छुड़ाए गाँव
नौकरी की तलाश
चलो शहर
पेट की भूख
उड़ा कर ले चली
घर से दूर
छूटे माँ बाप
छूटा घर आँगन
रिक्त हृदय
बड़ा शहर
अजनबी चेहरे
डरा ग्रामीण
आये शहर
बना लिया है घर
फुटपाथ पे
ज़मीं का फर्श
छत है आसमां की
पर्दा हवा का
अमीर लोग
शोषण ग़रीब का
भोला गंवई
न पाया कुछ
न खोने को है कुछ
काहे का डर
खाली है जेब
खाली दिल दिमाग
खाली मकान
बोझ उठाते
मेहनत करते
दिन बीतते
रात दिन की
जी तोड़ मेहनत
थोड़ा सा दाम
जीना हराम
ज़िल्लत की ज़िंदगी
जैसे गुलाम
रात दिन की
जी तोड़ मेहनत
थोड़ा सा दाम
जीना हराम
ज़िल्लत की ज़िंदगी
जैसे गुलाम
याद आता है
घर खेत पोखर
अपना गाँव
छोटा सा गाँव
गिनी चुनी गलियाँ
अपने लोग
पराया देश
अनजान सड़कें
बेगाने लोग
तेरा आसरा
लगा दे नैया पार
कृपानिधान
साधना वैद
No comments :
Post a Comment