एक
रात
अपने जीवन की
चिर
पुरातन
स्मृति
मंजूषा में संग्रहित
खट्टे
मीठे अनुभवों के
ढेर
सारे बीज
मुझेअनायास
ही
मिल गये !
लेकिन
अल्पज्ञ हूँ ना
नहीं
जानती थी
कौन
सा बीज
किस
फूल का है !
सोचा
इन्हें
अपने
बागीचे में
बो
ही दूँ
शेष
जीवन तो
सौरभयुक्त
हो जाये !
और
फिर एक दिन
सम्वेदना
की नम धरा पर
भावनाओं
का खूब सारा
खाद
पानी डाल
अपने
सारे कौशल के साथ
मैंने
इन्हें बो दिया
लेकिन
इनमें फूल कम
और
काँटे ज्यादह निकलेंगे
यह
कहाँ जानती थी !
अब
तो बस
यही
एक अफ़सोस है
जिन
अपनों को
फूलों
की खुशबू से
सराबोर
करने की चाह थी
उन्हीं
की उँगलियाँ
इन
काँटों की चुभन से
हर
रोज़
घायल
हो रही हैं
और
मैं निरुपाय
इस चुभन की पीर को
रोक
भी तो नहीं
पा
रही हूँ !
साधना
वैद
जिन अपनों को
ReplyDeleteफूलों की खुशबू से
सराबोर करने की चाह थी
उन्हीं की उँगलियाँ
इन काँटों की चुभन से
हर रोज़
घायल हो रही हैं
भावमय करते शब्द मन को छूती हुई सी यह पोस्ट ... आभार
बेहद भावमयी
ReplyDeleteकांटे अधिक न हों तो गुलाब की क्या अहमियत ....
ReplyDeleteगुलाब की नियति कमल की नियति हरसिंगार की नियति कौन नहीं जानता ! पर इसी में उनके अर्थ हैं , सौंदर्य है
हर रोज़
ReplyDeleteघायल हो रही हैं
और मैं निरुपाय
इस चुभन की पीर को
रोक भी तो नहीं
पा रही हूँ !
त्रासदी झेलना हम जैसो को ही क्यों होता है .... ?
"और मै निरुपाय ------हम जैसों को ही क्यूं होता है "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव समेटे पंक्ति |अच्छी और ग्भाव्पूर्ण प्रस्तुति |
bhavpurn
ReplyDeleteगहरे भाव लिए अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरपूर आपका प्रयास था .... फूल कितने ही हों कम लगते हैं ....और कांटे ज्यादा ...रचना पढ़ कर बस एक ही शब्द ...वाह
ReplyDeletebehad samvedansheel post .
ReplyDelete.nice presentation.आजादी ,आन्दोलन और हम और भी प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
ReplyDeletelekhak ki soch kahan kahan tak pahunch jati hai aur kaise kaise shbd jaal se sunder kavita ka nirmaan kar dalte hain lekhak apni lekhni se....ye hatprabh kar deti hai.
ReplyDeletesateek shabdon ke chayan se ehsason ko bayaan kiya hai.
koshish karna insan ka karam hai so aapne bhi kiya...lekin vo kahte hai na jaisa bovoge waisa hi paoge...afsos ke samvedna ki dhara par kaanto k beej jyada the.