यह चश्मा भी अजब बवाल है
उम्र का कोई भी हिस्सा हो
जीवन की हर शै में इसीका धमाल है !
जब हम खुद छोटे थे जीवन देखा
मम्मी पापा के चश्मे से
उनकी अनुमति के बिना तनिक भी कुछ
आर पार जा न सका इस चश्मे में से !
जो उन्होंने दिखाना चाहा हमें
अपने चश्मे से हमने देख लिया
और उसे ही अपने जीवन का
परम सत्य मान सहेज लिया !
शादी के बाद घर बदल गया
भूमिका बदल गयी और
जीवन का दर्शन कराने वाली
आँखें बदल गयीं !
तो दोस्तों, बज़ाहिरा आँखों पर चढ़ा
चश्मा भी बदल गया !
यह चश्मा था हमारे परम आदरणीय
सासू जी और ससुर जी का
और नज़रिया था उनकी अपनी
सर्वथा विभिन्न मानसिकता और सोच का !
अब हम जीवन की हर सच्चाई को
उनके चश्मे से देख रहे थे
और अपने पुराने आदर्शों सिद्धांतों
और जीवन मूल्यों को तोड़ मरोड़ के
कचरे के डिब्बे
में फेंक रहे थे !
हमें अभी तक अपनी आँखों पर
अपना चश्मा चढ़ाने का
कभी मौक़ा ही नहीं मिला
हम करें तो करें क्या और
करें भी तो किससे करें गिला ?
आधी उम्र बीत गयी यूँ ही
औरों के चश्मों से दुनिया देखते
मन की मन में ही रह गयी और
हम रह गए अपना जिगर मसोसते !
किस्मत से हमारी व्यथा देखी न गयी
हमारी दृष्टि भी धुँधला ही गयी
और अपनी आँखों पर चश्मा चढ़ाने की
हमारी भी बारी आ ही गयी !
बच्चे भी तो बड़े हो चले हैं
उन्हें दीन दुनिया की अभी समझ कहाँ
इतिहास को तो स्वयं को दोहराना ही होगा
क्या करें दोस्तों ! अपने बच्चों को हमें
अपनी आँखों पर चढ़े इस चश्मे से ही
दुनिया का दीदार कराना होगा !
साधना वैद