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Saturday, August 12, 2017

यह कैसा विरोध




अपना विरोध और असहमति प्रकट करने का एक अजब ही ट्रेंड चल पड़ा है फेसबुक पर इन दिनों ! विशेष रूप से यदि किसी महिला की आलोचना करनी हो तो लोग बड़े दम ख़म के साथ तैयारी करके न केवल तीखे एवं अपमान जनक ढंग से उस लेखिका और उसकी पोस्ट की बखिया उधेड़ने में लग जाते हैं बल्कि उस पोस्ट को अपनी वाल पर शेयर कर लेते हैं और फिर अपनी ही सोच जैसे तमाम मित्रों को खुले तौर पर आमंत्रित करते हैं कि वे भी आकर उस लेखिका की पोस्ट और उसकी सोच की जी भर कर भर्त्सना करें और उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित करें ! यह और बात है कि रचनाकार ने रचना के माध्यम से क्या कहना चाहा है उसका धेला कौड़ी भी उनकी समझ में आया हो या न आया हो !  
ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ भी हुआ जब मेरी एक पोस्ट ‘वापिसीपर एक पाठक ने अत्यंत तीखी आलोचना कर मुझे कटघरे में खड़ा कर दिया कि मैं घोर अधर्मी हूँ ! सच बात केवल इतनी थी कि मैंने मंदिर, पूजा और पूजन विधि के बिम्ब को लेकर हमारी सामाजिक व्यवस्था की किसी और विसंगति की ओर इशारा कर अपनी पोस्ट लिखी थी जिसे वे महाशय ना तो समझ ही पाए ना ही स्वीकार कर पाए ! हद तो तब हो गयी जब उन्होंने अपनी वाल पर मेरी पोस्ट को शेयर कर लिया और अपनी जैसी ही रुग्ण मानसिकता वाले अपने कई मित्रों को मेरी पोस्ट पर टीका टिप्पणी के लिए आमंत्रित भी किया ! उनकी एक महिला मित्र ने तो त्वरित प्रतिक्रिया में यहाँ तक कह दिया कि मुझ जैसी लेखिका साहित्य और हिन्दू धर्म के नाम पर कलंक है ! खैर जैसी उनकी क्षुद्र मानसिकता वैसी ही उनकी प्रतिक्रिया ! इस पर चर्चा कर मैं क्यों अपना कीमती समय नष्ट करूं !

जो हुआ सो हुआ लेकिन इन सारी कवायदों के बाद एक बात मेरे मन को गहराई तक कचोटती रही कि स्वयं को आदर्श धर्मावलम्बी सिद्ध करने के लिए क्या सच में हमें अपने धर्म की कुरीतियों, कमियों, और कुप्रथाओं की ओर से आँखें मूँद लेनी चाहिए ? क्या उनका ज़िक्र कर देना ही हमें अधर्मी बना देता है ? जहाँ चिंतन ख़त्म हो जाएगा, जहाँ विमर्श ख़त्म हो जाएगा, जहाँ आत्म निरीक्षण, आत्म परीक्षण और आत्म विश्लेषण ख़त्म हो जाएगा, जहाँ नए विचारों और नयी नीतियों को अपनाने के विरोध में धर्म के तथाकथित झंडाबरदार खंभ ठोक कर तन कर खड़े हो जायेंगे तो वहाँ तो सडांध का पैदा होना अवश्यम्भावी है ! क्या शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुँह घुसा हर गलती हर कमी से आँखें मूँद लेना उचित है ? इसमें कोई संदेह नहीं कि शायद सबसे अधिक धर्म भीरु और आस्थावान होने के बावजूद भी सबसे अधिक गंदे, उपेक्षित और अव्यवस्थित हिन्दुओं के धर्म स्थल ही होते हैं ! यहीं सबसे ज्यादह कर्मकांड किये जाते हैं, अनेकानेक तरह की पूजन की विधियाँ हैं और शायद सबसे अधिक लूट खसोट भी है जिनके निराकरण की ओर किसीका ध्यान नहीं जाता ! उस पर विडम्बना यह है कि अपनी इन विधियों पद्धतियों पर सबसे अधिक गर्व भी हमें ही है ! जोर शोर से धर्म का डंका पीटने से हम कभी पीछे नहीं हटते और हर किस्म की गन्दगी से आँखें मूँदे स्वयं को महिमा मंडित करते रहने से ज़रा सा भी नहीं चूकते ! किस भुलावे में हम हैं यह मेरी समझ से परे है !

