टूट के बरसो मेघा
बहा ले चलो
मुझे अपने संग
जहाँ मेरे पिया !
कब तक बाट निहारूँ
मेघ भी बरस कर
चुक गये
तुम न आये !
पीर पिघलती है
बादलों से बारिश बन
भिगोती है तन मन
जलाती है जीवन !
घनघोर वर्षा में
दहकता है मन
बिजली की कड़क सुन
दहलता है मन !
आसमान में
फूटता है ज्वालामुखी
उड़ती हैं चिन्गारियाँ
उमड़ता है लावा
धरा पर
लहलहाती है फसल !
साधना वैद
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