ठहरे
हुए पलों में कैद
एक
बेमानी बेमकसद
ज़िंदगी
के सलीब को खुद
अपने
ही कन्धों पर
ढोना
पड़ता है ,
अगर
ज़िंदा होने के अहसास
से
रू ब रू होना हो तो
बीते
दिनों की खुशबू और
यादों
के घने वनांतर में
गहराई
तक अंदर जा
खुद
को ही नये सिरे से
खोना
पड़ता है !
रंगीन
तितलियों जैसे
जाने
कितने सुखद पल
वक्त
के बाजीगर की
जादूगरी
से
नितांत
खाली मुट्ठी में
अचानक
से सिमट आते हैं ,
और
ना जाने कितने
खूबसूरत
मंज़र गगन में
दूर
तक फ़ैले
चाँद
सितारों की तरह
मनाकाश
पर छा जाते हैं !
वो
छोटे से शहर की
पतली-पतली
गलियों में
सहेली
को चलती
साइकिल
पर बिठा
डबल
सवारी चलाने की
कोशिश
करना ,
और
डगमगाते हैंडिल को
सम्हालते-सम्हालते
सहेली
को भी गिराना
और
खुद भी गिरना !
फिर
आस पास हँसते लोगों
की
नज़रों से बचने की कोशिश में
“धीरे से नहीं बैठ सकती थी पागल ”
कह
सहेली को झिड़कना ,
और
जल्दी से कॉपी किताबें समेट
हवा
की सी तेज़ी से
वहाँ
से खिसकना !
वो
हिन्दी के सर की
क्लास
बंक कर
कॉलेज
के गार्डन के कोनों में
सखियों
के संग
गपशप
की चटपटी चटनी के साथ
समोसे
पकौड़ों की पार्टी करना ,
और
चुपके से कभी दुपट्टे में
तो
कभी रिबन में गाँठ लगा
दो
लड़कियों को
जी
भर के तंग करना !
वो
तीरथगढ़ और चित्रकूट
जलप्रपातों
की सैर ,
वो
इन्द्रावती का किनारा ,
वो
बैडमिंटन और कैरम के मैच
वो
कॉमन रूम में
सहेलियों
का शरारत भरा इशारा !
मन
के किसी कोने में
दबी
छुपी ये यादें ही
आज
की ठहरी ज़िंदगी को
रवानी
देती हैं ,
और
उम्रदराज़ होती
दिल
की थकी हुई
लस्त
तमन्नाओं को
जी
उठने का
नायाब
सलीका सिखा
फिर
से नयी
जवानी
देती हैं !
साधना
वैद
अरे.......
ReplyDeleteहमारा कॉलेज भी तो चित्रकोट के रास्ते में था...धरमपुरा में.....
:-)
बहुत प्यारी रचना ....दिल के करीब लगी...
सादर
अनु
साधना जी ,
ReplyDeleteआज तो आपने मुझे अपने हॉस्टल पहुंचा दिया .... न जाने कितनी शरारतें याद आ गईं ....
शिथिल जीवन में शायद कुछ तरंगे उठ पाएँ ।
बहुत सुंदर
सहेली को भी गिराना
ReplyDeleteऔर खुद भी गिरना !
यादें समेटे ....खूबसूरत एह्सासों से भरी ...बहुत सुंदर रचना ...
शुभकामनायें.
कुछ यादें यहाँ भी उभरीं...रचना सफल रही...
ReplyDeleteकुछ यादें यहाँ भी उभरीं...रचना सफल रही...
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें
ReplyDeleteयादों का सुन्दर झरोखा..बहुत सुन्दर..साधना जी..
ReplyDeleteवाह वाह वाह यादों की सुन्दर तस्वीर खींच दी।
ReplyDeleteसचमुच बहुत सारी यादें ताज़ा हो गईं आपके साथ... वो हिंदी के सर वाली भी बिलकुल अपनी सी लगी... :)
ReplyDeleteवाह ... यादों में बसे यह मधुर पल जीवंत से ..
ReplyDelete@ अब आपको किस नाम से संबोधित करूँ दुविधा में हूँ क्योंकि अभी तक मुझे आपका नाम तो पता ही नहीं है इसलिए 'एक्सप्रेशन जी' से ही काम चलाना पडेगा ! आपके कमेन्ट से पता चला कि आप भी जगदलपुर से सम्बन्ध रखती हैं ! अपार हर्ष होता है जब कोई जगदलपुर से ताल्लुक रखने वाला कोई मिलता है ! हम आपसे भी पुराने ज़माने के हैं ! उन दिनों कॉलेज महल की प्रेमिसेज़ में लगता था ! धरमपुरा में उन दिनों कॉलेज की बिल्डिंग बन रही थी ! जब वहाँ कॉलेज शिफ्ट हुआ तब तक हम लोग जगदलपुर छोड़ चुके थे क्योंकि मेरे पिताजी का ट्रांसफर हो गया था ! परिचय के साथ यदि आप आपना ई मेल एड्रेस भी देंगी तो आभारी रहूंगी !
ReplyDeleteक्या बात है..यादों के किस जंगल में ले गयी ये कविता कि निकलना मुश्किल..
ReplyDeleteबड़े प्यारे प्यारे पल...याद दिला गयी ये ख़ूबसूरत कविता.
मन के किसी कोने में
ReplyDeleteदबी छुपी ये यादें ही
आज की ठहरी ज़िंदगी को
रवानी देती हैं.
पुराने पलों की यादें बस सिर्फ याद करने के लिए होती हें फिर इतनी भी फुरसत कहाँ कि उन सहेलियों के संग कुछ दिन भी गुजर सकें.
शरारतों से भरपूर बीते कॉलेजके दिनों की यादें समेटे सुन्दर प्रस्तुति |बहुत अच्छी लगी इसी तरह की कवितायेँ जीवन में भी जान डाल देती है |हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआशा
साधना जी हमने आपको मेल किया है.....
ReplyDelete:-)
आपने देखा नहीं...मैं अनु हूँ,लिखा है मैंने.
अनु
कल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' जुलाई का महीना ''
dil se....bahut achchi lagi.
ReplyDeleteकहाँ-कहाँ भटका दिया आपने - जितनी मधुर उतनी ही प्यारी यादों के जंगल में,
ReplyDelete-बहुत प्यारी रचना !
ye yade kuchh khatti...kuchh meethi jo jeewan ki naiya ko khete chalne ka aadhar hain aur mand thandi thandi vayu ka sa ehsaas kara jati hain.
ReplyDeletebahut sunder chitran kar diya beete dino ka.
यादों के जिस रास्ते पर आपने खड़ा किया , वहाँ तो यादों के वृक्ष की हर शाखाओं ने हाथ थाम लिया , एक साथ कई चेहरे , कई पुकार , कई हँसी .... जाने कितना कुछ साथ साथ हो गए !
ReplyDeleteसच कहा है ... अपने आप ही उठाना पढता है जीने के एहसास के लिए ... खुद से ही बात करनी हिती है ...
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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अगर ज़िंदा होने के अहसास
ReplyDeleteसे रू ब रू होना हो तो
बीते दिनों की खुशबू और
यादों के घने वनांतर में
गहराई तक अंदर जा
खुद को ही नये सिरे से
खोना पड़ता है !
यादों के झरोखों से निकलकर आयी एक बड़ी अच्छी और सुंदर रचना !!
यही खूबसूरत पल ज़ेहन में हर वक़्त उम्र की सरहदों पर टिके रहते हैं ...
ReplyDeleteखूबसूरत यादों की मीठी कविता !
यादें....यादें.....ये यादें.....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर