मैं
इन दिनों
प्राण
प्राण से
अपने
मन की
बूँद-बूँद
रिसती
हुई
सारी
कोमलता,
सारी
भावुकता,
सारी
आर्द्रता को
अनुभवों की
आँच पर
खौल कर
वाष्प
बन कर
उड़
जाने से
बचाने
में लगी हूँ !
अंतर्मन
के हर
गवाक्ष
पर
कुछ
तटस्थता
कुछ
असम्पृक्तता
कुछ
निर्मोह के
ताने
बाने से
एक
सुदृढ़ वितान
बुन
कर
मजबूती
से उसे
तानने
में लगी हूँ !
चाहती हूँ
जीवन
की कड़ी
धूप
से
शुष्क
होकर
पल
पल बिखरती,
सरकती
क्षय
होती
मन
की भावनाओं
की बालू में
कहीं
तो
शीतलता और
नमी
का
चाहे हल्का
सा ही सही
कोई
तो अहसास
बचा
रह जाये
ताकि जब तुम
उसे स्पर्श करो
तो तुम्हारी उँगलियाँ
झुलस ना जायें !
साधना वैद
अनुभव ही तो मनुष्य को सच्चे ढंग से जीना सिखाते
ReplyDeleteहैं |बहुत भावपूर्ण और सार्थक रचना |बहुत अच्छा सम्प्रेषण |बधाई
बहुत ही भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteताकि जब तुम
ReplyDeleteउसे स्पर्श करो
तो तुम्हारी उँगलियाँ
झुलस ना जायें
ऐसी चिंता पर बलिहारी जाऊं !
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो
ReplyDeleteकि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें
अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल में
चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
है...
Here is my site खरगोश
मोह को निर्मोह के ताने बाने से बुन लिया जाये तो बहुत कुछ ज़िंदगी आसान हो जाती है .... बहुत खूबसूरती से मन के भावों को उकेरा है .... आपकी रचनाएँ पढ़ कर कई बार यही लगता है कि अरे यह तो मेरे ही मन के भाव हैं ...
ReplyDeletevah....anupam
ReplyDeleteबहुत ही बढिया ।
ReplyDeleteबहुत गहन और भावपूर्ण रचना...रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं...
ReplyDeletebhavon ki varsha hai......
ReplyDeleteनमी का
ReplyDeleteचाहे हल्का सा ही सही
कोई तो अहसास
बचा रह जाये
ताकि जब तुम
उसे स्पर्श करो
तो तुम्हारी उँगलियाँ
झुलस ना जायें !
सच, बहुत ही गहरी बात कही है...
bahut hi prabal sundar bhav ...!!
ReplyDeletebahut sundar rachna ...!!
vitan ko taane rahiye aur vicharo ko aashawadi rakhiye safalta jhak maar k apne aap milegi.
ReplyDeleteबहुत अच्छा सम्प्रेषण
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