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Sunday, April 27, 2025

भूख का कोई धर्म नहीं होता

 


बैसरन घाटी पहलगाम 

आज का मुद्दा बहुत ही संवेदनशील भी है और बहुत ही जटिल भी ! यह समस्या हमारे देश के एक ऐसे प्रदेश से जुड़ी हुई है जहाँ की आबादी मुस्लिम बहुल है ! देश का विभाजन जब हुआ था तो धर्म के आधार पर ही हुआ था ! भारत में रहने वाले लाखों मुसलमानों को मन में गहरी टीस लेकर अपना देश, शहर, मोहल्ला, घर छोड़ कर यहाँ से जाना पड़ा था कि यह वतन उनका नहीं है क्योंकि वे हिन्दू नहीं हैं उनका धर्म इस्लाम है ! कड़वाहट और नफ़रत के बीज उसी समय बो दिए गए थे ! फिर अब उन बीजों से नफ़रत और आतंक के ये कड़वे फल वाले जंगल उग रहे हैं तो हैरानी कैसी ! पहले भी शायद छुटपुट ऐसी घटनाएं होती हों लेकिन धर्म के नाम पर नफ़रत का ऐसा सैलाब नहीं उमड़ता था ! अब आतंकी सरगनाओं के मदरसों में इसी आतंक की शिक्षा दी जाती है और उनके मन में कूट-कूट कर यह बात भरी गयी है कि हिन्दू लोग बहुत अन्यायी हैं और उन्हें मारना सबसे बड़े सवाब का काम है ! इसी में विशेष योग्यता प्राप्त प्रशिक्षित नौजवान पहलगाम जैसी घटनाओं को अंजाम देने के लिए बिना कुछ सोचे समझे हथियार उठा कर सामने आ जाते हैं ! इन्होंने यह साबित कर दिया है कि आतंक का कोई धर्म हो या न हो धर्म के नाम पर आतंक ज़रूर फैलाया जा सकता है !
भारतवर्ष में मुस्लिमों का आगमन लूटपाट और अपने साम्राज्य के विस्तार के इरादे से हुआ था ! वे यहाँ किसी भाईचारे के इरादे से नहीं आए थे न ही यहाँ की संस्कृति
, सभ्यता या जीवन शैली से प्रभावित होकर आये थे ! हिन्दू धर्म और देवी देवताओं से उन्हें सख्त नफ़रत ही थी इसीलिए उनके आक्रमणों का सर्वप्रथम उद्देश्य मंदिरों का विध्वंस और वहाँ संचित खजानों को लूटना हुआ करता था ! वैसे भी वे मूर्तिपूजा के खिलाफ थे और हिन्दुओं को काफिर कहते थे ! हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा उन्हें इस्लाम धर्म क़ुबूल करने के लिए बाध्य करना और उनकी स्त्रियों पर कुदृष्टि रखना उनका प्रिय शगल था ! इसीलिये तत्कालीन भारत में हिन्दू रानियों द्वारा युद्ध में पराजय के बाद जौहर करने की प्रथा प्रचलित थी ताकि मुस्लिम आतताई उनकी मृत्यु के बाद उनकी मृत देह के साथ भी दुर्व्यवहार न कर सकें ! हिन्दू मुस्लिमों में भाईचारे और आत्मीयतापूर्ण बंधुत्व की भावना कभी पनप ही नहीं सकी ! अपवादों की बात मैं नहीं कह रही ! ये हर युग में होते हैं ! अतीत में भी थे, आज भी हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे ! लेकिन आम जन के मन में सद्भावना वाली कोई बात नहीं है ! कहीं यह खामोशी अवसरवादिता की वजह से है, कहीं कूटनीति की वजह से और कहीं तूफ़ान से पूर्व किसी भीषण घटना को अंजाम देने के लिए ज़मीन तैयार करने की वजह से है !  
हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर का सामना महाराणा प्रताप से हुआ था ! उस समय अकबर की सेना के सेनापति मानसिह प्रथम थे ! दोनों ओर की सेनाओं में प्रचुर संख्या में राजपूत सैनिक थे जो अपने-अपने आकाओं की वजह से अपने भाई बंधुओं को मारने के लिए विवश थे ! अकबर की फ़ौज के एक मुस्लिम फौजदार ने अपने साथी से पूछा, “सारे राजपूत सैनिक एक तरह की पगड़ी पहने हैं कैसे जानें कि हमारी फ़ौज का सैनिक कौन है और दुश्मन की फ़ौज का कौन ?”
जानते हैं उसे क्या जवाब मिला ! उसके मुस्लिम साथी ने यही कहा, “तुम तो हर पगड़ी वाले को मारो ! चाहे हमारी सेना को हो या राणा की सेना का ! मरेगा तो काफिर ही ! जन्नत में बहुत सवाब मिलेगा हमें !” अब बताइये आतंक का धर्म होता है या नहीं ?
कश्मीर की आम रैयत मुस्लिम है ! ये बहुत भले
, सीधे सादे, ज़रूरतमंद लोग हैं ! हर धर्म में होते हैं ! सियासत, खुराफात, शरारत, और अवसरवादिता के गुण पेट भरे होने के बाद ही विकसित होते हैं ! इसलिए ये भरे पेट वाले धनिकों के शगल हैं ! गरीब का धर्म तो सिर्फ अपना और अपने परिवार का पेट पालना ही होता है ! जिसको जिस स्रोत से धन मिल जाए ! जिनका पेट इमानदारी, मेहनत, और शराफत से रोज़ी रोटी चला कर भर जाता है वे पहलगाम की घटना के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन करने जुलूस निकालने आ जाते हैं ! अपराध का रास्ता अपनाना इतना भी आसान नहीं होता और न हर कोई आतंकवादी बनना ही चाहता है ! लेकिन जिनका पेट आतंकवादियों से मिली धन की थैलियों से भरता है वे उनके हाथों बिक जाते हैं और ऐसी खौफनाक घटनाओं को अंजाम देने में उनकी मदद करने लगते हैं ! कभी उनकी बंदूकों के खौफ से और कभी बिना मेहनत किये हाथ आई दौलत के लालच में ! सच तो यह है भूख का कोई धर्म नहीं होता !  



साधना वैद


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