हम सब जानते हैं कि हमारा भारत एक धर्म प्रधान देश है ! और हम सभी किसी न किसी धर्म के अनुयायी हैं ! मन वचन कर्म से अपने धर्म के सभी निर्देशों, नीति नियमों और परम्पराओं का यथासाध्य पालन भी करते हैं ! हम में से अनेकों की तो दिनचर्या ही अपने मतानुसार मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे या चर्च में प्रार्थना और पूजा अर्चना के साथ शुरू होती है ! जानती हूँ कि सभी यथाशक्ति अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे या चर्च की दान पेटिका में प्रतिदिन दान स्वरुप कुछ न कुछ धन राशि भी अवश्य ही भेंट करते होंगे !
संशय की तो इसमें
कोई बात ही नहीं है क्योंकि विशिष्ट त्यौहारों पर जब
इस चढ़ावे की धन राशि का व्यौरा सार्वजनिक किया जाता है तो
कीमती रत्न जड़ित सोने चाँदी के अनेकों बहुमूल्य आभूषणों के अलावा करोड़ों रुपयों की
नकद धन राशि की जानकारी भी मिलती है ! भारत में लाखों मंदिर हैं ! छोटे बड़े हर
मंदिर में दान पेटिका अवश्य रखी होती है ! और भक्तों श्रद्धालुओं के हाथ वहाँ
पहुँचते ही बरबस अपनी जेबों में और पर्स में प्रवेश कर जाते हैं और जो मिलता है वह
फिर दान पेटिका के अन्दर चला ही जाता है !
विशिष्ट अवसरों पर
जैसे संतान के जन्म, मुंडन, नामकरण, विवाह आदि किसी भी मांगलिक संस्कार पर या परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु या श्राद्ध के अवसर पर श्रद्धालु
यजमान स्वयं ही अपनी
सामर्थ्य व विधि विधान के अनुसार पूजा अर्चना कर अभिषेक
या महाभिषेक की मन्नत मानते हैं एवं मंदिरों में जाकर सैकड़ों, हज़ारों, लाखों
रुपये भगवान् के चरणों में अर्पित कर स्वयं अपने महाप्रस्थान के समय स्वर्ग के द्वार खुले रखे जाने की गारंटी प्राप्त कर लेते हैं ! चलिए यह तो अपनी-अपनी आस्था और विश्वास की बात है ! समाज में जिसकी जैसी हैसियत, सामर्थ्य
और बैंक बेलेंस उसीके अनुसार दान धर्म की राशि के आगे शून्य जुड़ते चले जाते हैं !
मैं लोगों की इतनी
गहरी आस्था, निष्ठा और समर्पण की भावना देख कर चकित हो जाती हूँ ! कभी-कभी पूछने का मन होता है उनसे क्या सच में उन्हें इस बात पर विश्वास होता है कि अपने गाढ़े
पसीने की जो कमाई वे दान पेटिका में डाल रहे हैं उसमें से एक पैसा भी भगवान् वास्तव में स्वीकार करेंगे ? जिस भगवान् की हम उपासना कर रहे हैं क्या सच में उसका
कोई स्वरुप है या वह एक निराकार शक्ति मात्र है ? सारे संसार को चलाने वाले सर्व शक्तिमान भगवान् को क्या वाकई
आपके दान के उन पैसों की ज़रुरत है जिनसे
आप किसी बीमार का इलाज करा सकते हैं, किसी भूखे को खाना
खिला सकते हैं, किसी निर्धन बालक की फीस जमा कर सकते हैं या किसी
अपंग असहाय की सहायता कर सकते हैं ? आप जिस धन को भगवान्
के नाम पर दान पेटिका में डाल आते हैं उसे भगवान् ही ग्रहण करते हैं या वह पैसा उन
मंदिरों के मठाधीशों की जेब में चला जाता है और वे ज़रूरतमंद जिन्हें सच में संकट
निवारण के लिए उस धन की ज़रुरत है कष्ट भोगते रह जाते हैं ? जो पैसा बैंकों में जमा होता है वह तो फिर भी जनता को लोन के रूप में
मिल जाता है लेकिन मंदिरों में चढ़ाए गए रुपयों का कहाँ क्या उपयोग होता है और वे
किस खाते में जाते हैं इसकी जानकारी कम से कम सर्व साधारण को तो नहीं होती ! एक बात
लेकिन निश्चित रूप से तय है कि इस लाखों करोड़ों की धन राशि में से हमारे सर्व
व्यापी सर्व शक्तिमान भगवान् स्वयं अपने लिए तो एक रुपया भी नहीं उठाते !
ऐसा नहीं है कि सभी
मंदिरों में चढ़ावे के इस धन का दुरुपयोग ही हो रहा
है ! देश के अनेकों बड़े-बड़े मंदिरों में ट्रस्ट की व्यवस्था है और वहाँ के व्यवस्थापक इस धन का सदुपयोग सर्वसाधारण के लिए अस्पताल, विद्यालय, लाइब्रेरीज़ इत्यादि उपलब्ध कराने के लिए करते हैं !
कहीं-कहीं मेधावी छात्रों को इस धन से छात्रवृत्ति बाँटने की भी व्यवस्था
है ! लेकिन यह व्यवस्था भी दक्षिण भारत के बड़े-बड़े मंदिरों में और उत्तर भारत के
चंद प्रसिद्ध मंदिरों में ही है जिनकी व्यवस्था में प्रशासन का भी हाथ है ! इस
सत्कार्य में जितना धन व्यय हो रहा है वह उस धन राशि की तुलना में अत्यंत नगण्य है
जो चढ़ावे के रूप में जमा हो रही है ! मंदिरों की आमदनी का तो कोई हिसाब किताब है
ही नहीं ! हर शहर हर गाँव हर गली मोहल्लों में कितने मंदिर हैं इनकी तो गिनती भी
कोई ठीक से नहीं जानता !
आस्था, विश्वास, भक्ति अपनी जगह है लेकिन यह धन जो सर्व साधारण की जेब से निकल कर जमा हो रहा है इसका उपयोग कहाँ, किस प्रकार और किस काम के लिए हो रहा है इसे
जानने का अधिकार
हर नागरिक को होना चाहिए ! हर मंदिर के रख रखाव, वहाँ के कर्मचारियों के वेतन इत्यादि में खर्च हुई राशि के बाद बाकी धन का कहाँ सदुपयोग हुआ इसे जानने का अधिकार आम जनता को होना चाहिए ! इस सन्दर्भ में एक बिल्कुल स्वच्छ पारदर्शिता की ज़रुरत है ताकि आम जनता का विश्वास कम से कम अपने भगवान् पर से तो ना उठे !
साधना वैद
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