जा पहुँची है
शान से सफलता
के शिखर पे,
सामान्य नारी ही है
पूज पाओगे उसे ?
नारी पूज्य है
मंदिरों में ही बस
पाषाणी बनी,
लड़ती है बाहर
अस्तित्व की लड़ाई !
अस्थि मज्जा से
निर्मित किया सदा
तन तुम्हारा
आत्मा को भी सजाया
संस्कार की कूँची से !
साधना वैद
उत्तम क्षणिकाऐ |
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