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Sunday, January 5, 2020

राग - वैराग्य


हमने था शामिल किया अपनी दुआओं में तुझे
पर न शामिल हो सके तेरी दुआओं में कभी,
दूर था तेरा ठिकाना रास्ता दुश्वार था
हम जतन करते रहे तुझ तक पहुँचने के सभी !

पर मिली ना मंज़िलें, ना रास्तों का था पता
हम तेरी गलियों में यूँ बेआसरा भटका किये
आँख में तस्वीर तेरी, दिल में तेरी आरज़ू
बस तेरे साए को छूने का भरम मन में लिए !

अब ना तेरी आरज़ू, ना याद, ना कोई गिला
आज मन का राग ज्यों वैराग्य ही से युक्त है
नाम था तेरा मेरी जिन प्रार्थनाओं में कभी
पंक्तियाँ सारी वो उन गीतों से बिलकुल मुक्त हैं !

साधना वैद



9 comments :

  1. शिकवा-गिला तो अब भी बाक़ी लग ही रहा है !

    इस फ़ैसले को सिर्फ़ रूठना मान लेते हैं.

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    1. हार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! आभार आपका !

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  4. बहुत सुंदर सृजन
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! सादर आभार आपका !

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  5. बंधन से मुक्त होती सुंदर कविता.

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार राकेश जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !

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