हमारी न्याय व्यवस्था का पहला उद्देश्य है कि
चाहे कोई गुनहगार भले ही छूट जाए लेकिन
किसी बेगुनाह को दण्ड नहीं मिलना चाहिए ।
निश्चित ही यह करुणा और मानवता से परिपूर्ण एक बहुत ही पावन भावना है । लेकिन क्या
वास्तव में ऐसा हो पाता है ?
यह जो एक कहावत है Justice delayed is justice denied. अगर यह सत्य है तो हमारे यहाँ तो शायद न्याय कभी
हो ही नहीं पाता । एक तो मुकदमे ही अदालतों में सालों चलते हैं दूसरे जब तक फैसले
की घड़ी आती है तब तक कई गवाह, यहाँ तक कि चश्मदीद गवाह तक अपने बयानों से इस
तरह पलट जाते हैं कि वास्तविक अपराधी सज़ा से या तो साफ-साफ बच
जाता है या बहुत ही मामूली सी सज़ा पाकर सामने वाले का मुहँ चिढ़ाता सा लगता है । मथुरा की विद्या देवी को 29
वर्ष चलने वाले हिम्मत को तोड़ देने वाले संघर्ष के बाद भी क्या न्याय मिल पाया ?
फिर ऐसे जुमलों का क्या फ़ायदा ! इसके अलावा हमारी व्यवस्था में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त
है कि रिश्वत देकर किसीका भी म्रत्यु प्रमाणपत्र चुटकियों में बनवाया जा सकता है !
स्वयं अटल बिहारी बाजपेई जी जैसे बड़े नेता का उनके जीते जी फर्जी प्रमाणपत्र बनवा
कर सार्वजनिक कर दिया गया तो आम आदमी की तो हैसियत ही क्या है ! चुटकियों में
बनवाए गए ऐसे फर्जी दस्तावेजों को अदालतों में ग़लत ठहराने के लिए सालों की लड़ाई
लड़नी पड़ती है वह भी अपने स्वास्थ्य और संसाधनों की कीमत पर ! ऐसे में क्या हम सीना ठोक कर यह कह सकते हैं कि
फैसला सच में न्यायपूर्ण हुआ है । इसी वजह से समाज
में न्याय प्रणाली के प्रति असंतोष और आक्रोश की भावना जन्म लेती है । लोगों में
निराशा और अवसाद घर कर जाता है और वक़्त आने पर ऐसे चोट खाए हुए लोग
खुद अपने हाथों में कानून लेने से पीछे नहीं हटते । आए दिन समाचार पत्र दिल दहला देने वाली लोमहर्षक घटनाओं के समाचारों से
भरे होते हैं । पाठकों के दिल दिमाग़ पर उनका गहरा असर होता है । लोग प्रतिदिन
कौतुहल और उत्सुकता से उनकी जाँच की प्रगति जानने के लिये अख़बारों और टी. वी. के
समाचार चैनलों से चिपके रहते हैं लेकिन पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियों की जाँच
प्रक्रिया इतनी धीमी और दोषपूर्ण होती है कि लम्बा वक़्त गुज़र जाने पर भी उसमें कोई
प्रगति नज़र नहीं आती । धीरे धीरे लोगों के दिमाग से उसका प्रभाव घटने लगता है । तब
तक कोई नई घटना घट जाती है और लोगों का ध्यान उस तरफ भटक
जाता है । फिर जैसे तैसे मुकदमा अदालत में पहुँच भी जाए तो
फैसला आने में इतना समय लग जाता है कि लोगों के दिमाग से उसका असर पूरी तरह से
समाप्त हो जाता है और अपराधियों का हौसला बढ जाता है । आम आदमी समाज में भयमुक्त
हो या न हो लेकिन यह तो निश्चित है कि अपराधी पूर्णत: भयमुक्त हैं और आए दिन अपने क्रूर और खतरनाक इरादों को अंजाम देते रहते हैं ।
य़दि हमारी
न्याय प्रणाली त्वरित और सख्त हो तो समाज में इसका अच्छा संदेश जाएगा और अपराधियों
के हौसलों पर लगाम लगेगी । गिरगिट की तरह बयान बदलने वाले गवाहों पर भी अंकुश
लगेगा और अपराधियों को सबूत और साक्ष्यों को मिटाने और गवाहों को खरीद कर, उन्हें लालच देकर मुकदमे का स्वरूप बदलने का वक़्त भी नहीं
मिलेगा । कहते हैं जब लोहा गर्म हो तब ही हथौड़ा मारना चाहिए । समाज में अनुशासन और
मूल्यों की स्थापना के लिये कुछ तो कड़े कदम उठाने ही होंगे । त्वरित और कठोर दण्ड
के प्रावधान से अपराधियों की पैदावार पर अंकुश लगेगा और शौकिया अपराध करने वालों
की हिम्मत टूट जाएगी ।
इसके लिये
आवश्यक है कि न्यायालयों में सालों से चल रहे चोरी या इसी तरह के छोटे मोटे
अपराधों वाले विचाराधीन मुकदमों को या तो बन्द कर दिया जाए या जल्दी से जल्दी
निपटाया जाए । ऐसे मुकदमों के निपटान के लिये समय सीमा निर्धारित कर दी जाए और
भविष्य में और तारीखें ना दी जाएँ । न्यायाधीशों की वेतनवृद्धि और पदोन्नति उनके
द्वारा निपटाए गए मुकदमों के आधार पर तय की जाए । अनावश्यक और अनुपयोगी कानूनों को
निरस्त किया जाए ताकि अदालतों में मुकदमों की संख्या को नियंत्रित किया जा सके और
उनके कारण व्यवस्था में व्याप्त पुलिस और वकीलों के मकड़्जाल से आम आदमी को निजात
मिल सके । न्यायालयों की संख्या बढ़ायी जाए और क्षुद्र प्रकृति के मुकदमों का
निपटान निचली अदालतों में ही हो जाए । अपील का प्रावधान सिर्फ गम्भीर प्रकृति के
मुकदमों के लिए ही हो । सालों से चलते आ रहे मुकदमों के समाप्त होने के बाद बिला
वजह तारीखों पर तारीखें लेकर मुकदमों को घसीटने वाले वकीलों को भी दण्डित किया
जाना चाहिए ताकि इस उत्पीड़नकारी प्रवृत्ति पर रोक लग सके !
इसी तरह से कुछ
ठोस कदम यदि उठाये जाएँगे तो निश्चित रूप से समाज में बदलाव की भीनी-भीनी बयार
बहने लगेगी और आम आदमी चैन की साँस ले सकेगा।
साधना वैद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 21 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सही लिखा है आपने । शुकुल जी ने रागदरबारी में कालजयी बात कही है वकीलों को लेकर।
ReplyDeleteआपका विचार प्रशंसनीय हैं
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