कितनी
कस कर बाँधा था
उसने
अपने मन की
इस
गिरह को
कितना
विश्वास था उसे कि
यह
सात जन्मों तक
नहीं
खुलेगी !
लेकिन
वक्त के फौलादी हाथ
कितने
ताकतवर हैं
यह
अनुमान वह
कहाँ
लगा पाई !
सात
जन्मों के लिये
जो
गिरह बाँधी थी
वह
चंद महीने भी
नहीं
चल पाई !
प्यार
की चूनर
चीर-चीर हो फट गयी
और
विश्वास की
ज़र्क
वर्क चादर में
चंद
दिनों में ही
ना
जाने कितने
पैबंद
लग गये !
बेरहम
दुनिया के
तीखे
नश्तरों से
छलनी
हुआ अपना
घायल
मन और
प्यार
और विश्वास
की
जर्जर चिन्दियाँ
अपनी
कलाइयों में लपेटे
वह
बाध्य थी
एक
अनजानी डगर पर
चल
पड़ने के लिये
जिस
पर दूर-दूर तक
किसी
हमकदम के
कदमों
के निशाँ
उसे
नज़र नहीं आते थे
और
ना ही उसे
कोई
परिचित आवाज़
सुनाई
देती थी
जो
उसके मन को
सुकून
से भर जाये !
बस
उसे चलते जाना था
चलते
ही जाना था
बिना
थके बिना रुके
हर
क्षण हर पल
एक अंतहीन सफर पर !
साधना
वैद !
मन की गिरह में न जाने क्या कुछ बंधा होता है ....
ReplyDeleteसात जन्मों की गिरह बंधी हो और चुनार चीर चीर हो तो समझ लेना चाहिए कि यह सातवाँ जन्म ही है :):)
बहुत सुंदर रचना
संगीता जी का कथन से पूरी तरह से सहमत. शायद ये सातवाँ जन्म ही हो.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
कल 15/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteक्या सात फेरे सात वचन इतने अनमेल बेमानी हो उठे .... अग्नि के चारों तरफ अनगिनत सपने तैरते हैं - वाकई एक क्षण में गुम हो जाते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteइसे भी देखें-
ग़ाफ़िल छुपा खंजर नही देखा
जीवन का सत्य लिख दिया जब एक मोड ऐसा आ जाता है सब बेमानी लगने लगता है।
ReplyDeleteमन की गिरह में न जाने क्या कुछ बंधा होता है ....
ReplyDeleteसात जन्मों की गिरह बंधी हो और चुनार चीर चीर हो तो समझ लेना चाहिए कि यह सातवाँ जन्म ही है ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..साधना जी..
नियति को कौन टाल सकता है................
ReplyDeleteबंधन भले टूट जाएँ मगर आत्मबल न टूटे.....
भवसागर तो पार लगाना ही है न???
सादर
बहुत बहुत सुन्दर मन पर प्रभाव छोडती रचना |
ReplyDeleteआशा
गहन भाव लिए...
ReplyDeleteदिल को छु लेनेवाली रचना...
saat janmon ke bandhan ki baate aaj to kitabi kahaniyan lagti hain. sachhayi to yahi hai ki chand mahino me ye bandhan char-mara jate hain. fark itna hai ki hamari peedhi ijjet ki wajeh se chup-chap chalaye jati hai aur aaj ki peedhi ise gudde-gudiya ka khel.
ReplyDeletekya kavita hai.....wah.
ReplyDeleteजीवन को इस तरह भी जीना पड़ता है।
ReplyDeletebahut hi gahan abhiwayakti,,,,,
ReplyDeleteसाधना जी कहीँ गहरे भावों मे डूब कर लिखती हैं आप सु7न्दर। शुभ.का.
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