उँगलियों
की
शिथिल
पकड़ से
सब्र
के आँचल का
रेशमी
सिरा
छूटता
सा जाता है !
एक
बाँझ प्रतीक्षा का
असह्य
बोझ
हताशा
से चूर
थके
मन पर
बढ़ता
सा जाता है !
सुकुमार
सपनों की
आशंकित
अकाल
मृत्यु
का शोक
पलकों
के बाँध तोड़
आँसुओं
के सैलाब में
बहता
सा जाता है !
मुझे
कब तक
अपने
अवसन्न अधरों पर
तुम्हारे
स्वागत के लिए
स्वरबद्ध
किये
सदियों
पुराने गीतों को
दोहराते
हुए
बैठे
रहना होगा !
अब
ना तो
आवाज़
में वो कशिश बाकी है
कि
एक अलाप पर
बुझे
दीप जल उठें
और
अन्धेरा दूर हो जाये
ना
संगीत में वो जादू है
कि
एक तान पर
मेघ
गगन में छा जायें
और
घनघोर वृष्टि हो जाये !
कुछ
तो कहो
क्या
उपाय करूँ
कि
ज्वर से तप्त
इस
दग्ध तन मन को
कुछ
तो राहत
कुछ
तो शीतलता
मिल
सके !
साधना
वैद
इस दग्ध तन मन को
ReplyDeleteकुछ तो राहत
कुछ तो शीतलता
मिल सके !
आपकी कविता पूरी तरह अपनी बात कह जाती है ...बहुत प्रबलता होती है भावों की ....दर्द और एक टीस ...रिस रही है ...
बहुत सुंदर रचना ...साधना जी ...!!
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeletewah.....marmik.
ReplyDeleteशब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 25-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-921 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
गहन गंभीर विचारों से ओतप्रोत रचना बहुत कुछ कह जाती है |
ReplyDeleteआशा
बेहद गहन भाव अभिव्यक्ती...
ReplyDeleteबहूत बढीया...
:-)
मर्मस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन और गहरे भाव
मुझे कब तक
ReplyDeleteअपने अवसन्न अधरों पर
तुम्हारे स्वागत के लिए
स्वरबद्ध किये
सदियों पुराने गीतों को
दोहराते हुए
बैठे रहना होगा !
bahut sundar....!!
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
ReplyDeleteबहुत मार्मिक .... गहन टीस लिए हुये
ReplyDeleteदग्ध मन , इंतज़ार की चिंगारियां और अनगाये गीत ... प्रतीक्षा की अवधि अब तो खत्म हो... कुछ भी कहो, पर कहो तो ...
ReplyDeleteशानदार!!
ReplyDeleteउत्कृष्ट |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई |
बेहद मार्मिक...गहन...और दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसादर
अनु
नए बिम्बों के साथ उत्तम रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई स्वीकारें.
इस दग्ध तन मन को
ReplyDeleteकुछ तो राहत
कुछ तो शीतलता
मिल सके !
अपनी बात को बहुत ही मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है और ह्रदय से निकली हुए भाव ह्रदय तक जाते हें. बहुत सुंदर.
Ik dil se nikli dard kee vedna ko kya naam doon, shabdo ke prayog ka bemisal udaharan hai
ReplyDeletevijay saxena
bahut bhabuk aur hriday sparshi kavita
ReplyDeletevijay saxena
बहुत गहन भाव मन की व्यथित अवस्थायं कुछ न पाने का दर्द वक़्त को ना रोक पाने का गम बहुत कुछ कहती है रचना ...अतिसुन्दर
ReplyDeleteएक बाँझ प्रतीक्षा का
ReplyDeleteअसह्य बोझ
हताशा से चूर
थके मन पर
बढ़ता सा जाता है !
शब्द और भावों का चमत्कार कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा.उत्केष्ट रचना.
कुछ तो कहो क्या उपाय करूँ कि ज्वर से तप्त इस दग्ध तन मन को कुछ तो राहत कुछ तो शीतलता मिल सके !
ReplyDelete.....गहन टीस लिए हुये मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है
Wirah kee peeda bakhoobi utar aaee hai is rachna men.
ReplyDeleteAap mere blog par aaeen bahut achcha laga.
ापनी कलम को और कितना दर्द देंगी? मार्मिक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
ReplyDeleteapno k dard ka ehsas ek samvedan sheel hridy jab karta hai to kuchh u hi shabdo ki baangi ban jati hai.
ReplyDeletemarmik prastuti.