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Saturday, April 30, 2011

तस्वीर

तस्वीर एक बनाई थी मोहब्बत की कभी ,

हर इक नक्श को पलकों से तब सँवारा था !

वफ़ा के रंग भर दिए थे हर एक गुंचे में ,

हर इक पंखुड़ी पे नाम बस तुम्हारा था !

चाँद से नूर चाँदनी से माँग ली थी हँसी ,

ज़मीं पे दूर तलक खुशनुमां नज़ारा था !

सितारे टाँक लिये थे फलक के चूनर में ,

उन्हीं के नूर से रौशन जहाँ हमारा था !

ख़याल ओ ख्वाब लिये उड़ते थे हवाओं में ,

ज़मीं की सख्त फितरतों को कब निहारा था !

न जाने कैसे कहाँ टूट गये ख्वाब सभी ,

खुली जो आँख तो तनहा सफर हमारा था !

किसीने ने नोच लिये तिनके सब नशेमन के ,

ज़मीं पे बिखरा पड़ा आशियाँ हमारा था !

बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,

बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था !

बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,

खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !

कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,

जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !


साधना वैद


Tuesday, April 26, 2011

मैचिंग सेंटर

हमारे एरिया की यह दूकान महिलाओं की सबसे पसंदीदा दूकान है ! किसी भी रंग की साड़ी आप ले आइये उसका मैचिंग ब्लाउज यहाँ आपको निश्चित रूप से मिल जायेगा ! हर रंग के हलके गहरे दर्जनों शेड यहाँ उपलब्ध हैं ! अलमारियों में विभिन्न रंग के करीने से लगे हुए हलके से गहरे होते हुए कपड़ों के सजे हुए थान बहुत आकर्षक लगते हैं ! लेकिन काले रंग के थानों में यह स्थिति नहीं होती क्योंकि शायद काले रंग का केवल एक ही शेड होता है ! परन्तु क्या काले धन के साथ भी यही स्थिति है ? शायद नहीं ! आइये इस पर भी ज़रा गौर करें !

हमारे जैसे आम आदमियों की समझ से तो काला धन वह धन है जिसको कमाने के बाद सरकार को टेक्स नहीं दिया गया है और उसका प्रयोग कैश के रूप में किया जाता है तथा अनेक तरह से उस काले धन को व्हाईट बनाने की मशक्कत की जाती है ! सच पूछा जाये तो इस काले धन के भी अनेकों शेड हैं और आज इसीके विभिन्न रूपों पर चिंतन करने का प्रयास कर रही हूँ !

१ – व्यापारियों द्वारा अधिक खर्च और कम बिक्री दिखा कर कम लाभ दिखाना और उस पर टेक्स बचाना ! शायद यह काले धन का सबसे हलके रंग का शेड है !

२ - ठेकेदारों द्वारा प्रोजेक्ट्स में घटिया सामान लगा कर निर्माण की गुणवत्ता खराब कर उससे बचाया गया धन ! यदि इस लाभ पर वह टेक्स दे भी देता है तब भी बचा हुआ धन काला ही है !

३ – ऐसा धन जिसे सरकारी अधिकारी एवं नेता रिश्वत लेकर ठेकेदारों के अधिक मूल्य वाले टेंडर पास कर कमाते हैं और उन ठेकेदारों को भी कमाई करने के लिये गुणवत्ता की बलि देने के लिये हरी झंडी दिखा देते हैं ! इस तरह ना सिर्फ पब्लिक की गाँठ से पैसा अधिक निकलता है बल्कि उससे जो निर्माण होता है वह भी घटिया क्वालिटी का होता है जिसका खामियाजा भी आगे पब्लिक को ही उठाना पड़ता है ! इस तरह कमाया हुआ धन भी काला धन ही है और इससे पहले वर्णित काले धन के शेड से अधिक गहरा शेड है !

४ - ब्लैकमेलर्स जो ठेकेदारों और पूंजीपतियों को धमका कर उनसे रंगदारी वसूल करते हैं यह भी काले धन का ही एक शेड है !

५ - बच्चों को किडनैप करके फिरौती के रूप में धन अर्जित करना या सुपारी लेकर किसीकी ह्त्या करने के बाद अर्जित किया हुआ धन भी काले धन का ही एक विकृत स्वरुप है !

६ - डॉक्टरों को प्रलोभन देकर मरीजों को मंहगी दवाएं, इलाज व परीक्षण के लिये मजबूर करना और इस प्रकार धन अर्जित करना भी काले धन का ही एक अन्य रूप है !

