Followers

Wednesday, August 19, 2020

चश्मा

 

यह चश्मा भी अजब बवाल है

उम्र का कोई भी हिस्सा हो

जीवन की हर शै में इसीका धमाल है !

जब हम खुद छोटे थे जीवन देखा

मम्मी पापा के चश्मे से

उनकी अनुमति के बिना तनिक भी कुछ

आर पार जा न सका इस चश्मे में से !

जो उन्होंने दिखाना चाहा हमें

अपने चश्मे से हमने देख लिया

और उसे ही अपने जीवन का

परम सत्य मान सहेज लिया !

शादी के बाद घर बदल गया

भूमिका बदल गयी और

जीवन का दर्शन कराने वाली

आँखें बदल गयीं !

तो दोस्तों, बज़ाहिरा आँखों पर चढ़ा

चश्मा भी बदल गया !

यह चश्मा था हमारे परम आदरणीय

सासू जी और ससुर जी का

और नज़रिया था उनकी अपनी

सर्वथा विभिन्न मानसिकता और सोच का !

अब हम जीवन की हर सच्चाई को

उनके चश्मे से देख रहे थे

और अपने पुराने आदर्शों सिद्धांतों

और जीवन मूल्यों को तोड़ मरोड़ के

कचरे के डिब्बे
में फेंक रहे थे !

हमें अभी तक अपनी आँखों पर

अपना चश्मा चढ़ाने का

कभी मौक़ा ही नहीं मिला

हम करें तो करें क्या और 

करें भी तो किससे करें गिला ?

आधी उम्र बीत गयी यूँ ही

औरों के चश्मों से दुनिया देखते

मन की मन में ही रह गयी और

हम रह गए अपना जिगर मसोसते !

किस्मत से हमारी व्यथा देखी न गयी

हमारी दृष्टि भी धुँधला ही गयी

और अपनी आँखों पर चश्मा चढ़ाने की

हमारी भी बारी आ ही गयी !

बच्चे भी तो बड़े हो चले हैं

उन्हें दीन दुनिया की अभी समझ कहाँ

इतिहास को तो स्वयं को दोहराना ही होगा 

क्या करें दोस्तों ! अपने बच्चों को हमें

अपनी आँखों पर चढ़े इस चश्मे से ही

दुनिया का दीदार कराना होगा !

 

साधना वैद

Sunday, August 16, 2020

भारत मेरी शान है

 

 15 August 2020 Speech, Images | Happy Independence Day 2020

मैं भारत की बेटी हूँ

और भारत मेरी शान है

जग में नहीं है इस सा कोई

मेरा देश महान है !

बहती राम नाम की सरिता

हो गीता का ज्ञान जहाँ 

योगी ऋषि मुनियों की भूमि

देवों का गुणगान जहाँ

उस पावन धरती की माटी

हर मस्तक का मान है !

मैं भारत की बेटी हूँ

और भारत मेरी शान है !

मुझे मान है इस धरती के

नदिया पर्वत अम्बर पर

मुझे गर्व चरणों को धोते

विनत भाव से सागर पर !

कण्ठ कण्ठ से जहाँ फूटता

भारत माँ का गान है

मैं भारत की बेटी हूँ

और भारत मेरी शान है !

रामराज्य की जहाँ कल्पना

होती हैं साकार अभी

वेद पुराण उपनिषद पावन

पढ़ते हों विद्वान् सभी

उस भारत की पुण्य भूमि पर

मुझे बड़ा अभिमान है !

मैं भारत की बेटी हूँ

और भारत मेरी शान है !



साधना वैद 

Thursday, August 13, 2020

घटायें सावन की

 

घटायें सावन की
सिर धुनती हैं
सिसकती हैं
बिलखती हैं
तरसती हैं
बरसती हैं
रो धो कर
खामोश हो जाती हैं
अपने आँसुओं की नमी से
धरा को सींच जाती हैं
हज़ारों फूल खिला जाती हैं
वातावरण को
महका जाती हैं
और सबके होंठों पर
भीनी सी मुस्कान
बिखेर जाती हैं !

साधना वैद

Wednesday, August 12, 2020

जन्मे कन्हाई

 आप सभीको श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं !



