जब-जब मैंने ज़माने के साथ
सुखों की राह पर कदम दर कदम
संग चलने की कोशिश की है
पता नहीं कहाँ से दुःख पीछे से आकर
मेरा आँचल पकड़ मुझे रोक लेते हैं
और बड़ी हिफाज़त से मुझे
सात तालों में बंद कर
पहरे पर बैठ जाते हैं कि कहीं
किसी सुख की कुदृष्टि मुझ पर
भूले से भी ना पड़ जाये !
जब-जब दर्द की सख्त गिरफ्त से
अपनी उँगली छुड़ा कर
मैंने आगे बढ़ना चाहा है
वह एक ज़िम्मेदार रहनुमां की तरह
मुझे और कस के थाम लेता है
ठीक वैसे ही जैसे मेले की भीड़ में
किसी नन्हें नादान बालक का हाथ
उसका पिता और कस कर पकड़ लेता है
कि बच्चा कहीं उसकी गिरफ्त से छूट न जाये !
जब-जब सुरों में ओज भर कर
मन में ढेर सारी उमंग को
अपने आँचल में बाँध
मैंने प्यार के गीत
गुनगुनाने की कोशिश की है
मेरी सारी हमजोलियाँ
स्मृति, व्यथा, वेदना,
दुविधा, कुंठा, निराशा,
विरक्ति, पीड़ा, हताशा
अपने-अपने साज़ लेकर आ जुटती हैं
मेरे सुर में सुर मिलाने के लिये
और प्यार के गीत कब हार के गीतों में
तब्दील हो जाते हैं
पता ही नहीं चलता !
जब-जब सुरमई शामों में
अपने चहरे को उल्लास और उत्साह के
प्रसाधनों से सजा कर
मैं खुशियों की सितारों जड़ी
जर्क वर्क चमचमाती साड़ी में सजी
अपना चाँद देखने छत पर जाती हूँ
ना जाने कैसे तारों की आँखों से बरसी
आँसुओं की हल्की सी बौछार से
मेरा सारा मेकअप उतर जाता है और
सलमे सितारे जड़ी मेरी चमचमाती साड़ी
पता नहीं कैसे उदासी की
बदरंग जर्जर ओढ़नी बन जाती है
जो मेरे जिस्म को हर तरफ से
बड़ी सावधानी से लपेट कर ढँक लेती है !
साधना वैद
dard ka saath kuch aisa hi hota hai
ReplyDeletebadi imaandari se saath saath chalta hai...
उत्तम भावाव्यक्ति |पर बहुत उदासी लिए रचना |
ReplyDeleteकभी कभी प्रसन्नता से भरी कविता की भी झलक यदि दे दो तो तुम्हारा क्या जाएगा |जीवन
जीने के लिए आवश्यक है खुशी और उससे भरी कविता |
पर अच्छी रचना के लिए बधाई |
आशा
कभी-कभी ऐसे अहसास भी होते हैं....लगता है ऐसा क्यूँ है....पर वही सुख-दुख साथ चलते साए की तरह हैं.एक के बाद दूसरे का आना अव्शय्म्भावी है....
ReplyDeleteबहुत ही मन उदास कर गयी आज की रचना
बहुत ही बढ़िया रचना.
ReplyDeleteउदास.
बहुत उदास .
बेहद उदास.
सलाम.
• आपकी कविता जीवन के विरल दुख की तस्वीर है, इसमें समाई पीड़ा आम जन की दुख-तकलीफ है ।
ReplyDelete..... पर आशा जी की बातों से सहमत।
सुख ओर दुख सभी लगे रहते हे , सुख जल्दी बीत जाता हे जब की दुख का समय भी उतना ही होता हे लेकिन वो लम्बा लगता हे.... आप की रचना भी दुख की ओर ज्यादा हे, लेकिन अच्छी लगी, धन्यवाद
ReplyDeleteरश्मिजी का कथन सत्य है , दर्द ही ईमानदारी से साथ निभाता है और सही दोस्तों का पता भी बताता है !
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति है। एक शेर इस दर्द को समर्पित--
ReplyDeleteबिना दुख दर्द के ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे अब आँसुओं से दुश्मनी अच्छी नही लगती।
कभी कभी ये उदासी भी तो अच्छी लगती है जब आदमी को अपने बारे मे और दुनिया के बारे मे सोचने समझने का अवसर मिलता है।बस दुख सुख को दिन रात की तरह ही जीओ। शुभकामनायें।
जब दुःख जीवन में ज्यादा ही साथ निभाने लगे और हर समय आप की गलबहिया करे तो दुःख को दूर करने का एक ही उपाय है उसे अपना हम सफ़र बना आप भी गलबहिया उसकी गर्दन में डालिए और जरा तेज दबाइए खुद दर्द, दर्द से कहर उठेगा और आप से पीछा छुड़ा भाग जायेगा | वो हमें इसलिए पकड़ता है क्योकि हम उससे भागते है | बहुर अच्छी लगी रचना |
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से दर्द को लफ्ज़ दर लफ्ज़ उतार दिया है ...आपकी कविता पढ़ कर शिवमंगल सिंह सुमन की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं ..
ReplyDeleteएक पुराने दुःख ने पूछा
साथी कहो कहाँ रहते हो
उत्तर मिला चले मत आना
वो घर मैंने बदल दिया है ...
बहुत ही दर्द भरी अभिव्यक्ति ,की प्रस्तुति की है अपने
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
आदरणीय शास्त्री जी ,
ReplyDeleteनमस्कार .
सर्वप्रथम आपको जन्मदिन की अनेक शुभकामनाएं .बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने बसंत पर.सुन्दरता से किया है बसंत का वर्णन .बधाई
itni achchi kavita hai par man ko udas kar gayee.
ReplyDeletekahin gahre me doob jati hun. har bar apki kavitayen mujhe apni si lagti hain. sunder shabdo me hale-dil bayaan kiya hai.
ReplyDeletebadhayi.
मार्मिक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteदर्द को साकार करती अभिव्यक्ति ....आपका आभार
ReplyDeleteanshumala ने कहा…जब दुःख जीवन में ज्यादा ही साथ निभाने लगे और हर समय आप की गलबहिया करे तो दुःख को दूर करने का एक ही उपाय है उसे अपना हम सफ़र बना आप भी गलबहिया उसकी गर्दन में डालिए और जरा तेज दबाइए..
ReplyDeleteहा...हा...हा.....
साधना जी अंशुमाला जी आपके जेल जाने कि तैयारी कर रहीं हैं .....
बहुत दर्द छुपा है इस रचना में।
ReplyDeleteउम्दा कृति ।
आप सभी की हृदय से आभारी हूँ ! कृपया इसी तरह मेरा हौसला बढाते रहें व अपनी प्रतिक्रियाओं से मुझे प्रोत्साहित करते रहें !
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