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Sunday, July 9, 2017

नफ़रत की आँधी

                                                                              


कितने जतन से तुमसे जुड़ी सारी
मधुर स्मृतियों को गहरे अतीत की 
निर्जन वीथियों में घुस कर मैं सायास
बीन बटोर कर सहेज लाई थी !
जिनमें शामिल थीं तुम्हारी बेतरतीब
भोली भाली तोतली बातें, तुम्हारा गुस्सा,
तुम्हारी मासूम शरारतें, तुम्हारी जिदें,  
तुम्हारी ढेर सारी चुलबुली शैतानियाँ,
टूटे दाँतों वाली तुम्हारी निश्छल मुस्कान और 
अतुलनीय स्नेह से सिक्त कुछ भीगे पल !   
कितनी गर्वित थी मैं अपने इस
अनमोल खजाने पर !
रोज़ कितने मान से कितने प्यार से
दुलार लेती थी इन मधुर पलों को !
इनका मृदुल स्पर्श झुठला देता था
वर्तमान की उन सारी कड़वी अनुभूतियों को,
कटु वचनों के ज़हर बुझे नश्तरों से
छलनी कर देने वाले तीखे प्रहारों को,  
और हृदय के उन सारे कसकते ज़ख्मों को
जो आज तक मेरे अंतर में रिसते रहे हैं !
तुमसे जुड़ी मधुर स्मृतियों से भरी
यह छोटा सी मंजूषा मेरे जीवन की
सबसे अनमोल निधि है,
सबसे अनुपम उपलब्धि है !
स्वर्गिक सुख की इस अनुभूति को मैं
आँखें मूँदे आत्मसात ही तो कर रही थी
जब अचानक ही नफ़रत भरे शब्दों की
तेज़ आँधी आई और उड़ा ले गयी
एक ही पल में मेरे उस अनमोल खजाने को
जिसको भली प्रकार से मैं
अभी सहेज भी न पाई थी !
सारी कोमल यादें. भीगे पल,
मीठी मधुर बातें, मृदुल स्पर्श
सब पल भर में ही न जाने कहाँ-कहाँ
इस चक्रवाती झंझा में उड़ने लगे हैं !  
मैं जी जान से अपनी समूची शक्ति लगा
उन्हें समेटने में लगी हुई हूँ कि
किसी तरह मेरे पास भी कुछ तो ऐसा
ठहर जाए जो उम्र के इस मुकाम पर
मेरे जीने का संबल बन जाए !
लेकिन क्षुद्र तिनके सी तितर बितर हो
उड़ती जातीं ये मधुर यादें मेरी आँखों से
प्रति पल ओझल होती जा रही हैं !
और मैं व्यथित, थकित, चकित सी
बिलकुल खाली हाथ खड़ी
यह सोच रही हूँ कि सच क्या था ?
अतीत का वह पावन नाता और
वो भूले बिसरे चंद मधुर पल  
या आज की यह मर्मान्तक
नफ़रत की आँधी ?


साधना वैद



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