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Saturday, November 20, 2021

पंडित जवाहर लाल नेहरू एक लेखक के रूप में

 


हमारे देश भारत के प्रथम प्रधान मंत्री, हमारे प्रिय नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू, राजनीति के क्षेत्र में जितने सफल, प्रभावशाली, लोकप्रिय एवं नेता थे वे उतने ही महान दार्शनिक, एक अति संवेदनशील विचारक एवं अनुसंधनात्मक पैनी दृष्टि रखने वाले एक सिद्धहस्त लेखक भी थे !

प्रख्यात लेखक विजय शंकर सिंह लिखते हैं कि, “जवाहर लाल नेहरू अगर प्रधान मंत्री न होते तो भी यह विश्व उन्हें एक महान लेखक के रूप में याद रखता ! एक ऐसा लेखक जिसकी इतिहास दृष्टि ने इस देश की संस्कृति की अलग तरह से व्याख्या की और देश की सांस्कृतिक विरासत को व्याख्यायित किया ! नेहरू कोई अकादमिक इतिहासकार नहीं थे लेकिन उनकी समृद्ध इतिहास दृष्टि ने उन्हें एक अलग और विशिष्ट तरह के इतिहास लेखक के रूप में स्थापित किया !”

नेहरू जी द्वारा रचित कुल चार पुस्तकें प्रकाशित हुई !

लेटर्स फ्रॉम ए फादर टू ए डॉटर

द ग्लिम्पेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री

एन ऑटोबायोग्राफी

द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया

नेहरू जी का बचपन और शिक्षा का काल अवश्य ऐशो आराम में बीता लेकिन इंग्लैण्ड से अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब वे स्वदेश लौट कर आये यहाँ चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलन में उन्होंने भी दिलचस्पी लेना शुरू कर दी ! वे गाँधी जी के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन में उनके सहयात्री बन गए और सन् १९१९ में हुए जलियाँवाला काण्ड के बाद वे पूरी तरह से इस आन्दोलन में कूद पड़े ! लिहाजा उनकी गतिविधियाँ अंग्रेज़ शासकों की आँखों में चुभने लगीं और उन्हें कई बार जेल की हवा खानी पड़ी ! स्वाधीनता संग्राम की इस लड़ाई में नेहरू जी को नौ बार कारावास की सज़ा सुनाई गयी ! कभी कुछ दिनों के लिए’ कभी कुछ महीनों के लिए, तो कभी कुछ साल के लिए ! कुल मिला कर नेहरू जी ने नौ साल देश के विविध कारागारों में बिताये ! वे अलग अलग समय में लाहौर, अहमदनगर, अल्मोड़ा, देहरादून, बरेली, लखनऊ व इलाहाबाद की नैनी सेन्ट्रल जेल में बंद रहे ! लेकिन उनके अन्दर के लेखक ने  कारावास के इस त्रासद काल को सबसे अधिक सकारात्मक एवं रचनात्मक काल के रूप में परिवर्तित कर लिया ! उनका अधिकतर लेखन जेल में ही हुआ क्योंकि अन्य कोई सामाजिक, पारिवारिक अथवा राजनीतिक गतिविधि न होने की वजह से उनके पास अध्ययन और लेखन के लिए पर्याप्त समय होता था जिसका उन्होंने भरपूर सदुपयोग किया !

नेहरू जी स्वभाव से ही स्वाध्यायी थे। उन्होंने महान् ग्रंथों का अध्ययन किया था। सभी राजनैतिक उत्तेजनाओं के बावजूद वे स्वाध्याय के लिए रोज ही समय निकाल लिया करते थे। परिणामस्वरूप उनके द्वारा रचित पुस्तकें भी एक अध्ययन-पुष्ट व्यक्ति की रचना होने की सहज प्रतीति कराती हैं ! नेहरू जी द्वारा रचित चार पुस्तकें सर्वाधिक चर्चित हैं !

