कल भी तमाम शाम
इक मजमा लगा रहा
अब आ रहा है
कोई और कोई जा रहा !
था जिसपे एतमाद
हमें रब से भी ज्यादह
वह शख्स एतबार
के काबिल नहीं रहा !
खेली हरेक चाल
उसने इस शऊर से
कुछ भी हमारे
वास्ते हासिल नहीं रहा !
एक कारवाँ के
साथ चले थे सफ़र में हम
अब हो गए तनहा
कोई शामिल नहीं रहा !
हर रोज़ यूँ मरते
रहे जिसकी वजह से हम
करके हमारा
क़त्ल वो कातिल नहीं रहा !
बहके कदम तो
तान के चादर वो सो गया
सारे जहाँ के
सामने गाफिल नहीं रहा !
महफ़िल में सबके
सामने खामोश वो रहा
यूँ आलिमों की
भीड़ में जाहिल नहीं रहा !
चेहरे पे पहन रखे थे उसने कई चेहरे
करने को बेनकाब
उसे दिल नहीं रहा !
क्यों अजनबी
चेहरों में उसे ढूँढती हूँ मैं
लोगों की भीड़
में कोई बिस्मिल नहीं रहा !
साधना वैद
महफ़िल में सबके सामने खामोश वो रहा
ReplyDeleteयूँ आलिमों की भीड़ में जाहिल नहीं रहा !
वाह दीदी वाह ! हर एक शेर गज़ब का है।
आदरणीया दीदी, पिछले काफी समय ब्लॉग से दूरी हो गई थी। अब लौटने की कोशिश कर रही हूँ। कल से आप का अगरतला का यात्रा वर्णन शुरू किया है, इतना रोचक है कि कितना समय बीत गया पता ही नहीं चला। सत्रह भाग हैं, आधे से अधिक तो पढ़ लिया है बाकी एक दो दिनों में पूरा हो जाएगा। मैंने भी पिछले बारह महीनों में कई यात्राएँ की हैं, उन पर लिखने का भी सोचा पर हो नहीं पाया। सादर।
अरे वाह मीना जी ! हार्दिक धन्यवाद आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए ! आप मेरा यात्रा वृत्तांत पढ़ रही हैं जान कर बहुत प्रसन्नता हुई ! आजकल ब्लॉग पर लोगों का आना नगण्य सा ही हो गया है ! आप पढ़ें भी और मेरी कमियों की ओर भी अवश्य संकेत करें ! आपके सुझावों का स्वागत है ! आपने मेरे लेखन में रूचि दिखाई आपका हृदय के अंतस्तल से बहुत बहुत आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteवाह. गज़ब.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुमन जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteवाह. गज़ब. aap sab mere blog se bhi smbndh bnaaye didi.hme bhi aapke aashirvaad ki zrurat hai.be happy.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका !
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