पुलकित वसुधा
किये हुए है कैसा यह अतुलित श्रृंगार
लिए हाथ में थाल सुसज्जित खड़ी खोल कर स्वागत द्वार
हुआ आगमन प्रियतम का, अब होगा हर दुविधा का अंत
होंगे तृप्त नयन आतुर अब होंगे प्रगट हृदय उद्गार !
आ गयी मनोहर मन
भावन यह पावन ऋतु मधुमास की
गा रहे विहग हुलसित मन से करते बतियाँ मृदु हास की
आया वसंत धीरे-धीरे, हाथों में ले फूलों के बाण
चहुँ ओर महक है फ़ैल रही सुरभित सुमनों की श्वास की !
खेतों में
लहराई सरसों, हरियाली छाई मधुबन में
पीले चावल की खुशबू से, हर कोना सुरभित है घर में
माता सरस्वती का दिन है हम नत शिर उनका ध्यान धरें
आओ बाँटें मिल कर ख़ुशियाँ, हों स्वस्थ सुखी सब जीवन में !
साधना वैद