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Thursday, October 1, 2009

सोचती हूँ

सोचती हूँ
जो आँसू तुमने मुझे दिये
उन्हें एक दिन में बहा देना तो सम्भव नहीं
इसलिये एक सागर अपने मन में ही
क्यों ना रच लूँ ।
सोचती हूँ
जो दु:ख तुमने मुझे दिये
उन्हें एक पल में उतार फेंकना तो मुमकिन नहीं
इसलिये एक हिमालय अपने अंतर में ही
क्यों ना समेट लूँ ।
सोचती हूँ
जो यादें तुमने मुझे दीं
उन्हें पल भर में फूँक मार कर बुझा देना तो आसाँ नहीं
इसलिये एक ज्वालामुखी अपने हृदय में ही
क्यों ना प्रज्ज्वलित कर लूँ ।
सोचती हूँ
जो दंश तुमने मुझे दिये
उनकी चुभन से मुक्ति मिलना तो सम्भव नहीं
इसलिये पैने कैक्टसों का एक बागीचा अपने दिल में ही
क्यों ना खिला लूँ ।
चाहती हूँ
काश तुम जान पाते
तुमसे मिली इन छोटी छोटी दौलतों ने
मुझे कितना समृद्ध कर दिया है
कि मैं इस सारी कायनात को अपने अंतर में समेटे
जन्म जन्मांतर तक ऐसे ही जीती रहूँगी ।
काश तुम भी तो कभी पीछे मुड़ कर देखते
कि इस तरह से दौलतमन्द होने का अहसास
कैसा होता है ।


साधना वैद

17 comments :

  1. वाह वाह वाह
    बहुत खूबसूरत
    एक अच्‍छी कविता
    देने के लिए धन्‍यवाद

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  2. काश तुम जान पाते
    तुमसे मिली इन छोटी छोटी दौलतों ने
    मुझे कितना समृद्ध कर दिया है
    क्या कुछ नहीं दे दिया ...
    जख्म , दर्द , आंसू ...
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..!!

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  3. अच्छी रचन मिली सामने जब खोला मैं नेट।
    भीतर अपने सारे गम को कैसे लिया समेट।।

    शाधना जी की यह साधना अच्छी लगी।

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  4. इसलिये पैने कैक्टसों का एक बागीचा अपने दिल में ही
    क्यों ना खिला लूँ ।
    तंज सहने के लिये तंज को गले लगा लेना.
    बहुत सुन्दर

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  5. काश तुम जान पाते
    तुमसे मिली इन छोटी छोटी दौलतों ने
    मुझे कितना समृद्ध कर दिया है
    कि मैं इस सारी कायनात को अपने अंतर में समेटे
    जन्म जन्मांतर तक ऐसे ही जीती रहूँगी ।
    काश तुम भी तो कभी पीछे मुड़ कर देखते
    कि इस तरह से दौलतमन्द होने का अहसास
    कैसा होता है ।
    साधना जी बहुत भावमय अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  6. जो दंश तुमने मुझे दिये
    उनकी चुभन से मुक्ति मिलना तो सम्भव नहीं
    इसलिये पैने कैक्टसों का एक बागीचा अपने दिल में ही
    क्यों ना खिला लूँ ।
    चाहती हूँ

    मनोभावो की शानदार प्रस्तुति,बधाई

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  7. जन्म-जन्मांतर का छोड़िये इसी जन्म मे सर उठाकर जिये -शुभकामनाएँ

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  8. आपका लेखन सच में ही आपका अंतर खोल कर रख देता है। इन दुखों से, केक्टस के बगीचों से आप हमेशा बहुत -बहुत दूर रहें। कविता केवल कविता हीं नहीं होती उसके साथ इक भाव जगत भी जुडता चलता है आप को ढेरों सुख मिले और आपकी रच्नायात्रा हम सबको सुरभित करती

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  9. unique awy of expression,bahut sunder abhibyakti,lagta hai lekhak ne apne sare jakhma dikha diye hain, mere pass shabd nahee hai kabita ke prashansha main, aapki abhibyakti din prati din sunder ho rahee hai, Bahut bahut Badhai aur shubhkamnayein

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. बहुत भाव पूर्ण रचना |हर बार नया सोच |बधाई
    आशा

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  12. बहुत बढ़िया लिखा है ....
    स्पष्ट है लेखन आपका ..इसलिए सीधे मन के द्वार खटखटाता है ...बल्कि ..बेधड़क,निष्कपट... मन तक ही पहुँच जाता है ...!!.
    badhaii is rachna ke liye....

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  13. वाह ...बहुत ही बढि़या ...।

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  14. ओह ..सागर , हिमालय , ज्वाला मुखी कैक्टस का जंगल ... सच ही कितनी दौलत है ... बहुत खूबसूरती से लिखी है व्यथा ..

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  15. bahut sunder shabdon main likhi badiyaa rachanaa .bahut pyaari.dil ko choo gai.
    happy friendship day.
    "ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/ हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार०८/०८/11 को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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  16. उफ़ …………मन की व्यथा को पिरोना आसान नही होता………………बेहतरीन

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