जब-जब
भीड़ भरी राहों पर
किसी
नन्हीं बच्ची को
बड़ी
शान से अपने पिता के
कन्धों
पर सवार देखती हूँ
मुझे
आप याद आते हैं बाबूजी !
जब-जब
बच्चों को
‘अबू
बैन एडम’ और ‘साम ऑफ लाइफ’
का
भावार्थ समझाती हूँ
मुझे
आप याद आते हैं बाबूजी !
जब-जब
किसी बुज़ुर्ग को
अपनी
उम्रदराज़ पत्नी के
आँचल
से अपने हाथ और चेहरा
पोंछते
हुए देखती हूँ
मुझे
आप याद आते हैं बाबूजी !
जब-जब
ज़िंदगी के मुश्किल सवाल
मुझे
पेंच दर पेंच उलझाते जाते हैं
और
उनका कोई हल मुझे
सुझाई
नहीं देता ,
मुझे
आप याद आते हैं बाबूजी !
सच
तो यह है कि
उम्र
के इस मुकाम पर पहुँच कर भी
अपनी
हर समस्या, हर उलझन ,
हर
चिंता, हर फ़िक्र, हर परेशानी,
के
निदान के लिए मुझे
आज
भी सिर्फ और सिर्फ
आप
ही याद आते हैं बाबूजी !
साधना
वैद
Happy Father's Day!
ReplyDeleteआप ही याद आते हैं बाबूजी !
ReplyDeleteNice post.
जीवन पात्र मेरा खाली रह जाता
ReplyDeleteपिता के रूप में जो तुम्हें नहीं पाता
इसके आगे नहीं निष्कर्ष कोई
दूसरा नहीं मेरा आदर्श कोई ...
हर आती जाती सांस में याद आयेंगे.....
ReplyDeleteउनकी दी हुई तो है ये साँसें...ये जीवन.......
सादर नमन.
पितृ दिवस पर यादों की सौगात पिता को ...बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआप ही याद आते हैं बाबूजी !
ReplyDeleteफादर्स डे पर भावुक करती प्रस्तुति.
बस ऐसे ही तो होते हैं बाबूजी
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत भावपूर्ण और सुन्दर प्रस्तुति |मुझे भी बहुत याद आती हैं वे छोटी छोटी बातें जो बाबूजी अक्सर कुछ सिखाने के लिए कहा करते थे |
ReplyDeleteआशा
नमन उन्हें!
ReplyDeleteपिता हमेशा ऐसे ही याद आते हैं !
ReplyDeletesach me pitajee ko ham bhul kahan paate hain...
ReplyDeleteभावुक करती सुन्दर अभिव्यक्ति...साधना जी..
ReplyDeleteHappy Father's Day!
ReplyDeleteसच तो यह है कि उम्र के इस मुकाम पर पहुँच कर भी अपनी हर समस्या, हर उलझन , हर चिंता, हर फ़िक्र, हर परेशानी, के निदान के लिए मुझे आज भी सिर्फ और सिर्फ आप ही याद आते हैं बाबूजी !
ReplyDeleteवे सदा याद आयेंगें ..... विनम्र नमन
हमेशा याद आयेंगे...
ReplyDeleteजब तक है ये साँसें...ये जीवन...
सादर नमन...
हाँ पिता का साया वो घनी छाँव होती है जो अपने जीवन में हमारे सिर पर कभी भी धूप की तपिश को आने ही नहीं देता है. काश उस साए को हम अपने सिर पर सदैव रख पाते.
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस भावुक करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें.....साधना जी
sabke apne papa k sath apne apne anubhav hain....aur ye aise anubhav hain jo bas hamare man ki bagiya me sadabahaar k foolon ki tarah lahlahate rahte hain.
ReplyDeletesunder prastuti.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण यादें ....
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