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Tuesday, April 12, 2022

शोक गीत

 



नहीं चाहती आर्त हृदय की
मेरी कोई भी पुकार अब
कभी भी तुम तक पहुँचे,
नहीं चाहती व्यथा विगलित
मेरा एक भी शब्द कभी भूले से भी
तुम्हारी आँखों के सामने से गुज़रे ,
नहीं चाहती वेदना से जर्जर
मेरे अवरुद्ध कंठ का एक भी
रुँधा हुआ स्वर कभी गलती से भी
तुम्हारे कानों में पड़े,
नहीं चाहती असह्य वेदना से छलक आये
मेरे आँसुओं को कभी तुम्हारी
उँगलियों का किनारा मिले !
इन सारी इच्छाओं की मृत देहों को
अपने मन के श्मशान में मैं
बहुत पहले ही अग्नि को
समर्पित कर चुकी हूँ !
अब तो जो उस वीराने में
रह रह कर सुनाई देता है
वह सिर्फ एक शोक गीत है
जिसे लिखा भी मैंने है,
स्वरबद्ध भी मैंने ही किया है,
गाया भी मैंने है और जिसे
सुनती भी सिर्फ मैं ही हूँ !

साधना वैद

6 comments :

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-04-2022) को चर्चा मंच       "गुलमोहर का रूप सबको भा रहा"    (चर्चा अंक 4399)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    --

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    1. अरे वाह ! आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  2. बहुत सुंदर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. सुन्दर भावपूर्ण रचना |उम्दा शब्द चयन |

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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