एकदम शुष्क होते जा
रहे
अपने वीरान से जीवन
में
थोड़ी सी नमी,
थोड़ी सी स्निग्धता,
थोड़ी सी तरलता तलाशने
की
पुरज़ोर कोशिश कर रही
हूँ,
मैं तुम्हारी बेरुखी,
तुम्हारी बेमुरव्वती,
तुम्हारी बेदिली की
सूखी बेजान डालियों
को थाम
तुम्हारी जड़ों तक पहुँचने
की
एक निरर्थक कवायद कर
रही हूँ !
साधना वैद
अच्छा लिखा है आपने। जिंदगी कुछ ऐसी सी हो गई आजकल लोगो की। बेरूखी, बेरौनक सी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रोहित जी ! स्वागत है आपका मेरे इस ब्लॉग पर ! दिल से आभार !
ReplyDeleteथोड़ी सी तरलता तलाशने की
ReplyDeleteपुरज़ोर कोशिश कर रही हूँ,
व्वाहहहह...
सादर नमन..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसराहनीय भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteये तो किसी की आत्मा बनना होगा. और इससे बेहतर कोई साथी नहीं.
ReplyDeleteये तो वो है जो टालने से भी नहीं टलती है. शानदार लेखन.
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में - कायाकल्प
काश कुछ नमी जड़ों के पास मिले ... न मिली तो ... शायद अवसाद के लम्बे पल जीने न दें ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
पुरजोर कोशिश ! फिर निर्रथक कवायद क्यों ?
ReplyDeleteये निर्थक कवायद नहीं जड़ों के जरिये हरियाली लौटा लाने का सार्थक प्रयास है आदरणीय साधना जी | भावपूर्ण लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteकृपया निर्थक नहीं निरर्थक पढ़ें |
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा रचना पढने को मिली |बहुत मजा आया |
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार हर्षवर्धन जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विभा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रोहिताश जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद नासवा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteजिजीविषा के चलते इंसान प्रयत्न ज़रूर करता है लेकिन कुछ कोशिशें आशा का दामन थाम कर की जाती हैं तो कुछ बस आदतन जिनके असफल होने की संभावना प्रबल होती है ! इसीलिये यह कवायद निरर्थक प्रतीत हो रही है नायिका को ! आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद गगन जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteइतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रेनू जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ ... कई बार कुछ चीजें और कुछ रिश्ते सम्भव नहीं होती है.. हम उनको बचाने का भरपूर प्रयास करते हैं लेकिन इस प्रयास में हम एक साथ दो व्यक्तियों का नुकसान कर रहे होते हैं..एक उस व्यक्ति का जिसे पाने की कवायद है और एक खुद का...अक्सर ऐसे मामले में आगे बढ़ना ही श्रेयकर होता है.....दर्द होता है लेकिन आगे चलकर ये आगे बढ़ना कई नई खुशियों को पाने के दरवाजे भी खोल देता है....
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद विकास जी ! इस ब्लॉग पर स्वागत है आपका ! दिल से आभार !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
ReplyDelete