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Sunday, June 28, 2020

मुझे अच्छा लगता है




इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !  

अपने हृदय प्रकोष्ठ के द्वार पर
निविड़ रात के सन्नाटों में
किसी चिर प्रतीक्षित दस्तक की
धीमी-धीमी आवाजों को
सुनते रहना
मुझे अच्छा लगता है !
  
रिक्त अंतरघट की  
गहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को  
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !

थकान के साथ
शिथिलता का होना  
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है ! 

लेकिन सपनों से खाली
इन रातों में
थके लड़खड़ाते कदमों से  
खुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट  
आश्वस्त करना  
मुझे अच्छा लगता है !

साधना वैद  



11 comments :

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद !

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  2. सार्थक सृजन।
    अच्छा का सबका अपना मीटर है।

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  3. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ !

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  4. थके लड़खड़ाते कदमों से
    खुद को ढूँढ निकालना
    और असीम दुलार से
    खुद ही को निज बाहों में समेट
    आश्वस्त करना
    मुझे अच्छा लगता है !

    बहुत खूब दी,कभी कभी खुद का साथ बहुत शुकुन देता हैं। भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !

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  6. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सार्थक हुआ !

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  7. बहुत सुंदर रचना

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय ! बहुत बहुत आभार आपका !

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