देख ले अपना अंत
ह्रासोन्मुख सूर्य
जिन नर्म नाज़ुक झाड़ियों को
सारे दिन तू जलाता रहा
झुलसाता रहा
अभी उनका कद तुझसे भी
ऊँचा हो गया है !
दिन भर तेरी तीव्र तपिश को सह कर
ये निरीह सी नर्म नाज़ुक
झाड़ियाँ भी अब विद्रोही हो चुकी हैं !
ऐ अस्ताचलगामी सूर्य
देख इन नन्हे-नन्हे पौधों को,
इनके तेवर को और
इनके अनोखे बाँकपन को !
तेरी आँखों में आँखें डाल
ये तुझसे तेरे ज़ुल्म का
हिसाब माँग रहे हैं !
तेरी आँखों में इनके
कटीले नुकीले पत्ते
काँटों की तरह
चुभ रहे हैं या नहीं ?
एक दुर्दांत आतंकी को
इससे बड़ा दण्ड
और क्या मिल सकता है
कि वह प्रकृति की
सबसे कोमल कृति का
ताब भी सह न पाए और
अपने सारे हथियार डाल
धरा की गोद में
समाहित हो जाने के लिए
विवश हो जाए !
साधना वैद
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