Followers

Tuesday, July 8, 2014

मेरा वाला मोर




सुबह की सैर का कोई और फ़ायदा हुआ हो या ना हुआ हो मुझे मोरों के साथ संवाद करना ज़रूर आ गया ! जी हाँ ऐसा मेरा मानना है ! यहाँ के शाहजहाँ गार्डन में बहुत सारे मोर हैं जो सैर करते हुए अक्सर दिखाई दे जाते हैं कभी इधर-उधर घूम कर दाना चुगते हुए, कभी पेड़ पर बैठे अपने अनुपम सौंदर्य से सबको मंत्रमुग्ध करते हुए या कभी अपने पूरे पंख फैला कर मगन हो नाचते हुए ! पार्क में प्रवेश करते ही हम मोरों की गिनती शुरू कर देते हैं और रोज़ का रिकॉर्ड मेंटेन करते हैं कि आज कितने मोर देखे ! पार्क में टहलने आने वाले कई लोग मोरों के प्रति हमारे इस लगाव से परिचित हो चुके हैं और अक्सर आते जाते पूछ लेते हैं कि आज का स्कोर क्या रहा ! सारे पार्क में इतनी हरियाली और पेड़ पौधों वाली पॉकेट्स हैं कि मोरों के छिप कर सुरक्षित रहने के अनेकों ठिकाने हैं ! इसीलिये प्रतिकूल मौसम में उनके दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं ! फिर भी चार पाँच स्थान ऐसे हैं जहाँ दिखाई दें या ना दें लेकिन वहाँ पर मोर रहते निश्चित रूप से हैं यह बात तय है ! अत्यधिक गर्मी में जब सारे मोर झाड़ियों में दुबक कर छिप जाते हैं तब भी ये मोर कभी निराश नहीं करते और प्रयत्न करने पर दिखाई दे जाते हैं !

पार्क में प्रवेश करने के बाद स्थाई आवास वाला सबसे पहला मोर जो दिखाई देता है वह एक गिरे हुए पेड़ के झुरमुट में रहता है ! उसके पंख बहुत ही भव्य, लंबे एवं दर्शनीय हैं ! सुहावने मौसम में जब यह खुश होकर नाचता है तो सारे सैलानी मंत्रमुग्ध हो उसे देखते ही रह जाते हैं ! इस मोर का नाम मैंने राजा साहेब रखा है ! इसकी शान सबसे निराली है और इसकी चाल सबसे अधिक आकर्षक है ! दूसरा मोर एक पेड़ पर रहता है ! अधिक गर्मी के कारण जब वह पेड़ की नीची डालियों पर उतर आता है तो घने पत्तों के पीछे छिप जाता है और दिखाई नहीं देता ! लेकिन इतने दिनों से लगातार जाते हुए मुझे यह भ्रम होने लगा है कि जैसे वह भी हम लोगों की प्रतीक्षा करता रहता है ! मैं जानती हूँ यह मेरी खुशफहमी ही है लेकिन ऐसा सोचना मुझे अच्छा लगता है ! कल भी जब मैं उसे पेड़ पर ढूँढ रही थी और ना दिखने पर मायूस हो रही थी वह जैसे मेरे मन की बात समझ गया और बड़ी मीठी सी आवाज़ निकाल कर उसने अपनी उपस्थिति जता दी ! मन खुश हो गया ! अनायास मैं बोल पड़ी ‘अब दिख भी जाओ’ और अपनी विशाल पूँछ को फड़फड़ा कर वह तुरंत ऊपर की डाल पर आकर बैठ गया ! दो मोर और हैं जो पौधशाला के पास वाले मैदान में लगभग रोज़ ही दिखाई दे जाते हैं ! कभी अकेले तो कभी अपनी मित्रमंडली के साथ ! कभी-कभी तो ये ट्रैक्स के बिलकुल पास आ अपने अनुपम सौंदर्य से हमें अभिभूत कर जाते हैं ! इन्हें पूरे पंख फैला कर नाचते हुए देखना अत्यंत सुखद अनुभव है !

गर्मी के मौसम में मोर ठंडा स्थान ढूँढ कर झाड़ियों आदि के नीचे दुबक कर बैठ जाते हैं इसलिए कम दिखाई देते हैं ! बरसात के मौसम में ये सबसे अधिक दिखाई देते हैं ! बारिश की वजह से इनके पंख भीग जाते हैं तो उन्हें सुखाने के लिये ये प्राय: हवा और धूप की तलाश में पेड़ों की शाखाओं पर आकर बैठ जाते हैं ! खुशगवार मौसम में मौज में आकर ये बड़ी देर तक नाचते रहते हैं ! इनके साथ अक्सर कई मोरनियाँ भी विचरण करती दिखाई दे जाती हैं ! यह नज़ारा मन मस्तिष्क को अद्भुत खुशी और ताज़गी से भर देता है ! पिछले साल का हमारा रिकॉर्ड २६ मोर का है और हमने एक साथ चार पाँच मोरों को पास-पास नाचते हुए भी देखा है !  

