बेघर पंछी
अतिक्रमण हटा
पेड़ है कटा
सड़क चौड़ी
आवागमन बढ़ा
सुकून घटा
क्रूर मानव
हृदयहीन सोच
पंछी हैरान !
क्या मिला तुझे
उजाड़ मेरा घर
स्वार्थी इंसान
व्यर्थ हो गयी
लंबी संघर्ष यात्रा
एक पल में
प्यारा घोंसला
मेहनत से बना
गिरा जल में
शिखर पर
संवेदनहीनता
मौन ईश्वर
किसे सुनाएँ
दास्ताने दर्द यहाँ
प्राणी पत्थर
पीर हमारी
किसीने कब जानी
बड़ी हैरानी
जान न सका
परेशानी हमारी
ये क्षुद्र प्राणी
कैसे बसाऊँ
फिर अपना घर
थके पंखों से !
कोई तो ला दे
दाने तिनके चाहे
मेरे पंखों से
किसी का दोष
भुगतता निर्दोष
पंछी बेचारा
किसी का पाप
खामियाजा भरता
ये बेसहारा
क्यों काटे वृक्ष
हुई वायु अशुद्ध
पेड़ क्या लेते
ये तो केवल
साधना वैद
उम्दा हाईकू |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुन्दर और मार्मिक हाइकु।
ReplyDeleteसुन्दर और मार्मिक
ReplyDeleteकमाल के हाइकू ... मौसम, पंछियों का दर्द समेटे ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी ! आभार आपका !
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