Followers

Sunday, June 24, 2012

कुछ तो कहो


उँगलियों की
शिथिल पकड़ से
सब्र के आँचल का
रेशमी सिरा
छूटता सा जाता है !
एक बाँझ प्रतीक्षा का
असह्य बोझ
हताशा से चूर
थके मन पर
बढ़ता सा जाता है !
सुकुमार सपनों की
आशंकित अकाल
मृत्यु का शोक
पलकों के बाँध तोड़
आँसुओं के सैलाब में
बहता सा जाता है !
मुझे कब तक
अपने अवसन्न अधरों पर
तुम्हारे स्वागत के लिए
स्वरबद्ध किये  
सदियों पुराने गीतों को
दोहराते हुए
बैठे रहना होगा !
अब ना तो
आवाज़ में वो कशिश बाकी है
कि एक अलाप पर
बुझे दीप जल उठें
और अन्धेरा दूर हो जाये  
ना संगीत में वो जादू है
कि एक तान पर
मेघ गगन में छा जायें
और घनघोर वृष्टि हो जाये !
कुछ तो कहो  
क्या उपाय करूँ
कि ज्वर से तप्त
इस दग्ध तन मन को
कुछ तो राहत
कुछ तो शीतलता
मिल सके !  

साधना वैद  



25 comments :

  1. इस दग्ध तन मन को
    कुछ तो राहत
    कुछ तो शीतलता
    मिल सके !

    आपकी कविता पूरी तरह अपनी बात कह जाती है ...बहुत प्रबलता होती है भावों की ....दर्द और एक टीस ...रिस रही है ...
    बहुत सुंदर रचना ...साधना जी ...!!

    ReplyDelete
  2. बेहद गहन अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  3. शब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...... .

    ReplyDelete
  4. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 25-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-921 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
  5. गहन गंभीर विचारों से ओतप्रोत रचना बहुत कुछ कह जाती है |
    आशा

    ReplyDelete
  6. बेहद गहन भाव अभिव्यक्ती...
    बहूत बढीया...
    :-)

    ReplyDelete
  7. मर्मस्पर्शी रचना....
    सुन्दर शब्द चयन और गहरे भाव

    ReplyDelete
  8. मुझे कब तक
    अपने अवसन्न अधरों पर
    तुम्हारे स्वागत के लिए
    स्वरबद्ध किये
    सदियों पुराने गीतों को
    दोहराते हुए
    बैठे रहना होगा !

    bahut sundar....!!

    ReplyDelete
  9. ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

    ReplyDelete
  10. बहुत मार्मिक .... गहन टीस लिए हुये

    ReplyDelete
  11. दग्ध मन , इंतज़ार की चिंगारियां और अनगाये गीत ... प्रतीक्षा की अवधि अब तो खत्म हो... कुछ भी कहो, पर कहो तो ...

    ReplyDelete
  12. उत्कृष्ट |
    बहुत बहुत बधाई |

    ReplyDelete
  13. बेहद मार्मिक...गहन...और दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति.....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  14. नए बिम्बों के साथ उत्तम रचना....
    सादर बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
  15. इस दग्ध तन मन को
    कुछ तो राहत
    कुछ तो शीतलता
    मिल सके !

    अपनी बात को बहुत ही मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है और ह्रदय से निकली हुए भाव ह्रदय तक जाते हें. बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  16. Ik dil se nikli dard kee vedna ko kya naam doon, shabdo ke prayog ka bemisal udaharan hai
    vijay saxena

    ReplyDelete
  17. bahut bhabuk aur hriday sparshi kavita
    vijay saxena

    ReplyDelete
  18. बहुत गहन भाव मन की व्यथित अवस्थायं कुछ न पाने का दर्द वक़्त को ना रोक पाने का गम बहुत कुछ कहती है रचना ...अतिसुन्दर

    ReplyDelete
  19. एक बाँझ प्रतीक्षा का
    असह्य बोझ
    हताशा से चूर
    थके मन पर
    बढ़ता सा जाता है !

    शब्द और भावों का चमत्कार कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा.उत्केष्ट रचना.

    ReplyDelete
  20. कुछ तो कहो क्या उपाय करूँ कि ज्वर से तप्त इस दग्ध तन मन को कुछ तो राहत कुछ तो शीतलता मिल सके !
    .....गहन टीस लिए हुये मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है

    ReplyDelete
  21. Wirah kee peeda bakhoobi utar aaee hai is rachna men.
    Aap mere blog par aaeen bahut achcha laga.

    ReplyDelete
  22. ापनी कलम को और कितना दर्द देंगी? मार्मिक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  23. apno k dard ka ehsas ek samvedan sheel hridy jab karta hai to kuchh u hi shabdo ki baangi ban jati hai.

    marmik prastuti.

    ReplyDelete