७ - मंदिरों और मठों में भक्तों की धार्मिक भावनाओं को उकसा कर उनसे धन वसूलना और फिर उनका अधार्मिक कार्यों के लिये प्रयोग करना भी तो काले धन का ही एक और भयानक स्वरुप है !

८ - सरकारी सुविधाएँ चाहे वे गरीबो के लिये बनी हों या उद्योग धंधों के विकास के लिये बनी हों उनको सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से हड़प कर उनके द्वारा धन कमाना भी तो काला धन ही है !

९ - दूध, दवाएं व अन्य खाद्य पदार्थों में ज़हरीली व अखाद्य चीजों की मिलावट कर कमाया गया धन भी तो काले रंग का ही विभिन्न शेड है !

१० - शिक्षा संस्थानों में अनेक तिकड़मों के द्वारा सरकारी ग्रांट्स का दुरुपयोग करना व विद्यार्थियों से ज़बर्दस्ती ऊँची फीस वसूल करना और इस प्रकार धन कमाना भी तो काला धन ही माना जायेगा !

शायद काले धन के और भी अनेक रूप हैं जिन तक पहुँच पाना मेरे लिये संभव नहीं हो पा रहा है ! अपने सुधी पाठकों से मेरा निवेदन है वे इस तरह अनैतिक रूप से धन एकत्र करने के प्रचलित तरीकों के बारे में स्वयम भी एक सूची बनाएँ और लोगों को इसकी जानकारी दें !

बस मुझे एक ही चिंता है कि यदि काले रंग के भी इतने सारे शेड हो जायेंगे तो बेचारे हमारे मौचिंग सेंटर के मालिक को काले रंग के शेडों के लिये भी कपड़ों की एक नयी अलमारी बनवानी पड़ जायेगी ! इस बार जाऊँगी तो देखूँगी वहाँ उसके लिये जगह है भी या नहीं !

साधना वैद

Friday, April 22, 2011

मैं तुम्हारी माँ हूँ














तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा

तुम्हारे कुछ भी कहने से पहले

मुझसे बहुत कुछ कह जाता है ,

ऑफिस में तुम्हारी ज़द्दोजहद और

दिन भर खटते रहने की कहानी

तुम्हारी फीकी मुस्कुराहट की ज़बानी

बखूबी कह जाता है !

नाश्ते की प्लेट को अनदेखा कर

चाय की प्याली को उठा

दूसरे कमरे के एकांत में

तुम्हारा चुपचाप चले जाना ,

सुना जाता है आज दिन में

ऑफिस में बॉस से हुई

बेवजह तकरार का

दुःख भरा अफ़साना !

छोटे भाई को जब तुम

बिना गलती के अकारण ही

थप्पड़ जड़ देती हो ,

मैं समझ जाती हूँ कि इस तरह

तुम ऑफिस से लौटते हुए

बस में किसी शोहदे की छेड़खानी से क्षुब्ध

दुनिया भर की नफरत मन में पाले

अपने आप से ही लड़ लेती हो !

बंद आँखों की कोरों से उमड़ते

आँसुओं को छुपाने के लिये

जब तुम दुपट्टे से मुँह को ढक

अनायास ही करवट बदल लेती हो ,

मैं जान जाती हूँ कि

किसी खास दोस्त की

रुखाई से मिले ज़ख्मों को

छुपाने की कोशिश में तुम

किस तरह खुद को हर पल

हर लम्हा कुचल लेती हो !

तुम मुझसे कुछ नहीं कहतीं

शायद इसलिये क्योंकि तुम मुझे

इस उम्र में कोई और

नया दुःख देना नहीं चाहतीं ,

लेकिन मैं भी क्या करूँ

मेरी ममता और मेरी आँखे भी

इस तरह धोखे में रहना नहीं जानतीं !

मैं सब समझ लेती हूँ ,

मैं सब जान जाती हूँ ,

क्योंकि मैं तुम्हारी माँ हूँ !


साधना वैद

चित्र गूगल से साभार !

Tuesday, April 19, 2011

कठपुतलियाँ


अब तक इतने सालों से

कठपुतलियाँ ही तो नचाती आई हूँ ,

मजबूती से उनकी डोर

अपनी उँगलियों में लपेटे-लपेटे

हर रोज वही सदियों पुरानी कहानी

और सदियों पुराना तमाशा ही

तो दिखाती आई हूँ !

