नहीं समझ पाती जीजी
रक्ताश्रु तो मैंने भी
चौदह वर्ष तक तुमसे
कम नहीं बहाए हैं
फिर मेरे दुःख को कम कर
क्यों आँका जाता है ,
केवल इसीलिये कि
मैं राम की नहीं
लक्ष्मण की माँ हूँ
मेरे अंतर के व्रणों को
हृदयहीनता के स्थूल आवरण
के तले मुँदी हुई पलकों से
क्यों झाँका जाता है ?
बोलो जीजी
पुत्र विछोह की पीड़ा
क्या केवल तुमने भोगी थी ?
मैंने भी तो उतने ही
वर्ष, मास, सप्ताह, घड़ी, पल
पुत्र दरस का स्वप्न
आँखों में लिए
तुम्हारी परछाईं बन
तुम्हारे साथ-साथ ही काटे थे ना
फिर मेरी पीड़ा तुम्हारी पीड़ा से
बौनी कैसे हो गयी ?
वैधव्य का अभिशाप भी
अकेले तुमने ही तो नहीं सहा था ना
मैंने भी तो उस दंश की चुभन को
तुम्हारे साथ-साथ ही झेला था !
मेरे सुख सौभाग्य का सूर्य भी तो
उसी दिन अस्त हो गया था
जिस दिन कैकेयी की लालसा, ईर्ष्या
और महत्वाकांक्षा का मोल
महाराज दशरथ को
अपने प्राण गँवा कर
चुकाना पड़ा था !
फिर सारा विश्व कौशल्या की ही
व्यथा वेदना से आकुल व्याकुल क्यों है
क्या मेरी व्यथा वेदना किसी भी तरह
तुमसे कम थी ?
जीजी, राम की
भौतिक और भावनात्मक
आवश्यकताओं के लिये तो
उनकी संगिनी सीता उनके साथ थीं
लेकिन मेरे लक्ष्मण और उर्मिला ने तो
चौदह वर्ष का यह वनवास
नितांत अकेले शर शैया
की चुभन के साथ भोगा है !
वियोगिनी उर्मिला के
जीवन में पसरे तप्त मरुस्थलों की
शुष्कता, तपन और सन्नाटों की
भाषा को मैंने शब्द-शब्द पढ़ा है ,
और किसी भी तरह उन्हें
कम ना कर सकने की
अपनी लाचारी के आघात
को भी निरंतर अपने मन पर झेला है
फिर मेरी पीड़ा का आकलन
यह संसार कम कैसे कर लेता है ?
मेरा दुःख गौण और बौना
क्या सिर्फ इसीलिये हो जाता है
कि मैं मर्यादा परुषोत्तम राम
की माँ कौशल्या नहीं
उनके अनुज लक्ष्मण
की माँ सुमित्रा हूँ ?
साधना वैद
चित्र -- गूगल से साभार
मैं मर्यादा परुषोत्तम राम
ReplyDeleteकी माँ कौशल्या नहीं
उनके अनुज लक्ष्मण
की माँ सुमित्रा हूँ ?
गहन भाव लिए एक सच जिसे शब्दों में उतार आपने नि:शब्द कर दिया ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
सुमित्रा ने आपकी बाहें गहीं , और सदियों का मौन उकेर दिया - कई बातें समय पर खामोश ही रह जाती हैं , पर बोलती हैं एक दिन ...
ReplyDeleteइस सार्थक सजीव चित्रण के एक एक शब्द ह्रदय को बेधते हैं
पुत्र विछोह का अनुपम चित्रण उकेरा है.सुमित्र के इस दर्द से लोग क्यो मौन रहे....बहुत सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत गहन रचना......
ReplyDeleteदुःख का पैमाना क्या सबके लिए अलग अलग है....
दिल को छू गयी रचना...
सादर
अनु
प्रभावित करती रचना .
ReplyDeleteसच तो है ,,,सुमित्रा के दर्द की
ReplyDeleteबात क्यों नहीं कही जाती..
गहन भाव लिए मार्मिक रचना...
सचमुच सुमित्रा और उर्मिला के ह्रदय का दर्द आपके शब्दों में बोल उठा... गहन भाव... आभार
ReplyDeleteसुमित्रा का संताप दर्शा कर बहुत गहन विषय पर लिखा है. वेदना को शब्दों में ढाल कर मन के भाव मुखरित हो गए.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक वर्णन किया है सुमित्रा के संताप का बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
सुमित्रा के दर्द पर पहली रचना पढ़ी है .... बस जो सामने है उसी का दर्द दर्द है बाकी सब गौण हो कर रह जाता है ... इस व्यथा को बहुत सार्थक रूप में उकेरा है ...
ReplyDeleteउर्मिला का विरह भी स्थान पा चुका साकेत में पर कभी सुमित्रा का नाम नहीं आया ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
कल 11/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' अहा ! क्या तो बारिश है !! ''
mathili ji vaah-vahi paa gaye urmila ka dard uker kar aur aaj saadhna ji clap clap clap aap is vah-vahi ki hakdaar hain. sach me kisi ne sumitra k dard ko n socha...n likha...
ReplyDeletelekin ek baat aur bhi vichaarneey ho gayi apki ye rachna padh kar jahan sumitra kaushlaya se ram-sita k van-gaman aur sath rahne ki baat karti hain vahan sumitra ye bhool jati hain ki kaushalya to bina bete-bahu k nitant akeli rah gayi...aur sumitra k pas kam se kam urmila to hai...dhadhas dene k liye beshak vo vireh vedna ki maari de n saki lekin kahte hain na...ghayal ki gati ghayal jane...so sumitra aur urmila to ek dusre k dard ka sahara thi.
bahut prabhavshali rachna.
सच बताऊँ दीदी
ReplyDeleteआपकी रचना पहली बार पढ़ रही हूँ
और अब हरदम पढ़ती रहूँगी
और पढ़ती रहूँगी
सादर
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर
ह्रदय को छू लेने वाली रचना...सुमित्रा के दर्द का मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteएक अनकहे दर्द को बयां करना सरल नहीं..
ReplyDeleteमर्म को छूती बहुत सुन्दर सार्थक रचना
एक ऐसे अनछुए व्यक्तित्व को आपने स्वर दिया है जिसे साहित्य ने हाशिए पर डाल रखा है।
ReplyDeletemarmik......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteसुमित्रा के दर्द पर पहली रचना गढ़ी गई है! आभार आपका !
मेरा दुःख गौण और बौना
ReplyDeleteक्या सिर्फ इसीलिये हो जाता है
कि मैं मर्यादा परुषोत्तम राम
की माँ कौशल्या नहीं
उनके अनुज लक्ष्मण
की माँ सुमित्रा हूँ ?
सुमित्रा के अंतर्मन में उठता एक वाजिब प्रश्न .....
सुंदर रचना ....
बहुत से दर्द अदेखे रह गए ...
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