अब तो आ जाओ
युग युगांतर से
तुम्हारा इंतज़ार करते करते
तुम्हें ढूँढ़ते ढूँढते न जाने
कितनी सीढ़ियाँ चढ़ कर
आ पहुँची थी मैं फलक तक
और बुक कर लिया था
आसमान का सबसे शानदार
सबसे मंहगा चन्द्रमहल
हमारे तुम्हारे लिए !
उसकी सबसे खूबसूरत
बड़ी सी छत पर
बिछा लिया था मैंने
यह सितारों टंका आलीशान कालीन
हमारे तुम्हारे शयन के लिए !
दिन पर दिन बीतते गए
पर तुम न आये !
मैं किराया न दे पाई
और ये चाँद भी रूठ गया
मेरा सारा सामान
बाहर फेंक दिया उसने और
अपने चन्द्र महल के लगभग
सारे ही कमरे बंद कर लिए !
बड़ी मिन्नत और चिरौरी के बाद
बस दो दिन की और
मोहलत दी है उसने
देख रहे हो ना मुझे
कितनी थक गयी हूँ मैं
जूझते जूझते !
बड़ी मुश्किल से टिकी हुई हूँ
दूज के इस चाँद का
एक दरवाज़ा थामे
इन दो दिनों में भी
जो तुम न आये तो
यह दरवाज़ा भी बंद हो जाएगा
चन्द्रमहल दृष्टि से ओझल हो जाएगा
और मैं आसमान से नीचे
गिर जाउँगी धरा पर
फिर कभी न उठने के लिए
इसलिए अब तो आ जाओ !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 25 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! दिल से आभार आपका ! सप्रेम वन्दे सखी !
Deleteनमस्कार यशोदा जी ! पिछले दो तीन बार से 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' का पेज आपकी दी हुई लिंक से खुल नहीं पा रहा है ! आज भी नहीं खुला ! कृपया देखिएगा लिंक गलत है या कोई और समस्या है ! सादर !
Deleteमनोभावों का सुन्दर चित्रण।
ReplyDeleteसुंदर कल्पना संजोयी है । अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteऔर बुक कर लिया था
ReplyDeleteआसमान का सबसे शानदार
सबसे मंहगा चन्द्रमहल
हमारे तुम्हारे लिए !
Awesome... बेहतरीन..।
नया अंदाज़..
साधुवाद
हार्दिक धन्यवाद वर्षा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन आदरणीय दी।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteअनूठी कल्पना, बहुत सुंदर रचना। सादर।
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी ! आभार आपका !
Deleteसच,इंतज़ार के ये दिन कल्पना में भी डरावने है। किसी के इंतज़ार की ये इंतहां है,सुंदर कल्पना लोक की सैर करती लाज़बाब सृजन दी, सादर नमन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमार्मिक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार जितेन्द्र जी ! स्वागत है !
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteस्वागत है आपका विमल कुमार जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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