राहे मंजिल कंटकों से थी भरी
हर
कदम, हर मोड़ पर बाधा खडी
टूटता
था हौसला हर पल मेरा
तुम
पकड़ कर हाथ चलते साथ
कुछ
मुश्किल न था !
नाव
थी चहुँ ओर तूफ़ाँ से घिरी
कौंध
कर हर साध पर बिजली गिरी
हहर
कर उमड़ी डुबोने को लहर
थाम
लेते तुम अगर पतवार
कुछ
मुश्किल न था !
.
किस
कदर हमको तुम्हारी आस थी
अनगिनत
वादों की दौलत पास थी
फासलों
को पाटने के वास्ते
बस
बढ़ा देते कदम तुम एक
कुछ
मुश्किल न था !
कब
तलक डूबे रहें इस सोग में
ध्यान
में पायें तुम्हें या योग में
गुत्थियों
को खोलने के वास्ते
ढूँढ
देते एक सिरा जो तुम
कुछ
मुश्किल न था !
साधना
वैद
भावमय करते शब्दों का संगम ...आभार
ReplyDeleteकाश ऐसा साथ मिल जाता तो फिर क्या मुश्किल होता .... बहुत भावपूर्ण और प्रवाह मयी रचना ।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteकब तलक डूबे रहें इस सोग में
ReplyDeleteध्यान में पायें तुम्हें या योग में
गुत्थियों को खोलने के वास्ते
ढूँढ देते एक सिरा जो तुम
कुछ मुश्किल न था !
....भावों से अभिभूत करती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत भावपूर्ण रचना ............
ReplyDeleteKABHI KISI KI MUKAMMAL JAHAN NAHI MILTA....
ReplyDeleteKABHI ZAMIIII.N TO KABHI AASMA NAHI MILTA...
BAS YE TO KISMAT ME AANE WALIN BAANT HAI....JISKE HISSE JO MIL GAYA SO MIL GAYA.
RONE SE BHI KYA HAASIL.
ऐसे साथी की इच्छा हर किसी की होती है ...
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना !
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDelete"किस कदर हमको तुम्हारी आस थी
अनगिनत वादों की दौलत पास थी "
बहुत सुन्दर पंक्तियां|
आशा
गुत्थियों को खोलने के वास्ते
ReplyDeleteढूँढ देते एक सिरा जो तुम
कुछ मुश्किल न था !
..... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!!!
bhawbhini......nazuk si.....
ReplyDeleteकब तलक डूबे रहें इस सोग में
ReplyDeleteध्यान में पायें तुम्हें या योग में
गुत्थियों को खोलने के वास्ते
ढूँढ देते एक सिरा जो तुम
कुछ मुश्किल न था !
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति मन छू गयी
सच्चा साथी हो तो हर मुश्किल आसन हो जाती है... सुन्दर भाव ... आभार
ReplyDeleteआज 16/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteतुम जो होते साथ ,कुछ मुश्किल न था ,.....बहुत बढ़िया रचना ,गेयता सांगीतिकता से भरपूर ,श्रृंगार के वियोग पक्ष से संसिक्त .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
बृहस्पतिवार, 16 अगस्त 2012
उम्र भर का रोग नहीं हैं एलर्जीज़ .
Allergies
राहे मंजिल कंटकों से थी भरी
ReplyDeleteहर कदम, हर मोड़ पर बाधा खडी
टूटता था हौसला हर पल मेरा
तुम पकड़ कर हाथ चलते साथ
कुछ मुश्किल न था !
@ दिनमान हो दिविता न हो संभव नहीं.
कवि पास हो कविता न हो संभव नहीं.
जब भी चलोगे कंटकों की राह पर ....
पिय आप हों औ' हम न हों, संभव नहीं.
नाव थी चहुँ ओर तूफ़ाँ से घिरी
ReplyDeleteकौंध कर हर साध पर बिजली गिरी
हहर कर उमड़ी डुबोने को लहर
थाम लेते तुम अगर पतवार
कुछ मुश्किल न था !
@ आपान हो गणिका न हो संभव नहीं
अपमान हो चिंता न हो संभव नहीं.
जब हो निराशामय हृदय मझधार में
भगवान् हो तिनका न हो संभव नहीं.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति साधना जी.
ReplyDeleteप्रतुल जी आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद ! मेरे दूसरे ब्लॉग 'तराने सुहाने' पर इन दिनों मैं देशप्रेम और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत बहुत ही बेहतरीन गीत पोस्ट कर रही हूँ ! आप ब्लॉग आर्काइव में उन्हें देख कर उनका आनंद ले सकते हैं ! आपने मेरी पिछली एक पोस्ट पर इसका ज़िक्र किया था कि अब देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना नदारद होती जा रही है ! मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ ! मेरे चुने हुए इतने अच्छे गीतों के लिये श्रोता नहीं मिल रहे हैं ! आप सुनेंगे तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी !
ReplyDeleteअद्भुत प्रवाही रचना...
ReplyDeleteसादर