उनकी पहली पुस्तक, ‘लेटर्स फ्रॉम ए फादर टू ए डॉटर’,अपने आप में अनूठी पुस्तक है ! ये पत्र उन्होंने अपने इलाहाबाद प्रवास के दौरान लिखे थे जब इंदिरा जी मसूरी के स्कूल में पढ़ रही थीं ! इन पत्रों के माध्यम से अपनी पुत्री इंदिरा को उन्होंने इतिहास के साथ साथ वन्य जीव जंतुओं, विकास के सिद्धांत एवं अन्य अनेकों विषयों के बारे में बताया है और उनकी बाल सुलभ जिज्ञासाओं का समाधान भी किया है ! इस पुस्तक का प्रकाशन सन् १९२९ में हुआ ! मूल रूप से ये पत्र अंग्रेज़ी में लिखे गए थे जिनका हिन्दी अनुवाद हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने किया था ! अपनी बेटी इंदिरा को लिखे गए इन पत्रों के माध्यम से राजनेता नेहरू के विराट व्यक्तित्व में समाये एक आदर्श पिता के संवेदनशील हृदय के दर्शन भी हो जाते हैं जो परिस्थितिवश पुत्री से दूर रहने पर भी उसके सम्पूर्ण बौद्धिक विकास के लिए चिंतित भी है और प्रयत्नशील भी ! यह पुस्तक बच्चों के सामान्य ज्ञानवर्धन के लिए बहुत ही उपयोगी है ! इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद, ’पिता के पत्र पुत्री के नाम’ सन् १९३१ में प्रकाशित हुआ !

नेहरू जी की दूसरी चर्चित पुस्तक है, ‘द ग्लिम्प्सेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ !   

नेहरू जी जब पाँचवी बार इलाहाबाद की नैनी सेन्ट्रल जेल में दो साल सश्रम कारावास की सज़ा भुगत रहे थे उस दौरान उन्होंने विश्व के इतिहास से जुड़े विशिष्ट सन्दर्भों और तथ्यों को समेटे अनेक पत्र अपनी पुत्री इंदिरा नेहरू को लिखे जो कालान्तर में ‘द ग्लिम्प्सेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ के नाम से संकलित और प्रकाशित हुए ! मोटे तौर पर यह पुस्तक विश्व इतिहास की घटनाओं का एक सिलसिलेवार विवरण देती है ! इसे इतिहास की टेक्स्ट बुक या एकेडेमिक पुस्तक का दर्ज़ा तो नहीं दिया जा सकता लेकिन यह विश्व भर में घटने वाली घटनाओं का रोचक विवरण अवश्य प्रस्तुत करती है ! इस पुस्तक में उन्होंने एशिया के साम्राज्यों के उत्थान और पतन की तर्ज़ पर सभ्यताओं के उत्थान और पतन को रेखांकित करने का प्रयास किया है ! यह पुस्तक पत्र शैली में लिखी गयी है ! इतिहास को लिखने का यह भी एक अभिनव प्रयोग ही माना जाएगा ! यह पस्तक सन् १९३४ – ३५ में प्रकाशित हुई !

इन्ही दिनों नेहरू जी की आत्मकथा ‘माय ऑटोबायोग्राफी’ भी प्रकाशित हुई ! इस पुस्तक के लेखन के समय नेहरू जी युवा थे ! इसमें जो लिखा है वह नेहरू जी का अपने क्रिया कलापों का स्वयं अपने ही द्वारा किया गया ईमानदार विवेचन है ! इस आत्मकथा को सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता क्योंकि इसके बाद भी नेहरू जी ने सार्वजनिक रूप से दीर्घ जीवन जिया, अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिए जिनके सही गलत होने के विवाद अभी तक राजनीति के गलियारों में जब तब उठते रहते हैं ! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री बने ! देश का विभाजन हुआ और इस विभाजन का ठीकरा नेहरू जी के सर पर फोड़ा गया ! लेकिन ये सारी घटनाएँ उनकी आत्मकथा के लिखने के बाद घटित हुई इसलिए इन सारी बातों का ज़िक्र उनकी आत्मकथा में नहीं मिलता क्योंकि पुस्तक में लिखी उनकी आत्मकथा का काल सन् १९३२ - ३३ तक का ही है ! लन्दन टाइम्स ने इस आत्मकथा को  पठनीय पुस्तकों की श्रेणी में रखा था ! इस पुस्तक का प्रकाशन सन् १९३४ में हुआ !