आपके सामने चंद दृष्टांत रखना चाहती हूँ जो मेरी आँखों के सामने ही घटित हुए हैं ! बद्रीनाथ के मंदिर में मैंने स्वयं वहाँ के व्यवस्थापकों को त्वरित दर्शन कराने के एवज़ में दर्शनार्थियों से २०००/- रुपये की रिश्वत की माँग करते हुए देखा है ! हुआ यूँ कि दर्शन हेतु लम्बी लाइन में घंटों से लोग खड़े हुए थे ! चींटी की रफ़्तार से लाइन आगे सरक रही थी ! हमसे आठ दस लोग आगे बड़ी दूर से आये एक दम्पत्ति भी उसी लाइन में लगे हुए थे ! उनको शायद उसी शाम अपने शहर वापिस लौटना था ! शाम की ट्रेन से वापिसी का रिज़र्वेशन था ! समय कम रह गया था इसलिए उन्होंने जो पुजारी व्यवस्था देख रहा था उससे कुछ जल्दी दर्शन करवा देने की अपनी अभिलाषा और समयाभाव की विवशता व्यक्त की ! पुजारी जी ने त्वरित दर्शन कराने की एवज़ में २००० रुपयों की माँग रख दी ! दर्शनार्थी ने जब इतने रुपये देने में अपनी असमर्थता जताई तो कुपित होकर उस पुजारी ने श्राप देकर कहा ,”भगवान् के दर्शन के लिए रुपयों का मोह कर रहे हो जाओ तुम्हारा कभी भला नहीं होगा !बताइये जो इंसान ईश्वर की कृपाकांक्षा के लिए सौ तरह की व्यवस्थाएं कर और अनेकों तकलीफें उठा अपने घर से इतनी दूर गया है तो उसके मन में प्रबल आस्था और भक्ति होगी तब ही गया होगा न ! कैसा लगा होगा उसे यह सब सुन कर ! हो सकता है उसके पास इतने पैसे हों ही नहीं ! यह हाल है हमारे तीर्थस्थलों का !

हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में अत्यधिक भीड़ में दम घुटने से महिला को बेहोश होते और अव्यवस्था और गन्दगी के चलते मंदिर की सीढ़ियों से फिसल कर एक व्यक्ति को परदेस में अपनी हड्डियाँ तुड़ाते हुए भी मैंने देखा है ! गया जी, मथुरा, जगन्नाथ पुरी, हरिद्वार, प्रयाग कहीं भी चले जाइए पण्डे किस तरह जिजमान का खून चूसते हैं इस अनुभव से आप में से अनेकों लोग गुज़र चुके होंगे ! सब जानते हैं कि मंदिरों में जो हार, चुनरी और नारियल चढ़ाए जाते हैं वही बैक डोर से फिर से बिकने के लिए बाहर दुकानों पर आ जाते हैं ! कितनों के पर्स, चेन, रुपये, घड़ियाँ, जूते चप्पल मंदिरों में गायब हो जाते हैं ! गर्भगृह में भगवान् की पूजा के समय जिस प्रकार से जल, दूध, पुष्प इत्यादि चढ़ाए जाते हैं और वहाँ पर तमाम फिसलन, गन्दगी और कीचड़ हो जाती है इसकी साफ़ सफाई की ओर किसीका ध्यान नहीं जाता ! भीड़ भाड़ की वजह से अक्सर दर्शनार्थी फिसल कर गिर जाते हैं और चोट खा जाते हैं ! मुझे भगवान से कोई बैर नहीं है ना ही उनके प्रति अश्रद्धा है ! लेकिन इस पकार की अव्यवस्थाओं से असंतोष अवश्य है ! ऐसा सिर्फ मंदिरों में ही क्यों होता है ! किसी भी गुरुद्वारे में, चर्च में, या मस्जिद में चले जाइए इस तरह की अव्यवस्था वहाँ तो नहीं दिखाई देती ! ना कोई शोर शराबा होता है, न कोई कर्मकांड और ना ही कोई लूट खसोट ! तो क्या अपने ईश्वर के प्रति उनकी आस्था हम हिन्दुओं से कम है ? या हमें बहुत अधिक पुण्य मिल जाता है और उन्हें कम ? या हम बहुत उच्च कोटि के भक्त हैं और वे निम्न कोटि के ? हर गली मोहल्ले में जहाँ कहीं भी जुगत लग जाती है भगवान् की कोई भी फोटो या मिट्टी की मूर्ति रख कर, दो अगरबत्ती जला कर और दो फूल चढ़ा कर पूजा का स्थान बना दिया जाता है ! यह भी देखने की कोशिश नहीं करते कि वह स्थान कितना साफ़ है ! मैंने घूरे पर चोरी की बिजली का कनेक्शन लेकर भगवान् का मंदिर बनाते हुए स्वयं अपनी आँखों से बस्ती के लोगों को देखा है ! रोकने टोकने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता ! तुरंत ही लोगों की धार्मिक आस्थाएं ‘आहत’ हो जाती हैं और वे बलवा करने पर उतारू हो जाते हैं ! मंदिर के पीछे घूरे के ऊँचे ढेर पर कुत्ते घूमते रहते हैं और भगवान् के प्रसाद को सफाचट कर जाते हैं इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता ! रोज़ का जेबखर्च जो निकल आता है ! मैंने इस पर एक पोस्ट भी लिखी थी –

 “अपना देश महान - घूरे पर भगवान्” ! लिंक इस प्रकार है -

 http://sudhinama.blogspot.in/2015/06/blog-post_19.html

क्या यह सब करते हुए हमारे धर्म का अपमान नहीं होता ? इस तरह गली मोहल्लों में, घूरे पर, या पेड़ों के नीचे आप लोगों ने कभी किसी गुरुद्वारे, चर्च या किसी मस्जिद की कोई शाखा उप शाखा देखी है ?

आप स्वयं विचार करें और जिस किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचें कृपया मुझे भी अवश्य अवगत करायें ताकि मैं भी अपनी शंकाओं का निवारण कर सकूँ और स्वयं को सुधार कर सही कर सकूँ ! आभार होगा आपका !



साधना वैद 

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