न तुझे पास अपने बुला सके
न तेरी याद को ही भुला सके
एक आस दिल में जगी रही
न जज़्बात को ही सुला सके !
तू पलट के ऐसे चला गया
ज्यों कभी न देखा हो हमें
न आवाज़ देते ही बना
न नज़र से तुझको बुला सके !
तुझे ज़िंदगी की तलाश थी
तू खुशी की राह पे चल पड़ा
हमें चाह दरिया ए दर्द की
कि खुदी को उसमें डुबा सकें !
तुझे रोशनी की थी चाहतें
तूने चाँद तारे चुरा लिये
हमें हैं अंधेरों से निस्बतें
कि ग़मों को अपने छिपा सकें !
तेरे लब पे खुशियाँ खिली रहें
या खुदा दुआ ये क़ुबूल कर
जो मोती गिरें मेरी आँख से
तेरी राह में वो बिछा सकें !
साधना वैद
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