यह देखो उनकी डोर से

मेरी उँगलियाँ घायल होकर

किस तरह रक्तरंजित हो गयी हैं ,

और वही बोल, वही गीत, वही कहानी

सुनाते-सुनाते मेरी सारी

संवेदनाएं भी सो गयी हैं !

‘ओहोजी आगे चलो’, ‘ओहोजी पीछे चलो’ ,

‘ओहोजी घूम के नाचो’, ‘ओहोजी झूम के नाचो’

ओहो जी झुक के सबको सलाम करो’,

‘चलो अब सो जाओ’,

सारे उल्लास उत्साह के भाव तो

बस मेरी आवाज़ के उतार चढ़ाव में होते हैं ,

भावनाहीन निर्जीव पात्र तो महज़

मेरे हाथों की कठपुतलियाँ होते हैं !

वही चमकते जोड़े में सजी रानी की शादी

वही हाथी, घोड़े, ऊँटों से सजी बरात

वही राजा का पराक्रम दिखा

रानी को युद्ध में जीत कर ले आना ,

वही अन्य सभी कठपुतलियों का

ढोल ताशे की लय पर जोश के साथ

शादी के गीतों को झूम-झूम कर गाना !

भावनाओं के आवेग पर

कस कर डाट लगा मैं

सालों से इसी तरह रोते को हँसाती

और हँसते को रुलाती आ रही हूँ ,

पता नहीं कठपुतलियाँ मुझे नचा रही हैं

या मैं कठपुतलियों को नचा रही हूँ !

साधना वैद

Saturday, April 16, 2011

आत्म साक्षात्कार

अब खुले वातायनो से सुखद, मन्द, सुरभित पवन के
मादक झोंके नहीं आते,
अंतर्मन की कालिमा उसमें मिल
उसे प्रदूषित कर जाती है।
अब नयनों से विशुद्ध करुणा जनित
पवित्र जल की निर्मल धारा नहीं बहती,
पुण्य सलिला गंगा की तरह
उसमें भी घृणा के विष की पंकिल धारा
साथ-साथ बहने लगी है।
अब व्यथित पीड़ित अवसन्न हृदय से
केवल ममता भरे आशीर्वचन और प्रार्थना
के स्वर ही उच्छवसित नहीं होते,
कम्पित अधरों से उलाहनों, आरोपों, प्रत्यारोपों की
प्रतिध्वनि भी झंकृत होने लगी है।
अब नीरव, उदास, अनमनी संध्याओं में
अवसाद का अंधकार मन में समा कर
उसे शिथिल, बोझिल, निर्जीव सा ही नहीं कर जाता,
उसमें अब आक्रोश की आँच भी नज़र आने लगी है
जो उसे धीमे-धीमे सुलगा कर प्रज्वलित कर जाती है।
लेकिन कैसी है यह आँच
जो मेरे मन को मथ कर उद्वेलित कर जाती है?
कैसा है यह प्रकाश
जिसके आलोक में मैं अपने सारे स्वप्नों के साथ-साथ
अपनी समस्त कोमलता, अपनी मानवता,
अपनी चेतना, अपनी आत्मा, अपना अंत:करण
और अपने सर्वांग को धू-धू कर जलता देख रही हूँ
नि:शब्द, अवाक, चुपचाप !
साधना वैद

Thursday, April 14, 2011

ईश्वर और इंसान

जापान के सन्दर्भ में आज यह रचना प्रस्तुत कर रही हूँ ! मेरी यह रचना उन विपदाग्रस्त लोगों को समर्पित है जो दुर्भाग्य से जानलेवा एटोमिक रेडियेशन का शिकार हुए हैं पूर्व में भी एवं वर्तमान में भी !






