो कैसे इतने खर्चे पूरे होंगे !”
कमला का रेकॉर्ड
चालू हो गया था !
“क्यों तुम्हारा
घरवाला कुछ भी नहीं कमाता क्या ? सारी जिम्मेदारी तुम्हारी ही है ? वह भी तो
कारखाने में काम करता है ना ?” मुझे गुस्सा आ रहा था !
“कमाते क्यों नहीं
हैं ! खूब अच्छे पैसे मिलते हैं उन्हें ! लेकिन घर खर्च के लिए कभी सौ रुपये भी
नहीं दिए ! सारे पैसे दारू और जूए में कहाँ खर्च हो जाते हैं ये तो वो ही जाने !
उलटे मुझसे ही माँग कर ले जाते हैं ! मना कर दूँ तो रोज़ कलेस हो घर में !”
“अरे तो क्यों उसका
पल्लू थामे बैठी हो ! पीछा छुडाओ उससे अपना !” मैं उत्तेजित होकर बोली !
“कैसी बातें कर रही
हो दीदी ?” कमला का चेहरा बेरंग हो उठा था ! “वो जैसे भी हैं मेरे सारे तीज
त्यौहार चूड़ी, बिंदी, सिन्दूर, बिछुआ सब उन्हीं से तो हैं दीदी ! घर में पैसे नहीं
देते तो न सही पर बच्चों के सर पर बाप का साया तो है !”
अब अवाक होने की
बारी मेरी थी !
साधना वैद
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