प्रिये सोचता था जब
आयेगी होली
रंगूंगा तबीयत से
प्रिया अपनी भोली !
छकाऊँगा जी भर
तुम्हें कुमकुमों से
सताऊँगा मल-मल के
चेहरा रंगों से !
मनाउँगा होली सभी
दोस्तों संग
पिलाउँगा भोले का
शरबत मिला भंग !
खिलाउँगा पकवान माँ
के बनाये
न जाउँगा घर से
किसीके बुलाये !
कहाँ सोचा था ऐसी आयेगी
होली
कि जाउँगा मैं लाम
पर छोड़ खोली !
हूँ फ़ौजी हुकुम
मानना ही पड़ेगा
कहीं भी हो ड्यूटी तो
जाना पड़ेगा !
कोई डर नहीं और आयेंगी
होली
मनायेंगे सब मिल के
खुशियों में घोली !
अभी तो छुड़ाने हैं
दुश्मन के छक्के
न आये दोबारा कभी
फिर से मुड़ के !
प्रिये सबसे होगी
अनोखी ये होली
चलेंगी इस होली पे
सचमुच की गोली !
रंगेंगे एक दूजे को
निज रक्त से हम
चलेंगे दनादन हैंड
ग्रेनेड और बम !
धरा होगी रंगीन खूँ
से हमारे
क्या पता हम बचें या कि
हों प्रभु को प्यारे !
जो न आऊँ मैं वापिस
तो मत शोक करना
यूँ मरना वतन पे है
फौजी का गहना !
न रोना, कलपना, न
आँसू बहाना
न मेरी शहादत को
बौना बनाना !
ये कहना तिरंगे में
जो वीर लेटा
है अभिमान मेरा, है
भारत का बेटा !
साधना वैद
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
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