एक सूर्य सृष्टि नियन्ता ने रचा
सुदूर आकाश में,
दूसरा सूर्य इंसान ने रचा
वेधशाला में !
ईश्वर ने जो सूर्य रचा
उसने सृष्टि को जीवन दिया
मानव ने जो सूर्य रचा
उसने सृष्टि नियंता की रचना में
व्याघात पैदा किये और जन्म दिया
ऐसी विनाशलीला को
जिसने इस सुन्दर धरती से
सारे सौंदर्य को जड़ से समाप्त कर देने में
कोई कसर ना छोड़ी !
अविवेकी इंसान की इस मानसिकता की
साक्षी है यह समस्त सृष्टि
और साक्षी है उस
विकराल विनाशकारी विध्वंस की
जो पल भर में ही
जला कर राख कर गया
सदियों से संचित
एक अति समृद्धशाली सभ्यता को |
पेड़ों को पौधों को,
फूलों को रंगों को,
सौरभ को सौंदर्य को,
पंछी को कलरव को,
पिता को पुत्र को,
माँ को माँ जायों को,
सारे के सारे इंसानों को
और इंसानियत को ।
और दे गया एक बदनुमा उपहार
आने वाली तमाम पीढ़ियों को
विकलांगता और विक्षिप्तता का,
बदहाली और बेचारगी का !
क्या इसी उपलब्धि के लिये
रचा था तुमने यह सूरज ?
क्या यही था तुम्हारा अभीष्ट इस सूरज से ?
ईश्वर रचित सूरज सबको जीवन देता है
और मानव रचित सूरज ?
वह जीवन देता नहीं जीवन लेता है,
अगर पड़ जाये अविवेकी हाथों में ।
क़ैसी विडम्बना है !
यही फर्क है ईश्वर और इंसान में ।

साधना वैद

Monday, April 11, 2011

कितना चाहा

कितना चाहा
कि अपने सामने अपने इतने पास
तुम्हें पा तुम्हें छूकर तुम्हारे सामीप्य की अनुभूति को जी सकूँ,
लेकिन हर बार ना जाने कौन सी
अदृश्य काँच की दीवारों से टकरा कर मेरे हाथ घायल हो जाते हैं
और मैं तुम्हें छू नहीं पाती ।
कितना चाहा
कि बिन कहे ही मेरे मन की मौन बातों को तुम सुन लो
और मैं तुम्हारी आँखों में उजागर
उनके प्रत्युत्तर को पढ़ लूँ,
लेकिन हर बार मेरी मौन अभ्यर्थना तो दूर
मेरी मुखर चीत्कारें भी समस्त ब्रह्मांड में गूँज
ग्रह नक्षत्रों से टकरा कर लौट आती हैं
लेकिन तुम्हारे सुदृढ़ दुर्ग की दीवारों को नहीं बेध पातीं ।
कितना चाहा
कि कस कर अपनी मुट्ठियों को भींच
खुशी का एक भी पल रेत की तरह सरकने ना दूँ,
लेकिन सारे सुख न जाने कब, कैसे और कहाँ
सरक कर मेरी हथेलियों को रीता कर जाते हैं
और मैं इस उपमान की परिभाषा को बदल नही पाती ।
कितना चाहा
कि मौन मुग्ध उजली वादियों में
सुदूर कहीं किसी छोर से हवा के पंखों पर सवार हो आती
अपने नाम की प्रतिध्वनि की गूँज मैं सुन लूँ
और वहीं पिघल कर धारा बन बह जाऊँ,
लेकिन ऐसा कभी हो नहीं पाता
और मैं अपनी अभिलाषा को कभी कुचल नहीं पाती ।

साधना वैद

Sunday, April 10, 2011

कुछ तो बोलो

The world suffers a lot
Not because of the
violence of bad people
but because of the
silence of good people.

