कब
तक तुम नारी को
सवालों
के घेरे में
कैद
करके रखोगे !
और
उसके मुख से निकले
हर
शब्द, हर आचरण की
शल्य
चिकित्सा में
प्राण
प्रण से जुटे रहोगे !
देखो,
तुम्हारे सवालों के
तीक्ष्ण
बाणों ने
किस
तरह उसके तन मन को
छलनी
कर रख दिया है !
क्यों
सदियों से उसे
उन
गुनाहों का दण्ड
भुगतना
पड़ रहा है
जिनके
उत्तरदायी तो
कोई
और थे लेकिन
जिनके
परिमार्जन के लिये
भेंट
उसे चढ़ा दिया गया !
वह
चाहे सीता हो या कुंती,
पांचाली
हो या प्रेम दीवानी मीरा
हर
विप्लव का कारण
उसे
ही ठहराया गया और
सबके
क्रोध की ज्वाला में
झुलसना
उसीको पड़ा !
परोक्ष
में छिप कर बैठे
इन
सभी दुखांत नाटकों के
सूत्र
धारों के असली चेहरे
कोई
पहचान न पाया
और
शुद्धिकरण के यज्ञ में
आहुति
उसीकी पड़ी !
क्यों
आज भी अपने हर
गुनाह
के धब्बों को
पोंछने
के लिये तुम्हें
एक
स्त्री के पवित्र आँचल
की
आवश्यकता पड़ती है ?
क्यों
तुम दर्पण में
अपना
चेहरा नहीं देख पाते ?
क्या
सिर्फ इसलिए कि
बलिवेदी
पर भेंट चढ़ाने के लिये
एक
बेजुबान पशु के मस्तक की
व्यवस्था
करना तुम्हारे लिये
बहुत
आसान हो गया है ?
आज
भी शायद इसीलिये
हर
शहर में, हर गाँव में
हर
गली में, हर मोड़ पर
अपमान
और ज़िल्लत की शिकार
सिर्फ
औरत ही होती है
और
इन सबके गुनाहगार
शर्मिंदगी
की सारी कालिख
औरत
के चेहरे पर पोत
अपने
चेहरों पर शराफत और
आभिजात्य
का मुखौटा चढ़ाये
बेख़ौफ़
सरे आम घूमते हैं !
क्या
आज की नारी भी
अपनी
अस्मिता की रक्षा
करने
में अक्षम है ?
कब
वह अपने अंदर की
दुर्गा,
काली, चंडिका और
महिषासुरमर्दिनी
को जागृत
कर
पायेगी और अपने
चारों
ओर पसरे असुरों का
संहार
कर अपने लिए
एक
भयमुक्त समाज की
रचना
कर पायेगी ?
आखिर कब ?
साधना
वैद
और इन सबके गुनाहगार
ReplyDeleteशर्मिंदगी की सारी कालिख
औरत के चेहरे पर पोत
अपने चेहरों पर शराफत और
आभिजात्य का मुखौटा चढ़ाये
बेख़ौफ़ सरे आम घूमते हैं !
सही आक्रोश दिखती विचारणीय रचना ...
बढिया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteजब नारी एकजुटता हो जाए ..
एक दूसरे के पक्ष में खडी हो जाए ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसशक्त रचना.
सादर
अनु
बहुत बढिया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteनारी शक्ति को दर्शाती सुंदर व सशक्त रचना .....
ReplyDeleteसादर !!
gahan prash ..
ReplyDeleteprabal prastuti ...sadhanaa ji ..samsaamayik bhi ...!!
gahan prash ..
ReplyDeleteprabal prastuti ...sadhanaa ji ..samsaamayik bhi ...!!
गहन भाव लिए सशक्त प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
शुन्यता की स्थिति में चला गया है शरीर .... सत्य झनझनाहट बन जाता है शिराओं में !
ReplyDeleteएक भयमुक्त समाज की
ReplyDeleteरचना कर पायेगी ?
आखिर कब ?
shayad ye rachana komaa me pade insaniyat ko jhanjhkor kar naye pran sanchar kar sake !
मेरी टिप्पणी स्पैम से निकालिए
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर साधना जी मन को झकझोर कर देने वाली प्रस्तुति सचमे आज की नारी को आने वाली नारी पीढ़ी को एक मजबूत परिपाटी देने के लिए प्रयास रत रहना चाहिए बहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteसबला नारी हो रहीं, इतनी क्यों लाचार।
ReplyDeleteनारी से होता श्रजन, सारा ही संसार।।
bahot prabhawshali rachna......
ReplyDeleteनारी शक्ति को दर्शाती बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत गहन विचार लिए रचना |बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
इस प्रश्न का उत्तर ना जाने कब मिलेगा………।बेहद गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसारी के सारी नारी शक्ति मिलकर इन दुष्टों के संहार में क्यों नहीं लग जाती
ReplyDeleteगहन भाव लिए प्रत्येक शब्द ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार
ReplyDeleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...सशक्त रचना..
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeletethode din pahle ki ghatna par ek jabardast aakrosh bhari rachna rach dali.
ReplyDeletebadhiya prastuti.
भयमुक्त समाज की आकांक्षा और संकल्पना बहुत सुंदर है.
ReplyDeleteआखिर कब ...कुछ कदम चलते हैं फिर लगता है, फिर से वही पहुंचे !!
ReplyDeleteसशक्त भाव ...बेहतरीन रचना
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