समझ में नहीं आता हम विकास के किस पथ पर अग्रसर हैं ! अभी तक नाबालिग बच्चियों के साथ दिल दहलाने वाली दुष्कर्म की ख़बरें सुनाई देती थीं ! अब तो दुधमुंही चार माह और आठ माह की बच्चियों के साथ हैवानियत की ख़बरें सुनाई देने लगी हैं ! सख्त क़ानून बनाने के बाद भी ऐसी घटनाओं में कमी आने की जगह दिनों दिन और वृद्धि होती जा रही है ! इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी न्याय व्यवस्था की धीमी गति और लचीलापन ! सालों गुज़र जाते हैं कोर्ट कचहरी में मुकदमे चलते रहते हैं ! अपराधी बेख़ौफ़ रहते हैं ! समय के साथ बात आई गयी हो जाती है ! रोजाना की हज़ारों समस्याओं के चलते लोगों का आक्रोश भी मंद पड़ जाता है ! साक्ष्य मिट जाते हैं या मिटा दिए जाते हैं ! गवाह बिक जाते हैं या मुकर जाते हैं या खामोश कर दिए जाते हैं और कालान्तर में अपराधी या तो बाइज्ज़त बरी हो जाते हैं या मामूली सज़ा काट कर मूंछों पर ताव देते फिर समाज की मुख्य धारा में आ मिलते हैं ! एक बार तो किसी ऐसे अपराधी को जनता के सामने चौराहे पर फाँसी दी जाए ताकि औरों के लिए यह एक सबक बन सके ! कभी तो कोई ऐसा ठोस कदम उठाया जाए कि जनता का भरोसा अपनी न्याय व्यवस्था पर डगमगाने की बजाय और मज़बूत हो सके ! काश...... !
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