जिसने भी लिखा है कितना सही लिखा है ना ! वास्तव में हमारे दुखों का कारण हमारी चुप्पी है ! हम अपने आसपास घटित होने वाली अवांछनीय गतिविधियों के प्रति जिस तरह से निस्पृह और तटस्थ रहने लगे हैं इसी की वजह से असामाजिक तत्वों के हौसले मजबूत होते हैं और वह सब कुछ जो नहीं होना चाहिये अबाध गति से होता रहता है ! जो बुरे लोग हैं वे तो बुरा करेंगे ही लेकिन जो अच्छे हैं वे खामोश रह कर ऐसा होने देते हैं उसे रोकने के लिये कुछ नहीं करते इसीका खामियाजा बाकी सबको भुगतना पड़ता है !
जब हम सब कुछ जानते समझते हुए भी आँखें मूँदे रहना चाहते हैं तो हमें शिकायत करने का भी कोई अधिकार नहीं है ! कहीं ना कहीं परोक्ष रूप से उन असामाजिक अनैतिक गतिविधियों के घटित होने में हम भी थोड़े बहुत ज़िम्मेदार तो हो ही जाते हैं ! क्योंकि ना तो हम अपना विरोध ही दर्ज करा रहे हैं और ना ही हम उन्हें रोकने के लिये कोई उपाय ही कर रहे हैं ! सोचिये क्या अपने आसपास के परिवेश को अपराधमुक्त रखने के लिये हमारा कोई कर्तव्य, कोई प्रतिबद्धता नहीं होनी चाहिये ?
राह चलते हुए मैंने कई बार छोटे-छोटे बच्चों को जुआ खेलते हुए देखा है, अपने से छोटे बच्चों को बेरहमी से पीटते हुए देखा है ! जब भी ऐसा होते हुए देखती हूँ मैं खुद को रोक नहीं पाती और उन बच्चों के साथ अक्सर उलझ पड़ती हूँ ! जानती हूँ हमारा देश गरीब है ! निर्धन बस्तियों में रहने वाले बच्चों के पास खेलने के लिये स्थान नहीं होता ! माता पिता जीवन की आपाधापी में इतने संघर्षरत रहते हैं कि उनके पास यह देखने का भी वक्त नहीं रहता कि उनके बच्चे दिन भर क्या करते हैं और कैसी गतिविधियों में लीन रहते हैं ! यदि उनके पास वक्त नहीं है तो क्या हमें भी अपनी आँखें बंद कर लेनी चाहिये ? क्या आपराधिक गतिविधियों में लिप्त यही बच्चे बड़े होकर शातिर अपराधी बन कर समाज के लिये और अधिक खतरनाक साबित नहीं होंगे ? और आज जब हम उन्हें रोकते नहीं हैं तो क्या कहीं उनके इस नैतिक पतन के लिये हम भी उत्तरदायी नहीं हैं ?
सरे राह चलते हुए बदमाश लड़के लड़कियों को छेड़ते हैं, किसीका पर्स छीन लेते हैं, किसीका सामान चुराते हैं, किसीके साथ मारपीट करते हैं और हम यह सब देख कर निगाहें चुरा कर चुपचाप निकल जाते हैं ! जब हम यह सब जानबूझ कर होने दे रहे हैं तो महात्माओं की तरह समाज के इस पतन पर मगरमच्छी आँसू बहाने का भी हमें कोई अधिकार नहीं है ! मेरा कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि क़ानून अपने हाथ में लेकर हमें सरे राह झगड़े निपटाने के कार्य में लग जाना चाहिये लेकिन इतना कहना अवश्य चाहती हूँ कि आप अगर कुछ भी गलत होता हुआ देखें तो कृपया चुप ना रहें उसे रोकने के लिये अपनी आवाज़ ज़रूर उठायें !
Whistle blowing की आवश्यकता आज हर जगह है ! वह चाहे हमारा घर हो , हमारा मोहल्ला हो, हमारा शहर हो या हमारा देश ! अपनी आँखों के सामने गलत बातों की घटित ना होने दें अपनी आवाज़ उठायें, अपना विरोध दर्ज करायें और अपनी सम्पूर्ण क्षमता और शक्ति से उस गलत को होने से रोकें तभी हम एक स्वस्थ और अपराधमुक्त समाज में रहने का स्वप्न साकार कर सकेंगे !

साधना वैद

Friday, April 8, 2011

तुम्हें सलाम अन्ना हजारे !

अन्ना तुमने जो जन आंदोलन छेड़ा है और जैसा व्यापक समर्थन तुम्हें मिल रहा है उसने बापू की याद ताज़ा कर दी है ! मन अगाध श्रद्धा एवं विश्वास से भर उठा है ! भरोसा हो चला है कि अब देश भ्रष्ट नेताओं के हाथों में पड़ कर रसातल में नहीं जायेगा और आम आदमी इनके हाथों की कठपुतली बन कर इनकी उँगलियों के इशारे पर नाचने के लिये मजबूर नहीं बना रहेगा ! तुम्हारा आभार है अन्ना जो तुमने हमें अपनी शक्ति से रू--रू कराया और हमें अपनी क्षमताओं से परिचित कराया !