कब आओगे
इस कलयुग में
कृष्ण कन्हाई


उस युग के
अर्जुन को तुमने
राह दिखाई


आज निहारें
अनगिन अर्जुन
राह तुम्हारी


आ जाओ अब
जग तारण प्रभु
कृष्ण मुरारी


हुई स्वीकृत
हमारी मनुहार
जन्मे कन्हाई


मंगल छाया
स्वर्ग से धरा तक
सृष्टि हर्षाई


अल्हड़ नदी
छूकर प्रभु पग
हुई निहाल


राह बनाई
बाँट कर अपना
पाट विशाल


आनंद छाया
हर जन हर्षाया
गोकुल धाम


करे स्वागत
देवकीनंदन का
समूचा ग्राम


आये मोहन
सकल जगत में
खुशियाँ छाईं


नंदग्राम में
जन जन के घर
बजी बधाई


अपने प्यारे
लाल की छवि लख
हर्षाई मैया


नाची प्रकृति
हर्षित नभचर
गाँव की गैया


है जन्माष्टमी
मनाओ सब मिल
पूरे चाव से


करो अर्चना
यशोदा नंदन की
भक्ति भाव से



साधना वैद

Sunday, August 9, 2020

तुम गोकुल में मत आना

 


 

मेरे आराध्य,

मेरे श्याम साँवरे,

अब तुम गोकुल कभी न आना !

गोकुल में अब कुछ भी वैसा नहीं रहा है

जैसा तुम कभी इसको छोड़ गये थे  !

 

मेरे कान्हा,

अब जो आओगे

तुम्हारे मन में बसी यहाँ की

चिरपरिचित सुंदर छवियाँ तुम्हें

नितांत अपरिचित सी और बिगड़ी हुई मिलेंगी  

और तुम्हारे हृदय की स्मृति मंजूषा में

संकलित अनेकों स्मृतियाँ

आहत हो क्षत विक्षत हो जायेंगी ! 

 

मेरे मनमोहना,

तुमसे मिलने के लिये

कलसी हाथों में लिये जमुना का  

शीतल, मधुर जल भरने के बहाने

जाने कितने पहर मैंने सखियों के साथ

जमुना के तट पर

तुम्हारी प्रतीक्षा में बिताये हैं

लेकिन अब जमुना भी प्रदूषित हो गयी है

और घर के नलों में ही जमुना का

वह प्रदूषित पानी आने लगा है

इसलिए अब कोई गोपी पानी भरने के लिये

जमुना के तट पर नहीं जाती ! 

 

मेरे कुँवर कन्हैया,

पहले गोपियाँ घी, दूध, दही, माखन

बेचने के बहाने गोकुल की गलियों में

विचरण करती दिखाई देती थीं और तुम

माखन चुराने के बहाने

उनके साथ खूब अठखेलियाँ करते थे

तुम्हारी वह मनमोहिनी छवि आज भी

हर गोपी के हृदय पटल पर अंकित है !

 

लेकिन मेरे मदन गोपाल ,

अब घी, दूध ,दही, मक्खन सब

थैलियों में बंद मिलने लगा है  

और तुम्हारी परम प्रिय गायें

लावारिस भूखी प्यासी सड़कों पर

भटकती दिखाई देती हैं !

इन्हें इस तरह विवश भटकता देख

तुम्हारा हृदय विदीर्ण हो जायेगा !

 

मेरे कृष्ण कन्हैया,

मुझे नहीं लगता कि

तुम्हारे लिये यहाँ अब ऐसा कोई

आकर्षण बचा है जिसकी प्रत्याशा

तुम्हें यहाँ खींच कर ले आये !

 

मेरे मुरली मनोहर,

उस युग में तुमने कंस के त्राण से

ग्रामवासियों को बचाया था और

अपनी दिव्य अलौकिक बाँसुरी की तान से

सर्वत्र अनन्त शान्ति, धर्म,

सद्भावना और सदाचार की

स्थापना की थी !

 

लेकिन मेरे नंदनंदन,

इस युग में तुम्हारे लिये

चुनौतियाँ बहुत कठिन हैं  !

तब एक कंस था

आज हर गली, हर मोहल्ले में

जगह-जगह पर करोड़ों कंस घात लगाये बैठे हैं

तुम कितने कंसों का वध करोगे ?

यहाँ साधू संत और भद्र जन का मुखौटा पहने

कितने कंस, कितने राक्षस,

कितने असुर अपनी वंश बेल बढ़ा रहे हैं

उसका अनुमान लगाना असंभव है ! 

 

इसलिए मेरे वेणुगोपाल,

तुम गोकुल मत आना !