आइये अब आपको मैं अपने वाले मोर से मिलवाती हूँ ! यह शाहजहाँ गार्डन की पौधशाला में बने हुए एक पुराने से कमरे की छत पर रहता है ! दो साल पहले जब इस गार्डन में सुबह की सैर के लिये मैंने जाना शुरू किया तो यही पहला मोर है जो मुझे कमरे की छत पर बैठा दिखाई दिया था ! तभी से यह मुझे बहुत अपना सा लगने लगा है ! यह भी जैसे मेरे मन की बात समझता है ! कुछ दिन पहले बहुत गर्मी थी और पार्क में बड़ी खामोशी सी थी ! मैं सोच रही थी कि आज तो किसी मोर की आवाज़ तक सुनाई नहीं दे रही है तो दिखाई क्या देंगे ! तभी मेरे वाले मोर ने ज़ोर से आवाज़ लगाई और छत के किनारे पर आकर अपनी मनमोहिनी सूरत भी दिखा दी ! इस मोर के लिये मेरे मन में विशेष जगह है ! इसके साथ कुछ साल पहले एक दुर्घटना घट गयी थी जिसकी वजह से इसके कई पंख टूट गये ! श्री कृष्णमुरारी अग्रवाल जी ने मुझे इसके बारे में बताया था ! अग्रवाल जी के बारे में मैंने एक पोस्ट भी कुछ समय पहले लिखी थी ! उस आर्टिकिल की लिंक यह है

 ---http://sudhinama.blogspot.in/2012/09/blogpost_19.html 

पंछियों के साथ इनकी विशेष दोस्ती है और इनकी विशिष्ट आवाज़ सुन कर सारे पंछी दाना खाने के लिये इनके पास उड़ कर आ जाते हैं ! मेरे वाले मोर के साथ वह दुर्घटना अग्रवाल जी की भूल की वजह से उन दिनों हुई थी जब उन्होंने पार्क में आना शुरू ही किया था और उन्हें पंछियों के खान पीने की आदतों और ज़रूरतों के बारे में विशेष जानकारी नहीं थी ! आम तौर पर मोर अनाज के दाने और कीड़े मकोड़े ही खाते हैं ! लेकिन अज्ञानतावश अग्रवाल जी पार्क के पशु-पक्षियों को खिलाने के लिये एक दिन बूँदी के लड्डू ले आये ! मोर बेचारा उन लड्डुओं का स्वाद ले भी नहीं पाया था कि वहाँ रहने वाले चौकीदार के कुत्ते अपने हिस्से के लड्डू चट कर मोर पर टूट पड़े ! मोर और कुत्तों के बीच छिड़े इस घमासान में मोर बुरी तरह घायल हो गया और अपने खूबसूरत पंख गँवा बैठा ! अग्रवाल जी बहुत दुखी हुए ! मोर का दवा इलाज भी करवाया लेकिन जो नुक्सान होना था हो ही गया ! समय के साथ मोर के शरीर के ज़ख्म तो ठीक हो गये लेकिन उसके पंख फिर दोबारा नहीं आये ! कुत्तों से आतंकित हो उसने अपना ठिकाना शायद इसीलिये मकान की छत पर बना लिया है कि कुत्ते अभी तक पेड़ पर चढ़ना नहीं सीख पाए हैं और यहाँ वह सुरक्षित रह सकता है ! दुनिया के इतने कटु अनुभव के बाद भी उसके मन में अभी भी वही जोश और खरोश है ! अपने टूटे पंख फैला कर जब वह छत पर नाचता है तो मेरे मन में उसके लिये असीम प्यार और करुणा उमड़ आती है ! उसकी आवाज़ बहुत बुलंद है और बहुत दूर तक सुनाई देती है ! उसके कमरे के पास पीपल के विशालकाय चार पेड़ हैं ! एक पेड़ का तना उसकी छत से सटा है ! जब उसे मौज आती है तो उसी तने के सहारे वह नीचे आ जाता है और घूम फिर कर वापिस ऊपर चला जाता है ! पिछले साल अमेरिका से लौटने के बाद कई माह के अंतराल के बाद जब मैं पार्क गयी तो भीषण गर्मी के मौसम में भी मुझे देख कर वह छत पर नाचने लगा ! मेरे साथ मेरी पोती बरखा भी थी ! उसे देख कर बहुत मज़ा आया ! कहने लगी ‘दादी ऐसा लगता है जैसे यह मोर आपको ही वेलकम कर रहा है !’ मुझे भी उस दिन उस मोर पर बहुत प्यार आया ! घर पहुँच कर बरखा ने हुलस कर सबको यह किस्सा सुनाया ! उसके बाद जब भी पार्क के सन्दर्भ में कोई बात होती सब पूछने लगते आपका वाला मोर दिखा आज ! और तभी से वह ‘मेरा वाला मोर’ बन गया है ! मेरे लिये वह मोर जिंदादिली और जीवट की अद्भुत मिसाल है ! तो कहिये मेरे वाले मोर से मिल कर आपको भी अच्छा लगा ना ? वह है ही इतना बहादुर और प्यारा ! जो भी उससे मिलता है उसका दीवाना हो जाता है !



साधना वैद  

No comments :

Post a Comment