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Thursday, July 12, 2018

भर ले अपनी झोली



जीवन यदि सुरभित एवँ
निष्कंटक बनाना है तो
अंतर के सारे शूलों को
चुन कर मन उपवन के
कोने-कोने की
सफाई करनी होगी !  
हृदय के सारे गरल को
एक पात्र में एकत्रित कर  
नीलकंठ बन अपने ही
गले के नीचे
उतारना होगा !
अंतर में दहकते
ज्वालामुखी के सारे लावे को
सप्रयास बाहर निकाल
शीतल जल की फुहार से
उसके भीषण ताप को
ठंडा करना होगा !
हाथ भले ही जल जायें
हृदय में सुलगते अंगारों पर
राख डाल इस धधकती
अग्नि का भी शमन
करना ही होगा !
मन की नौका को
तट पर लाना है तो
सागर की उत्ताल तरंगों से
कैसा घबराना !
डूब जायें या तर जायें
पतवार उठा कर
नाव को तो खेना ही होगा !
मुझे पता है तूने
कभी हार नहीं मानी है
आज भी अपने कदमों को
डगमगाने मत देना !
जितना तेरा संकल्प दृढ़ होगा
उतना ही तेरा आत्मबल बढ़ेगा
और उतना ही यह संसार
प्रीतिकर हो जायेगा !
एक अलौकिक
दिव्य संगीत की धुन
तुझे सुनाई देने लगेगी जिसे सुन
तू मंत्रमुग्ध हो जायेगा !
फिर तेरे मन में यह
असमंजस और संदेह कैसा !
चल उठ देर न कर !
नव निर्माण के पथ पर
अपने कदम बढ़ा
और संसार के सारे सुख
अपनी झोली में भर ले !


साधना वैद    

  

1 comment :

  1. अरे वाह यशोदा जी ! मुरीद हो गयी हूँ आपकी ! पिछले सप्ताह आगरा से बाहर थी इसलिए ना तो समय से रचना लिख पाई ना कोई पुरानी ही भेज पाई ! हृदय से आभारी हूँ आपकी जो आपने स्वयं रचना खोज निकाली और मुझे हमकदम के कारवाँ में पिछड़ने से बचा लिया ! हृदय से आपका कोटि कोटि धन्यवाद एवं आभार सखी ! सप्रेम वन्दे !

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