यहाँ आकर तुम्हें घोर निराशा ही होगी !

क्योंकि आज वह मानव भी

जो चाहे कर्म से कंस नहीं है

अपने मन के भय और संशय,

अविश्वास और असुरक्षा,
ईर्ष्या  और द्वेष,

अहंकार और आक्रोश के

असुरों से जूझ रहा है !

 

और मेरे देवता,

प्रत्यक्ष में उपस्थित सदेह शत्रु को तो

ललकारा जा सकता है ,

परास्त किया जा सकता है

लेकिन किसीके मन में छिपे शत्रु का दमन

तो उस मानव को स्वयं ही करना होगा  

तुम्हारे करने से कुछ नहीं होगा !

 

इसलिये हे गिरिधारी

मेरा तुमसे यही कहना है  

कि तुम अपने मन में बसी

अपनी मोहक स्मृतियों के साथ जहाँ हो

वहीं सुखपूर्वक रहो !

तुम्हारे उस सुखद संसार में कोई

व्यवधान आये ऐसा मैं नहीं चाहती

इसलिए तुम्हारे दर्शनों की प्यासी

तुम्हारी यह राधा

अपने हृदय पर मनों भारी वज्र रख कर

आज तुमसे यही विनती करती है कि

तुम गोकुल में मत आना !

 

 

साधना वैद



Thursday, August 6, 2020

सुधियों का क्या ... !



सुधियों का क्या ये तो यूँ ही घिर आती हैं 
पर तुमने तो एक बार पलट कर ना देखा ।

जब चंदा ने तारों ने मेरी कथा सुनी 
जब उपवन की कलियों ने मेरी व्यथा सुनी 
जब संध्या के आँचल ने मुझको सहलाया 
जब बारिश की बूँदों ने मुझको दुलराया ।
भावों का क्या ये तो यूँ ही बह आते हैं 
पर तुमने तो एक बार पलट कर ना देखा ।

जब अंतर्मन में मची हुई थी इक हलचल 
जब बाह्य जगत में भी होती थी उथल-पुथल 
जब सम्बल के हित मैंने तुम्हें पुकारा था 
जब मिथ्या निकला हर इक शब्द तुम्हारा था ।
नयनों का क्या ये तो बरबस भर आते हैं
पर तुमने तो एक बार पलट कर ना देखा ।

जब मन पर अनबुझ संतापों का फेरा था 
जब जग की छलनाओं ने मुझको घेरा था 
जब गिन गिन तारे मैंने काटी थीं रातें 
जब दीवारों से होती थीं मेरी बातें । 
छालों का क्या ये तो यूँ ही छिल जाते हैं 
पर तुमने तो एक बार पलट कर ना देखा । 

जब मन में धधका था इक भीषण दावानल 
जब आँखों से बहता था इक सागर अविरल 
जब दंशों ने था दग्ध किया मेरे दिल को 
जब हटा न पाई मन पर पड़ी हुई सिल को ।
ज़ख्मों का क्या ये तो यूँ ही रिस जाते हैं 
पर तुमने तो एक बार पलट कर ना देखा ।


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद 

Saturday, August 1, 2020

पूस की रात


एक श्रद्धांजलि कलम के सिपाही श्रद्धेय प्रेमचंद को


छाया कोहरा 
भारी अलाव पर
ठण्ड की रात


मुश्किल जीना
फुटपाथ की शैया
बर्फ सी रात


सीली लकड़ी
बुझ गया अलाव
जला नसीब 


ठिठुरा गात
किटकिटाये दाँत
जमा ग़रीब


फटा कम्बल
बदन चीर जाये
बर्फीली हवा 


कहाँ से पाए
गर्म चाय की प्याली
सर्दी की दवा 


सोये हुए हैं
महलों के मालिक
गर्म रजाई


ओढ़े हुए हैं
महलों के निर्माता
फटी दुलाई


दीन झोंपड़ी
जीर्ण शीर्ण बिस्तर
कटे न रात


पक्के मकान
मुलायम रजाई
गर्म है गात


पूस की रात
‘हल्कू’ की याद आई
रिसता घाव
हट जाए कोहरा
जल जाए अलाव


चाँद ने पूछा
कौन पड़ा उघड़ा
सर्द रात में
“धरतीपुत्र !” बोले
तारे एक साथ में


आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पे
पूस की रात
कुछ भी न बदला
स्वतन्त्रता के बाद !



साधना वैद