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Tuesday, April 3, 2018

इससे तो प्यास ही भली





जीवन की हर शै इन दिनों
कितनी मुश्किल होती जा रही है !
चंद कदम भी और बढ़ाना जैसे  
अब दुश्वार होता जा रहा है !  
नहीं जानती मैं ही थक गयी हूँ
या ज़िंदगी की रफ़्तार तेज़ हो गयी है !
ऐसा लगता है जैसे
मैं पिछड़ती ही जा रही हूँ और
ज़िंदगी आगे भागती जा रही है ! 
कितना मुश्किल हो जाता है
हर कदम पर खुद को
सिद्ध करते हुए जीना !
कितना कुंठित कर जाता है
हर छोटी से छोटी बात के लिए
अपने अधिकारों की
दुहाई देते हुए जीना !
और कितना पीड़ादायक हो जाता है
हर वक्त अपने अस्तित्व
अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए
अस्त्रों को पैना करते हुए जीना !
क्या पल भर का भी सुकून
हासिल हो पाता है इतने
विप्लवकारी संघर्ष के बाद ?
फिर किसलिए इतना झमेला !
विष के इतने कड़वे घूँट
पीने के बाद यदि
अमृत की एकाध बूँद ही मिलना
नसीब में हो तो फिर
उस प्राप्य का मोल ही क्या !
इससे तो प्यास ही भली !



चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

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