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Saturday, June 16, 2012

मुझे आप याद आते हैं बाबूजी !



 













जब-जब भीड़ भरी राहों पर
किसी नन्हीं बच्ची को
बड़ी शान से अपने पिता के
कन्धों पर सवार देखती हूँ
मुझे आप याद आते हैं बाबूजी !

जब-जब बच्चों को
‘अबू बैन एडम’ और ‘साम ऑफ लाइफ’
का भावार्थ समझाती हूँ
मुझे आप याद आते हैं बाबूजी !

जब-जब किसी बुज़ुर्ग को
अपनी उम्रदराज़ पत्नी के
आँचल से अपने हाथ और चेहरा
पोंछते हुए देखती हूँ
मुझे आप याद आते हैं बाबूजी !  

जब-जब ज़िंदगी के मुश्किल सवाल
मुझे पेंच दर पेंच उलझाते जाते हैं
और उनका कोई हल मुझे
सुझाई नहीं देता ,
मुझे आप याद आते हैं बाबूजी !

सच तो यह है कि
उम्र के इस मुकाम पर पहुँच कर भी
अपनी हर समस्या, हर उलझन ,
हर चिंता, हर फ़िक्र, हर परेशानी,
के निदान के लिए मुझे
आज भी सिर्फ और सिर्फ
आप ही याद आते हैं बाबूजी !

साधना वैद   

20 comments :

  1. आप ही याद आते हैं बाबूजी !

    Nice post.

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  2. जीवन पात्र मेरा खाली रह जाता
    पिता के रूप में जो तुम्हें नहीं पाता
    इसके आगे नहीं निष्कर्ष कोई
    दूसरा नहीं मेरा आदर्श कोई ...

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  3. हर आती जाती सांस में याद आयेंगे.....
    उनकी दी हुई तो है ये साँसें...ये जीवन.......

    सादर नमन.

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  4. पितृ दिवस पर यादों की सौगात पिता को ...बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  5. आप ही याद आते हैं बाबूजी !

    फादर्स डे पर भावुक करती प्रस्तुति.

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  6. बस ऐसे ही तो होते हैं बाबूजी

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  7. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  8. बहुत भावपूर्ण और सुन्दर प्रस्तुति |मुझे भी बहुत याद आती हैं वे छोटी छोटी बातें जो बाबूजी अक्सर कुछ सिखाने के लिए कहा करते थे |
    आशा

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  9. पिता हमेशा ऐसे ही याद आते हैं !

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  10. sach me pitajee ko ham bhul kahan paate hain...

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  11. भावुक करती सुन्दर अभिव्यक्ति...साधना जी..

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  12. सच तो यह है कि उम्र के इस मुकाम पर पहुँच कर भी अपनी हर समस्या, हर उलझन , हर चिंता, हर फ़िक्र, हर परेशानी, के निदान के लिए मुझे आज भी सिर्फ और सिर्फ आप ही याद आते हैं बाबूजी !

    वे सदा याद आयेंगें ..... विनम्र नमन

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  13. हमेशा याद आयेंगे...
    जब तक है ये साँसें...ये जीवन...

    सादर नमन...

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  14. हाँ पिता का साया वो घनी छाँव होती है जो अपने जीवन में हमारे सिर पर कभी भी धूप की तपिश को आने ही नहीं देता है. काश उस साए को हम अपने सिर पर सदैव रख पाते.

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  15. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    इस भावुक करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें.....साधना जी

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  16. sabke apne papa k sath apne apne anubhav hain....aur ye aise anubhav hain jo bas hamare man ki bagiya me sadabahaar k foolon ki tarah lahlahate rahte hain.

    sunder prastuti.

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  17. बहुत सुन्दर भावपूर्ण यादें ....

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