यह चश्मा भी अजब बवाल है
उम्र का कोई भी हिस्सा हो
जीवन की हर शै में इसीका धमाल है !
जब हम खुद छोटे थे जीवन देखा
मम्मी पापा के चश्मे से
उनकी अनुमति के बिना तनिक भी कुछ
आर पार जा न सका इस चश्मे में से !
जो उन्होंने दिखाना चाहा हमें
अपने चश्मे से हमने देख लिया
और उसे ही अपने जीवन का
परम सत्य मान सहेज लिया !
शादी के बाद घर बदल गया
भूमिका बदल गयी और
जीवन का दर्शन कराने वाली
आँखें बदल गयीं !
तो दोस्तों, बज़ाहिरा आँखों पर चढ़ा
चश्मा भी बदल गया !
यह चश्मा था हमारे परम आदरणीय
सासू जी और ससुर जी का
और नज़रिया था उनकी अपनी
सर्वथा विभिन्न मानसिकता और सोच का !
अब हम जीवन की हर सच्चाई को
उनके चश्मे से देख रहे थे
और अपने पुराने आदर्शों सिद्धांतों
और जीवन मूल्यों को तोड़ मरोड़ के
कचरे के डिब्बे
में फेंक रहे थे !
हमें अभी तक अपनी आँखों पर
अपना चश्मा चढ़ाने का
कभी मौक़ा ही नहीं मिला
हम करें तो करें क्या और
करें भी तो किससे करें गिला ?
आधी उम्र बीत गयी यूँ ही
औरों के चश्मों से दुनिया देखते
मन की मन में ही रह गयी और
हम रह गए अपना जिगर मसोसते !
किस्मत से हमारी व्यथा देखी न गयी
हमारी दृष्टि भी धुँधला ही गयी
और अपनी आँखों पर चश्मा चढ़ाने की
हमारी भी बारी आ ही गयी !
बच्चे भी तो बड़े हो चले हैं
उन्हें दीन दुनिया की अभी समझ कहाँ
इतिहास को तो स्वयं को दोहराना ही होगा
क्या करें दोस्तों ! अपने बच्चों को हमें
अपनी आँखों पर चढ़े इस चश्मे से ही
दुनिया का दीदार कराना होगा !
साधना वैद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteचश्मे की महिमा का गुण-गान करती सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 21-08-2020) को "आज फिर बारिश डराने आ गयी" (चर्चा अंक-3800) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
उम्दा रचना |बढ़िया टॉपिक चुना है|
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुन्दर ! समय मिले तो इस पर भी नज़र डाल लें !
ReplyDeleteमैं और मेरे चश्मे
https://kuchhalagsa.blogspot.com/2020/08/blog-post_6.html
हार्दिक धन्यवाद गगन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteएक चश्मा और इतने झंझट ! सच में चश्मे के विषय में कहूं तो इस नज़रिए पर मुझे बहुत हैरानी होती है कि कई लोग चश्मे के माध्यम से चीज को उसके आकार से बड़ा क्यों देखना चाहते हैं ? शायद ये छिद्रान्वेषण मानवीय संबंधों के लिए बहुत घातक है | सस्नेह शुभकामनाएं और प्रणाम |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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