अन्ना के एक आह्वान पर सारा देश सड़कों पर उतर आया है और सत्ताधारी भ्रष्ट नेताओं के माथे पर मायूसी और चिन्ता की लकीरें साफ़ साफ़ दिखाई दे रही हैं ! एक दुबला पतला कमज़ोर सा दिखाई देने वाला नेता इन कद्दावर और हर तरह से सबल समर्थ मंत्रियों की ऐसी फजीहत कर सकता है यह तो किसीने सोचा भी नहीं होगा ! जनता चाहे तो क्या नहीं कर सकती ! अन्ना ठीक कहते हैं ! ये नेता हमारे द्वारा चुने गये हमारे सेवक हैं हमारे शासक या भगवान नहीं ! अपने हर काम का व्यौरा जनता को देना इनका कर्तव्य है और इनको सौंपे गये हर काम की कैफियत इनसे माँगने का जनता को अधिकार है ! हम क्यों इनसे भयभीत रहते हैं ? क्यों इनकी जयजयकार करते हैं ? क्यों इनकी दयादृष्टि पाने के लिये लालायित रहते हैं ? अन्ना का किसी भी पार्टी के नेता को अपने मंच पर साथ ना बैठने देना ही इस बात को सिद्ध करता है उनकी लड़ाई किसी पार्टी विशेष से नहीं वरन समूची राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद कर देने के लिये है ! आज की राजनीति का चेहरा कितना वीभत्स है इसे अन्ना ने बेनकाब कर दिया है ! वे भ्रष्ट नेताओं को अपने अभियान के साथ जोड़ कर उन्हें राजनैतिक लाभ उठाने का कोई अवसर नहीं देना चाहते ! यह उनकी बुद्धिमता और नेतृत्व संचालन की कुशलता का द्योतक है !

नेतृत्व क्या होता है और नेता किसे कहते हैं इसे अन्ना हजारे ने सिद्ध कर दिया है ! जो काम हमारे चुने हुए नेता वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी नहीं कर पाये वह अन्ना ने तीन दिन में कर दिखाया है ! नेता का व्यक्तित्व कितना भव्य और आकर्षक है, वह कितना विद्वान और पंडित है या उसके पास कितना वाक् चातुर्य है यह बात मायने नहीं रखती ! जो बात महत्वपूर्ण है वह यह कि नेता की नीयत कितनी साफ़ है, उसके मन में जनता के हित के लिये जो समर्पण की भावना है वह वास्तव में कितनी सच्ची और ईमानदार है और उसके उठाये हुए मुद्दों में सामाजिक सरोकारों के प्रति कितनी प्रतिबद्धता है ! जनता बेवकूफ नहीं है ! असली और नकली में फर्क करना उसे आता है ! अन्ना को जनता का जितना प्यार और समर्थन मिल रहा है वह अभिभूत करता है ! शायद गांधीजी के बाद ये पहले नेता हैं जिनके एक संकेत पर बच्चे से लेकर बूढ़े तक, कलाकार से लेकर व्यापारी तक और छात्रों से लेकर गृहणियाँ तक उनकी शक्ति बढ़ाने के लिये उनके साथ आ जुटे हैं !

पद्म श्री और पद्मभूषण के अलावा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित अन्ना के खाते में कई और भी अनेकों उपलब्धियां हैं जिनसे उनके विलक्षण व्यक्तित्व का परिचय मिलता है ! भारतीय फौज में एक सामान्य सिपाही ड्राइवर के रूप में अपना कैरियर आरम्भ करने वाले अन्ना ने खेमकरण सेक्टर में जान की बाजी लगा दी थी और उस मोर्चे पर मारे गये जवानों में केवल एक वे ही गंभीर रूप से घायल जीवित बचे एक मात्र भाग्यशाली जवान थे ! इसके बाद उन्होंने फ़ौज से रिटायरमेंट लेकर महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त गाँव के पुनरुत्थान के लिये स्वयं को समर्पित कर दिया ! जिस गाँव से पानी के अभाव के कारण लोग पलायन करने के लिये विवश हो चुके थे उसे उन्होंने स्वयं श्रमदान कर प्रांत का मॉडल विलेज बना कर ही दम लिया ! यह उनकी दृढ़इच्छाशक्ति एवं जीवट का परिचायक है ! सूचना के अधिकार का बिल भी उन्होंने ही पास करवाया था और आज लोकपाल बिल को लेकर व्यवस्था में व्याप्त जिस गन्दगी को साफ़ करने का बीड़ा उन्होंने उठाया है उसमें सारा भारत उनके साथ है ! अपने समय की लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों के खिलाफ उन्होंने जनहित में आंदोलन किये चाहे वह कोंग्रेस हो, भाजपा हो या शिवसेना, उन्होंने किसी भी पार्टी की अनैतिक गतिविधियों को बख्शा नहीं !

अन्ना जी जो भाग्यशाली इस समय आपके साथ सशरीर उपस्थित हैं केवल वही आपके समर्थक नहीं हैं ! घरों में रहने वाले भी आपके उतने ही प्रबल समर्थक हैं ! ज़रूरत पड़ने पर इस यज्ञ में आहुति देने से वे भी पीछे नहीं हटेंगे यह हमारा वादा है आपसे ! १२ तारीख को जेल भरने की इस मुहिम में हम भी आपके साथ हैं !

साधना वैद