आँखों
के दरीचों में
वक्त
की सुनामी और
गहन
तीव्रता से आये भूकंप
के
बाद भी एक
नन्हा
सा, नाज़ुक सा ख्वाब
पलकों
की ओट में
कहीं
अटका रह गया है !
डरती
हूँ
तुम्हारी
उपेक्षा की आँच
कहीं
इसे झुलसा कर
नष्ट
ना कर दे
और
मेरी आँखों के ये दरीचे
कहीं
फिर से
सूने
ना हो जाएँ !
आजकल
सन्नाटों की आशंका
मुझे
बहुत डरा जाती है
क्योंकि
मुझे
संशय
और दुविधाओं के साथ
जीने
की आदत
जो
पड़ गयी है !
साधना
वैद
गहन अर्थ लिए हुए रचना...
ReplyDeleteसुन्दर !!
सादर
अनु
सुनामी और भूकंप के बाद भी कोई ख्वाब टिका रहे तो उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता ...सन्नाटा तूफान से पहले की शांति होता है .... :):) मन की दुविधा को बखूबी बयान किया है
ReplyDeleteडरती हूँ
ReplyDeleteतुम्हारी उपेक्षा की आँच
कहीं इसे झुलसा कर
नष्ट ना कर दे
और मेरी आँखों के ये दरीचे
कहीं फिर से
सूने ना हो जाएँ !
हम्म...
बड़ी मुश्किल से बचा के रखे हैं अब तक...!
खूबसूरत..!
गहरा अर्थ छिपा है इस रचना में |बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteआशा
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
मन की दुविधा को बहुत सुन्दरता से व्यक्त किया है साधना जी ..सुन्दर रचना
ReplyDeleteतूफान के बाद या पहले के सन्नाटे भयभीत करते ही हैं !
ReplyDeleteदुविध्ग्रस्त मन को बयान करती भावपूर्ण कविता !
एक ख्वाब अटका रह ही जाता है , लेने लगता है विस्तार .... फिर डर !
ReplyDeleteदुविधा ही जीवन है
वक्त की सुनामी और
ReplyDeleteगहन तीव्रता से आये भूकंप
के बाद भी एक
नन्हा सा, नाज़ुक सा ख्वाब
पलकों की ओट में
कहीं अटका रह गया है
अब उस ख़्वाब का कोई
कुछ नहीं बिगाड़ सकता !
उसे पूरा होना ही होगा !
bahut achcha likhi hain.....
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए हुए रचना
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteबहुत - बहुत सुन्दर
ReplyDeleteगहनता लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति...
:-)
सुन्दर,गहन, भावपूर्ण.
ReplyDeleteश्रीकृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
bimar thi isliye itne dino se apki post nahi padh saki. maafi chaahti hun.
ReplyDeletebahut sunder varnan kiya hai man ki duvidha ka, aur bimbo/prateekon ka sunder prayog hai.
आज 14/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteहोने और ना होने के बीच अटकी जिंदगी का सच
ReplyDeletewah ! gehra arth liye rachna
ReplyDeleteतुम्हारी उपेक्षा की आँच
ReplyDeleteकहीं इसे झुलसा कर
नष्ट ना कर दे
और मेरी आँखों के ये दरीचे
कहीं फिर से
सूने ना हो जाएँ !
bahut hi sundar aur prabhavshali rachana .....sadar badhai