अब से
आँखों के आगे पसरे
मंज़रों को झुठलाना होगा,
कानों को चीरती
अप्रिय आवाजों को भुलाना होगा,
मन पर पड़ी अवसाद की
शिलाओं को सरकाना होगा,
दुखों के तराने ज़माने को नहीं भाते
कंठ में जोश का स्वर भर
कोई मनभावन ओजस्वी गीत
आज तम्हें सुनाना होगा !
ऐ सूरज
आज मुझे अपने तन से काट
थोड़ी सी ज्वाला दे दो
मुझे अपने हृदय में विद्रोह
की आग दहकानी है,
मुझे बादलों की गर्जन से,
सैलाब के उद्दाम प्रवाह से,
गुलाब के काँटों की चुभन से
और सागर की उत्ताल तरंगों की
भयाक्रांत कर देने वाली
वहशत से बहुत सारी
प्रेरणा लेनी है !
अब मुझे श्रृंगार रस के
कोमल स्वरों में
संयोग वियोग की
कवितायें नहीं कहनी
वरन् सम्पूर्ण बृह्मांड में
गूँजने वाले
वीर रस के ओजस्वी स्वरों में
जन जागरण की
अलख जगानी है !
और सबसे पहले
स्वयं को नींद से जगाना है !
साधना वैद
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