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Thursday, March 15, 2018

बदला






लेना चाहती हूँ बदला तुमसे
हर उस तिरस्कार का,
हर उस अवहेलना का, 
हर उस उपेक्षा का
जो मैंने तुमसे अभी तक पाई है ! 
बुझा दिए हैं मैंने सारे दिये,
तोड़ कर फेंक दी हैं 
सारी मोमबत्तियाँ,
बुझा दी है चाँद की लालटेन 
और टिमटिमाते तारों पर 
छोड़ दिया है आहों का गुबार 
कि उनकी धुंधली रोशनी 
और मंद और मद्धम हो जाये ! 
इस निपट नीरव अन्धकार में 
बस ये जुगनू ही हैं 
जिन पर कोई वश नहीं है मेरा 
ये आनायास ही चमक कर 
चकाचौंध कर जाते हैं 
मेरी आँखों को 
और पानी के ठन्डे छींटे मार जाते हैं 
मेरे हृदय में प्रज्वलित उस आग पर 
जिसमें मैं स्वयं को जला कर 
भस्म कर देना चाहती हूँ 
सिर्फ इसलिये कि 
मेरे यूँ मिट जाने की खबर से 
थोड़ी सी भी नमी 
जो तुम्हारी आँखों में 
बरबस ही आ आयेगी 
मेरी खुशी की शायद 
सबसे बड़ी वजह होगी 
और शायद वही 
मेरे दग्ध हृदय को भी
कुछ तो शीतल कर ही जायेगी !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद

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