बाँध लिया था मैने तुम्हें
अपने नैनों की सुदृढ़ डोर से ।
इसी भ्रम में रही कि
तुम सदा मेरे नैनों की कारा में
बंद रहोगे और कभी भी
इनके सम्मोहन से तुम
मुक्त नहीं हो सकोगे ।
लेकिन भूल थी यह मेरी
मेरे नयनों की यह डोर
जिसे मैं मजबूत श्रृंखला
समझती आ रही थी
सूत से भी कच्ची निकली
और तुम भी तो निकले
नितांत निर्मोही, निर्मम
एक झटके में तोड़ कर इसे
जा बैठे दूर परदेस में
निष्ठुर कान्हा की तरह
और इस बार फिर
एकाकी रह गई
एक और राधा
जीवनपर्यंत भटकने को
संसार की अंधी गलियों में ।
साधना वैद
🙏🌹🌹🌹🙏
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