‘द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ नेहरू जी की सबसे अधिक सफल, लोकप्रिय और परिपक्व पुस्तक के रूप में जानी जाती है ! यह पुस्तक उन्होंने अपनी नौवीं व अंतिम जेल यात्रा के समय में लिखी थी जब उन्हें चार साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गयी थी ! इस बार उन्हें सबसे पहले अहमदनगर किले की जेल में रखा गया, फिर बरेली सेन्ट्रल जेल भेजा गया और फिर वहाँ से उन्हें अल्मोड़ा स्थानांतरित कर दिया गया ! नेहरू जी की इस पुस्तक को देश विदेश के इतिहासकारों, विद्वानों, आलोचकों एवं पाठकों का बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिला ! ‘भारत एक खोज’ के नाम से दूरदर्शन पर निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल ने इस पुस्तक को आधार बना कर एक बहुत ही शानदार धारावाहिक भी बनाया जिसे दर्शकों की भूरी भूरी प्रशंसा मिली ! इस पुस्तक में सम्पूर्ण भारत की एक यात्रा है, वेदों और पुराणों के समय से लेकर आधुनिक काल तक का इतिहास है, संस्कृति, सभ्यता, रीति रिवाज़ और परम्पराओं का वर्णन है और इस पुस्तक में नेहरू जी का अपने देश भारत के प्रति गर्व का अनन्य भाव भी परिलक्षित होता है ! नेहरू जी के जीवनीकार एम जे अकबर के अनुसार उनकी दोनों ही पुस्तकें, ‘विश्व इतिहास की एक झलक’ और ‘भारत एक खोज’ उनकी लेखकीय प्रतिभा को ही नहीं उनके पांडित्य को भी प्रदर्शित करती हैं ! ‘भारत एक खोज’ पुस्तक का प्रकाशन सन् १९४४ में हुआ !

नेहरू जी इतिहास के विद्यार्थी नहीं थे न ही वे कोई इतिहासकार थे लेकिन उन्होंने अतीत को अपनी विलक्षण दृष्टि से देखा और जैसा देखा उसे वैसा ही प्रस्तुत कर दिया ! अपने लेखन के सन्दर्भ में नेहरू जी ने स्वयं लिखा है,

“अतीत मुझे अपनी गर्माहट से स्पर्श करता है और जब वह अपनी धरणा से वर्तमान को प्रभावित करता है तो मुझे हैरान भी कर देता है !”

समस्त राजनीतिक विवादों से दूर नेहरू जी निःसंदेह एक उत्तम लेखक थे ! उनके लेखन में एक साहित्यकार के भावप्रवण तथा एक इतिहासकार के खोजी हृदय का मिला-जुला रूप सामने आया है ! इन पुस्तकों के अतिरिक्त नेहरू जी ने अगणित व्याख्यान दिये, लेख लिखे तथा पत्र लिखे ! इनके प्रकाशन हेतु 'जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि' ने एक ग्रंथ-माला के प्रकाशन का निश्चय किया। इसमें सरकारी चिट्ठियों, विज्ञप्तियों आदि को छोड़कर स्थायी महत्त्व की सामग्रियों को चुनकर प्रकाशित किया गया ! जवाहरलाल नेहरू वांग्मय नामक इस ग्रंथ माला का प्रकाशन अंग्रेजी में 15 खंडों में हुआ तथा हिंदी में सस्ता साहित्य मंडल ने इसे 11 खंडों में प्रकाशित किया है !

 

साधना वैद


2 comments :

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

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